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इस नई तकनीक से सर्जरी में होगा बदलाव, आर्टिफिशियल मांस से भरे जाएंगे घाव - artificial meat Surgery

पीजीआई के प्लास्टिक सर्जन डॉ. अंकुर भटनागर ने बताया कि यह एक तरह का आर्टिफिशियल मांस है. इसे घाव की जगह पर लगाकर ऊपर से स्किन ग्राफ्ट लगा देते हैं. इससे शरीर के किसी और हिस्से से मांस काटने की जरूरत नहीं पड़ती.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 30, 2024, 5:15 PM IST

लखनऊ: कई बार अल्सर, बर्न या हादसों में घायल होने वाले मरीजों के शरीर से कई बार मांस हट जाता है. इससे हड्डी दिखने लगती है. इसे भरने के लिए शरीर के दूसरे हिस्सों से मांस का टुकड़ा काटकर लगाया जाता है. इससे शरीर में दो जगह निशान आ जाते हैं. ऐसे मरीजों के लिए अब डर्मल सब्स्टिट्यूट आ गए हैं. पीजीआई के प्लास्टिक सर्जन डॉ. अंकुर भटनागर ने इस नई तकनीकी जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि यह एक तरह का आर्टिफिशियल मांस है. इसे घाव की जगह पर लगाकर ऊपर से स्किन ग्राफ्ट लगा देते हैं. इससे शरीर के किसी और हिस्से से मांस काटने की जरूरत नहीं पड़ती.

डॉ. अंकुर ने बताया कि डर्मल सब्स्टिट्यूट जानवरों के कोलाइजन से बनते हैं. इसके लिए किसी इंसान या मरीज के शरीर से मांस नहीं लेना पड़ेगा. इससे इंफेक्शन का खतरा भी कम हो जाता है. खास बात यह है कि इन सब्स्टिट्यूट में कुछ दिन बाद शरीर के सेल्स ग्रो हो जाते हैं और ये शरीर के मांस के रूप में तब्दील हो जाते हैं. डायबिटिक अल्सर, बर्न और हादसों में अक्सर इस तरह के घाव होते हैं. इसके लगाने में सिर्फ यह ख्याल रखना पड़ता है कि मरीज को बार-बार इंफेक्शन तो नहीं हो रहा.

उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे मरीज आते हैं, जिनका एक्सीडेंट हुआ होता है या फिर जिन्हें कोई गंभीर समस्या होती है और शरीर के किसी एक हिस्से का मांस कट गया होता है. ऐसे में पहले मरीज के शरीर के दूसरे हिस्से से मांस निकालकर खाली जगह वाले हिस्से को भरा जाता था, जिससे मरीज को काफी तकलीफ होती थी और दोहरा ऑपरेशन झेलना पड़ता था, लेकिन अब नया ट्रीटमेंट अपनाया जा रहा है. इसमें आर्टिफिशियल मास का इस्तेमाल करके मरीज के घाव को भर जाता है, जो कि सिलिकॉन से बना होता है. इससे मरीज को कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है. पीजीआई में अब ऐसे मरीजों को इसी तरह से ऑपरेशन किया जा रहा है. यह एक नई विधा है जिसे बाकी मेडिकल कॉलेजों के विशेषज्ञों को भी अपनाना चाहिए.

रेडियोथेरेपी के घावों के लिए अलग थेरेपी
केजीएमयू प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. बृजेश मिश्र ने बताया कि आग में झुलसे या रेडियोथेरेपी के बाद कैंसर मरीजों में कई तरह के घाव हो जाते हैं. ये आसानी से ठीक नहीं होते हैं. ऐसे मरीजों के लिए हाइपर बैरिक ऑक्सीजन थेरपी वरदान है. इसमें मरीज को ज्यादा प्रेशर से ऑक्सीजन दी जाती है. केजीएमयू में भी दो हाइपर बैरिक मशीनें हैं. ये कैंसर के अलावा बर्न के दूसरे घावों में भी कारगर हैं.

ये भी पढ़ें: लखनऊ में फूड प्वाइजनिंग: लड्डू खाने से 15 बच्चे हुए बीमार, डाॅक्टरों ने दी ये सलाह - Food Poisoning In Lucknow

लखनऊ: कई बार अल्सर, बर्न या हादसों में घायल होने वाले मरीजों के शरीर से कई बार मांस हट जाता है. इससे हड्डी दिखने लगती है. इसे भरने के लिए शरीर के दूसरे हिस्सों से मांस का टुकड़ा काटकर लगाया जाता है. इससे शरीर में दो जगह निशान आ जाते हैं. ऐसे मरीजों के लिए अब डर्मल सब्स्टिट्यूट आ गए हैं. पीजीआई के प्लास्टिक सर्जन डॉ. अंकुर भटनागर ने इस नई तकनीकी जानकारी दी.

उन्होंने बताया कि यह एक तरह का आर्टिफिशियल मांस है. इसे घाव की जगह पर लगाकर ऊपर से स्किन ग्राफ्ट लगा देते हैं. इससे शरीर के किसी और हिस्से से मांस काटने की जरूरत नहीं पड़ती.

डॉ. अंकुर ने बताया कि डर्मल सब्स्टिट्यूट जानवरों के कोलाइजन से बनते हैं. इसके लिए किसी इंसान या मरीज के शरीर से मांस नहीं लेना पड़ेगा. इससे इंफेक्शन का खतरा भी कम हो जाता है. खास बात यह है कि इन सब्स्टिट्यूट में कुछ दिन बाद शरीर के सेल्स ग्रो हो जाते हैं और ये शरीर के मांस के रूप में तब्दील हो जाते हैं. डायबिटिक अल्सर, बर्न और हादसों में अक्सर इस तरह के घाव होते हैं. इसके लगाने में सिर्फ यह ख्याल रखना पड़ता है कि मरीज को बार-बार इंफेक्शन तो नहीं हो रहा.

उन्होंने कहा कि बहुत से ऐसे मरीज आते हैं, जिनका एक्सीडेंट हुआ होता है या फिर जिन्हें कोई गंभीर समस्या होती है और शरीर के किसी एक हिस्से का मांस कट गया होता है. ऐसे में पहले मरीज के शरीर के दूसरे हिस्से से मांस निकालकर खाली जगह वाले हिस्से को भरा जाता था, जिससे मरीज को काफी तकलीफ होती थी और दोहरा ऑपरेशन झेलना पड़ता था, लेकिन अब नया ट्रीटमेंट अपनाया जा रहा है. इसमें आर्टिफिशियल मास का इस्तेमाल करके मरीज के घाव को भर जाता है, जो कि सिलिकॉन से बना होता है. इससे मरीज को कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है. पीजीआई में अब ऐसे मरीजों को इसी तरह से ऑपरेशन किया जा रहा है. यह एक नई विधा है जिसे बाकी मेडिकल कॉलेजों के विशेषज्ञों को भी अपनाना चाहिए.

रेडियोथेरेपी के घावों के लिए अलग थेरेपी
केजीएमयू प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. बृजेश मिश्र ने बताया कि आग में झुलसे या रेडियोथेरेपी के बाद कैंसर मरीजों में कई तरह के घाव हो जाते हैं. ये आसानी से ठीक नहीं होते हैं. ऐसे मरीजों के लिए हाइपर बैरिक ऑक्सीजन थेरपी वरदान है. इसमें मरीज को ज्यादा प्रेशर से ऑक्सीजन दी जाती है. केजीएमयू में भी दो हाइपर बैरिक मशीनें हैं. ये कैंसर के अलावा बर्न के दूसरे घावों में भी कारगर हैं.

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