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भीगती आंखें, कांपते लफ्जों ने सुनाई दर्द की दास्तां, हर कहानी में अपनों से मिला धोखा - Tara Sansthan Ashram in Udaipur

उदयपुर के तारा संस्थान का आश्रम एक वृहद परिवार से कम नहीं है. यहां पिछले 13 सालों से कई बुजुर्ग लोग रहते हैं. अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पर बुधवार को इस आश्रम में रहने वाले कुछ दंपती से बात की. उनकी कहानी सुनकर हर किसी की आंखें नम हो जाएंगी. जिन मां-बाप ने अपने बच्चों को दिन-रात मेहनत कर खूब पढ़ाया, बड़ा अधिकारी बनाया.उन्होंने ही अपने मां-बाप को घर से बेदखल कर दिया. ऐसी मुश्किल घड़ी में तारा संस्थान ने उन्हें परिवार जैसा सुख दिया.

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अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस, तारा संस्थान बना हमदर्द (photo etv bharat udaipur)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 15, 2024, 4:10 PM IST

बेटों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया, अब उन्होंने ही घर से निकाला, तारा संस्थान बना हमदर्द (video etv bharat udaipur)

उदयपुर. परिवार शब्द सुनते ही मन में सुकून-आनंद और रिश्तों में प्यार और बढ़ जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं,जिन्हें अपना परिवार अपनों के ही दर्द के कारण छोड़ना पड़ा. ऐसे ही बेसहारा लोगों का सहारा बनकर उभरा है उदयपुर का तारा संस्थान. यह संस्थान पिछले 13 सालों से बेसहारा लोगों के लिए परिवार के सदस्य के रूप में साथ देता आया है. इस संस्थान में रहने वाले कतिपय बुजुर्गों ने बातचीत में अपनी पीड़ा साझा की है.

एक बेटा एनआरआई, दूसरा मैनेजर: कोलकाता के रहने वाले विजय व पारूल शाह ने बताया कि उनकी पत्नी और उनको उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया. उनका भी एक हंसता खेलता परिवार था कोलकाता में, लेकिन मां-बाप बच्चों को बोझ लगने लग गए. विजय ने बताया कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को खूब पढ़ाया. इसी का परिणाम रहा कि आज एक बेटा एनआरआई है, जबकि दूसरा एक बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर है. विजय ने अपने बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत कर एक-एक रुपए इकट्ठा किया. बच्चों को इतना सक्षम बनाया कि आज वह लाखों रुपए की सैलरी ले रहे हैं.लेकिन इन्हीं बच्चों के पास अपने मां-बाप को रखने और बात करने का समय नहीं है. विजय की पत्नी जब दिल का दर्द बताती हैं तो बोलते बोलते फूट-फूट कर रोने लगती है.

पढ़ें: दिवाली पर मुस्लिम युवक और उसके दोस्तों ने वृद्धाश्रम के बुजुर्गों को कराए देव दर्शन

बुढ़ापे का सहारा नहीं बन पाए बेटे: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की रहने वाली गिरजा नायर की कहानी भी कम दुखभरी नहीं है. गिरजा के तीन तीन बच्चे हैं, एक लड़की और दो लड़के. गिरजा के पति की करीब 17 साल पहले मृत्यु हो चुकी. गिरजा ने बताया कि उसका एक बेटा सऊदी अरब में नौकरी के लिए गया, लेकिन इस दौरान उसे नशे की लत लग गई. छोटे बेटे ने बड़े बेटे की मृत्यु के बाद उसे घर से बाहर निकाल दिया. उनके पति भिलाई के स्टील प्लांट में सीनियर पोस्ट पर थे. उन्होंने अपने जीवन की सारी कमाई बच्चों को दे दी, लेकिन बच्चे बुढ़ापे में मां-बाप का सहारा नहीं बन पाए.

जिन्हें कंधों पर बिठाकर दुनिया घुमाई, उन्होंने घर से निकाला: लखनऊ के रहने वाले सुशील ने बताया कि उनके बेटों ने उनके साथ बड़े जुल्म ढाए. जिन बेटों को अपने कंधों पर बिठाकर दुनिया दिखाने का काम किया, उन बेटों ने इस बुढ़ापे में उनसे कंधा छीन लिया.अब पति पत्नी उदयपुर के तारा संस्थान में रहते हैं. अब इस संस्थान में रहने वाले लोग ही उनका परिवार हैं. इन्हीं लोगों से अपने जीवन की यादों को साझा करते हैं. वे पुरानी यादों को भूलकर बचे हुए जीवन की खुशहाली के लिए अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.

