सरगुजा : रियासत कालीन परंपरा को निभाते हुए सरगुजा के 117वें महाराज टीएस सिंहदेव दशहरे के दिन रघुनाथ पैलेस की अपनी कचहरी में बैठे. इस दौरान यहां रियासत काल जैसा माहौल देखा गया. जनता अपने राजा के दर्शन को दूर-दूर से पहुंची थी. सुबह से ही गांव से लोग अम्बिकापुर पहुंच कर रघुनाथ पैलेस में जमा हुए थे. कई घंटों की पूजा के बाद महाराज कचहरी में बैठे और पैलेस में जनता पहुंची. लोग अपने राजा के लिए नजराना भी लेकर आये थे. हर कोई कुछ ना कुछ लेकर आया था. हर व्यक्ति बड़े ही भावपूर्ण तरीके से अपने राजा से मुलाकात कर उन्हें दशहरे की शुभकामनाएं दे रहे थे.
वर्षों से चली आ रही परम्परा: आजादी के पहले देश में राजा महाराजा ही शासन करते थे. अलग-अलग रियासतों की अपनी स्वतंत्र सत्ता होती थी. हर रियासत के अपने नियम और अपनी परंपरा होती थी. ऐसी ही एक परंपरा सरगुजा रियासत में थी, जिसे दशहरे के दिन देखा जा सकता था. रियासत का हर व्यक्ति इस दिन अपने राजा के दर्शन करने महल में आता था. महराजा भी दिन भर हर किसी से मुलाकात किया करते थे. लोग अपनी सुरक्षा और धान की फसल लगा लेने के बाद उसकी रिपोर्ट पेश करने और हाल चाल के उद्देश्य से राजा से मिलते थे. बड़ी बात ये है कि अब रियासतों की सत्ता तो नहीं रही, लेकिन लोगों ने उस परंपरा को जीवित रखा. आज भी राज परिवार के उत्तराधिकारी इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं.
परम्परा निभाने से जिम्मेदारी का रहता है अहसास: आज भी पहले जैसा ही माहौल देखने को मिला. इसे लेकर सरगुजा रियासत के सदस्य टी एस सिंहदेव कहते हैं कि रामायण के प्रसंग से दशहरे की मान्यता जुड़ी हैं. बाद में समाज के लोगों ने परंपरा बनाई कि राजा में भी भगवान का अंश है. आज में दिन राजा का दर्शन शुभ माना जाता है. मानो तो देवता, ना मानो तो पत्थर, वही वाली बात है. परंपरा को लोग जिस तरह से निभा रहे हैं, वो जिम्मेदारी का अहसास कराता है. आज के समय में हर कोई सक्षम है, लेकिन फिर भी उनको ये लगता है कि उनके साथ खड़ा रहने वाला कोई है. इसी भाव के कारण मुझे भी जिम्मेदारी का अहसास होता है.
खोला गया रघुनाथ पैलेस : रियासत काल में दशहरे के दिन रघुनाथ पैलेस को आम जनता के लिए खोल दिया जाता था. रियासत के क्षेत्र से दूर-दूर से लोग अम्बिकापुर पहुंचते थे और दशहरे में शामिल होते थे. महराज शहर में हाथी पर बैठकर भ्रमण के लिये निकलते थे और जनता का अभिवादन स्वीकार करते थे. एक बड़े उत्सव का माहौल इस प्रोसेशन में होता था. हजारों की भीड़ के साथ यात्रा होती थी. इनमें महराज के हाथियों के अलावा भी कई हाथी होते थे. इसके साथ नृतक दल और अन्य दल होते थे.