लखनऊ : समाजवादी पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा देने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अपनी अलग राह पकड़ ली है. उन्होंने पार्टी संगठन के पद से इस्तीफा देने के बाद अब नई पार्टी का ऐलान कर दिया है. स्वामी प्रसाद मौर्य पूर्व बसपा नेता साहेब सिंह धनगर की राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP) को री-लॉन्च करेंगे. इसकी आधिकारिक घोषणा 22 फरवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में प्रतिनिधि कार्यकर्ता सम्मेलन में की जा सकती है. बता दें मौर्य ने 13 फरवरी को सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को पत्र लिखकर सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दिया था, हालांकि नई पार्टी के ऐलान के बाद से ही सपा के कई वरिष्ठ नेता उन्हें मनाने में जुट गए हैं.
साहेब सिंह धनगर ने बनाई थी RSSP : दरअसल, पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य जिस पार्टी को री लॉन्च करने जा रहे हैं, वह वर्ष 2013 में अलीगढ़ के रहने वाले साहेब सिंह धनगर ने बनाई थी. साहेब सिंह वर्ष 1993 में बसपा से विधानसभा चुनाव लड़े थे. बाद में समाजवादी पार्टी चले गए और वर्ष 2002 में सपा से चुनाव लड़े. वर्ष 2013 में इन्होंने राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP ) बनाई. वर्ष 2014, 2017, 2019 के चुनाव में पार्टी ने प्रत्याशी उतारे. वर्ष 2020 में इन्होंने इंडियन डेमोक्रेटिक अलायंस (IDA) बनाया, जिसमें कई छोटे दलों को साथ लाया गया था.
स्वामी प्रसाद मौर्य को मनाने सपा के कई नेता पहुंचे घर : बसपा से बीजेपी और फिर समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीते दिनों अखिलेश यादव को चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने कुछ पदाधिकारियों द्वारा पीडीए और उनके पद को सम्मान न दिए जाने व उनके बयान को निजी बयान बताने पर नाराजगी जाहिर करते हुए राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद पार्टी के कई ओबीसी और दलित नेताओं ने अखिलेश यादव से इस्तीफा मंजूर न करने को लेकर गुहार लगाई थी. इतना ही नहीं सोमवार को जैसे ही स्वामी प्रसाद मौर्य ने नई पार्टी जाने का ऐलान किया तो सपा के वरिष्ठ नेता राम गोविंद चौधरी उन्हें मनाने व सपा में ही रहने के लिए उनके घर पहुंच गए. अखिलेश यादव को लिखे पत्र में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि जब से मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ, तब से लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. सपा में शामिल होने के दिन ही मैंने नारा दिया था- पच्चासी तो हमारा है, 15 में भी बंटवारा है. हमारे महापुरुषों ने भी इसी तरह की लाइन खींची थीं. चिट्ठी में स्वामी प्रसाद मौर्य ने कई और बड़े नेताओं के नारा का जिक्र किया था.
रथ यात्रा निकालने के लिए कहा, वह भी नहीं निकली : उन्होंने कहा कि पार्टी को ठोस जनाधार देने के लिए जनवरी-फरवरी 2023 में मैंने आपके पास एक सुझाव रखा. मैने कहा कि बेरोजगारी और महंगाई, किसानों की समस्याओं और लोकतंत्र संविधान को बचाने के लिए हमें रथ यात्रा निकालनी चाहिए. जिस पर आपने सहमति जताई. कहा था कि होली के बाद इस यात्रा को निकाला जाएगा. आश्वासन के बाद भी कोई सकारात्मक परिणाम नहीं आया. मैंने दोबारा कहना उचित नहीं समझा. जब से मैं समाजवादी पार्टी में शामिल हुआ, तब से लगातार जनाधार बढ़ाने की कोशिश की. 2022 विधानसभा चुनाव में अचानक प्रत्याशियों के बदलने के बावजूद पार्टी का जनाधार बढ़ाने में सफल रहा. उसी का परिणाम था कि सपा के पास जहां 2017 में सिर्फ 45 विधायक थे. ये संख्या बढ़कर 110 हो गई. बिना किसी मांग के आपने मुझे विधान परिषद में भेजा और ठीक इसके बाद राष्ट्रीय महासचिव बनाया. इस सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.
PDA की लड़ाई में मेरा सिर कलम करने तक की दी गई धमकी : उन्होंने कहा कि इसी अभियान के दौरान मुझे गोली मारने, हत्या कर देने, तलवार से सिर कलम करने, जीभ काटने, नाक-कान काटने, हाथ काटने समेत 24 धमकियां मिलीं. हत्या के लिए 51 करोड़, 51 लाख, 21 लाख, 11 लाख, 10 लाख की सुपारी भी दी गई. कई बार जानलेवा हमले भी हुए. यह बात दीगर है कि हर बार मैं बाल-बाल बचता चला गया. मेरे खिलाफ कई FIR भी दर्ज कराई गईं, लेकिन मैं अपनी सुरक्षा की बिना चिंता अभियान में लगा रहा. हैरानी तो तब हुई, जब पार्टी के वरिष्ठ नेता चुप रहने के बजाय निजी बयान कह करके कार्यकर्ताओं के हौसले को तोड़ने की कोशिश की.
मेरा हर बयान निजी क्यों बता दिया जाता है : उन्होंने कहा कि मैं नहीं समझ पाया एक राष्ट्रीय महासचिव मैं हूं, जिसका कोई भी बयान निजी बयान हो जाता है. पार्टी के कुछ राष्ट्रीय महासचिव और नेता ऐसे भी हैं, जिनका हर बयान पार्टी का हो जाता है, एक ही स्तर के पदाधिकारियों में कुछ का निजी और कुछ का पार्टी का बयान कैसे हो जाता है, यह समझ के परे है. दूसरी हैरानी यह है कि मेरे इस प्रयास से आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों का रुझान सपा की तरफ बढ़ा है. बढ़ा हुआ जनाधार पार्टी का और जनाधार बढ़ाने का प्रयास और वक्तव्य पार्टी का न होकर निजी कैसे? यदि राष्ट्रीय महासचिव पद में भी भेदभाव है, तो में समझता हूं ऐसे भेदभाव पूर्ण, महत्वहीन पद पर बने रहने का कोई औचित्य नहीं है. इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पद से मैं त्यागपत्र दे रहा हूं, कृपया इसे स्वीकार करें. पद के बिना भी पार्टी को सशक्त बनाने के लिए मैं तत्पर रहूंगा. आप द्वारा दिए गये सम्मान, स्नेह व प्यार के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
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