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उदयपुर के तारा संस्थान आश्रम में भोजन करते बुजुर्ग (photo etv bharat udaipur)

यह भी पढ़ें: दुनिया का अनूठा परिवार, यहां एक छत के नीचे रहते हैं 6 हजार से अधिक लोग, नमाज और पूजा एक जगह

ढाई सौ से ज्यादा लोग रहते हैं आश्रम में : तारा संस्थान के सदस्य संदीप ने बताया कि यहां करीब ढाई सौ से ज्यादा लोग रहते हैं, जो अलग-अलग राज्यों से आए हैं. उन्होंने बताया कि इन सबके लिए तारा संस्थान ने उपयुक्त व्यवस्थाएं की है. इसमें भोजन रहने और उनके स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्थाएं हैं. प्रतिदिन सुबह योग, भजन व कीर्तन होता है. यहां रहने वाले सदस्य को महीने 200 जेब खर्चे के दिए भी दिए जाते हैं. यहां रहने वाले लोग एक साथ मिलजुल कर खाना बनाते हैं. एक साथ ही भोजन करते हैं. हर महीने सबके स्वास्थ्य की जांच होती है.

बेटों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया, अब उन्होंने ही घर से निकाला, तारा संस्थान बना हमदर्द (video etv bharat udaipur)

उदयपुर. परिवार शब्द सुनते ही मन में सुकून-आनंद और रिश्तों में प्यार और बढ़ जाता है, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं,जिन्हें अपना परिवार अपनों के ही दर्द के कारण छोड़ना पड़ा. ऐसे ही बेसहारा लोगों का सहारा बनकर उभरा है उदयपुर का तारा संस्थान. यह संस्थान पिछले 13 सालों से बेसहारा लोगों के लिए परिवार के सदस्य के रूप में साथ देता आया है. इस संस्थान में रहने वाले कतिपय बुजुर्गों ने बातचीत में अपनी पीड़ा साझा की है.

एक बेटा एनआरआई, दूसरा मैनेजर: कोलकाता के रहने वाले विजय व पारूल शाह ने बताया कि उनकी पत्नी और उनको उनके बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया. उनका भी एक हंसता खेलता परिवार था कोलकाता में, लेकिन मां-बाप बच्चों को बोझ लगने लग गए. विजय ने बताया कि उन्होंने अपने दोनों बेटों को खूब पढ़ाया. इसी का परिणाम रहा कि आज एक बेटा एनआरआई है, जबकि दूसरा एक बहुत बड़ी कंपनी में मैनेजर है. विजय ने अपने बच्चों के लिए दिन-रात मेहनत कर एक-एक रुपए इकट्ठा किया. बच्चों को इतना सक्षम बनाया कि आज वह लाखों रुपए की सैलरी ले रहे हैं.लेकिन इन्हीं बच्चों के पास अपने मां-बाप को रखने और बात करने का समय नहीं है. विजय की पत्नी जब दिल का दर्द बताती हैं तो बोलते बोलते फूट-फूट कर रोने लगती है.

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बुढ़ापे का सहारा नहीं बन पाए बेटे: छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले की रहने वाली गिरजा नायर की कहानी भी कम दुखभरी नहीं है. गिरजा के तीन तीन बच्चे हैं, एक लड़की और दो लड़के. गिरजा के पति की करीब 17 साल पहले मृत्यु हो चुकी. गिरजा ने बताया कि उसका एक बेटा सऊदी अरब में नौकरी के लिए गया, लेकिन इस दौरान उसे नशे की लत लग गई. छोटे बेटे ने बड़े बेटे की मृत्यु के बाद उसे घर से बाहर निकाल दिया. उनके पति भिलाई के स्टील प्लांट में सीनियर पोस्ट पर थे. उन्होंने अपने जीवन की सारी कमाई बच्चों को दे दी, लेकिन बच्चे बुढ़ापे में मां-बाप का सहारा नहीं बन पाए.

जिन्हें कंधों पर बिठाकर दुनिया घुमाई, उन्होंने घर से निकाला: लखनऊ के रहने वाले सुशील ने बताया कि उनके बेटों ने उनके साथ बड़े जुल्म ढाए. जिन बेटों को अपने कंधों पर बिठाकर दुनिया दिखाने का काम किया, उन बेटों ने इस बुढ़ापे में उनसे कंधा छीन लिया.अब पति पत्नी उदयपुर के तारा संस्थान में रहते हैं. अब इस संस्थान में रहने वाले लोग ही उनका परिवार हैं. इन्हीं लोगों से अपने जीवन की यादों को साझा करते हैं. वे पुरानी यादों को भूलकर बचे हुए जीवन की खुशहाली के लिए अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं.

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उदयपुर के तारा संस्थान आश्रम में भोजन करते बुजुर्ग (photo etv bharat udaipur)

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ढाई सौ से ज्यादा लोग रहते हैं आश्रम में : तारा संस्थान के सदस्य संदीप ने बताया कि यहां करीब ढाई सौ से ज्यादा लोग रहते हैं, जो अलग-अलग राज्यों से आए हैं. उन्होंने बताया कि इन सबके लिए तारा संस्थान ने उपयुक्त व्यवस्थाएं की है. इसमें भोजन रहने और उनके स्वास्थ्य की पूरी व्यवस्थाएं हैं. प्रतिदिन सुबह योग, भजन व कीर्तन होता है. यहां रहने वाले सदस्य को महीने 200 जेब खर्चे के दिए भी दिए जाते हैं. यहां रहने वाले लोग एक साथ मिलजुल कर खाना बनाते हैं. एक साथ ही भोजन करते हैं. हर महीने सबके स्वास्थ्य की जांच होती है.

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