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सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण के कथित मामले में सुप्रीम कोर्ट से राहत, जानिए इस केस में क्यों निरस्त हुआ हिमाचल हाईकोर्ट का फैसला? - HP ALLEGED ENCROACHMENT FOREST LAND

सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल में सरकारी वन भूमि पर कथित अतिक्रमण मामले में हाईकोर्ट का फैसला निरस्त कर दिया है. जानिए पूरा मामला.

सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण के कथित मामले में SC से राहत
सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण के कथित मामले में SC से राहत (FILE)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Dec 3, 2024, 8:44 PM IST

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकारी वन भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण से जुड़े मामले में कुछ लोगों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. हिमाचल हाईकोर्ट ने सरकारी वन भूमि पर कब्जे के आरोप से जुड़े मामले में संबंधित अधिकारियों को अतिक्रमण हटाकर कब्जा लेने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वन विभाग ने प्रोसीजरल स्टेप्स पूरे नहीं किए थे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता बाबू राम व उसके साथ वाले मामलों में हाईकोर्ट का फैसला निरस्त किया है.

याचिकाकर्ता बाबू राम की तरफ से सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस की पैरवी की थी. सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राज्य सरकार अतिक्रमण से जुड़े मामलों में नए सिरे से कार्रवाई करे. वन विभाग को दो माह के भीतर निशानदेही यानी डिमार्केशन पूरी करने के लिए कहा गया है.

सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण के कथित मामले में SC से राहत (ETV Bharat)

सुप्रीम कोर्ट में ये मामला न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगा था. मामले के अनुसार वर्ष 2015 में वन विभाग ने पीपी एक्ट यानी पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए कथित रूप से अतिक्रमण के मामले में चालान पेश किया था. चालान में याचिकाकर्ताओं को अवैध रूप से सरकारी वन भूमि पर कथित अतिक्रमण के मामले में नोटिस जारी किए गए. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट की धारा-4 के अंतर्गत वन विभाग के एक्शन को सही माना. हाईकोर्ट ने आदेश दिए कि 30 दिन के भीतर सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण को हटाया जाए.

हाईकोर्ट के इस फैसले को बाबू राम व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था. सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में पहले यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश भी हुए थे. अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बाबूराम सहित करीब चालीस अन्य लोगों को राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि विभिन्न चरणों में राज्य सरकार की तरफ से की गई कार्रवाई में याचिकाकर्ताओं के पक्ष की अनदेखी की गई है. शिमला व कुल्लू सहित प्रदेश के अन्य हिस्सों से ये मामले सामने आए थे. फिलहाल, सभी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है.

सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा का कहना है कि 28 नवंबर को ये केस सुप्रीम कोर्ट में लगा था. अब ये फैसला सर्वोच्च अदालत की साइट पर अपलोड हो गया है. उन्होंने बताया कि बाबूराम व अन्य के मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति बरकरार रखने के लिए कहा था. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इसी नेचर के कुछ मामले जोड़ कर सुनवाई हुई थी. इस सुनवाई में एसएलपी दाखिल करने वाले याचिकाकर्ताओं को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के संदर्भ में उसी यथास्थिति को बरकरार रखने को कहा है, जो हाईकोर्ट के आदेश से पहले थी.

ये भी पढ़ें: राधास्वामी सत्संग ब्यास के भोटा अस्पताल के मामले ने फिर छेड़ा लैंड सीलिंग एक्ट का राग, क्या सुक्खू सरकार सिरे चढ़ा पाएगी मामला?

शिमला: हिमाचल प्रदेश में सरकारी वन भूमि पर कथित रूप से अतिक्रमण से जुड़े मामले में कुछ लोगों को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है. हिमाचल हाईकोर्ट ने सरकारी वन भूमि पर कब्जे के आरोप से जुड़े मामले में संबंधित अधिकारियों को अतिक्रमण हटाकर कब्जा लेने के आदेश दिए थे. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की गई थी. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल स्पेशल लीव पिटीशन में याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि वन विभाग ने प्रोसीजरल स्टेप्स पूरे नहीं किए थे. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता बाबू राम व उसके साथ वाले मामलों में हाईकोर्ट का फैसला निरस्त किया है.

याचिकाकर्ता बाबू राम की तरफ से सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में इस केस की पैरवी की थी. सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का पर्याप्त मौका नहीं दिया गया. अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि राज्य सरकार अतिक्रमण से जुड़े मामलों में नए सिरे से कार्रवाई करे. वन विभाग को दो माह के भीतर निशानदेही यानी डिमार्केशन पूरी करने के लिए कहा गया है.

सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण के कथित मामले में SC से राहत (ETV Bharat)

सुप्रीम कोर्ट में ये मामला न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लगा था. मामले के अनुसार वर्ष 2015 में वन विभाग ने पीपी एक्ट यानी पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट के तहत कार्रवाई करते हुए कथित रूप से अतिक्रमण के मामले में चालान पेश किया था. चालान में याचिकाकर्ताओं को अवैध रूप से सरकारी वन भूमि पर कथित अतिक्रमण के मामले में नोटिस जारी किए गए. बाद में मामला हाईकोर्ट पहुंचा तो वहां पब्लिक प्रेमिसेस एक्ट की धारा-4 के अंतर्गत वन विभाग के एक्शन को सही माना. हाईकोर्ट ने आदेश दिए कि 30 दिन के भीतर सरकारी वन भूमि पर अतिक्रमण को हटाया जाए.

हाईकोर्ट के इस फैसले को बाबू राम व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया था. सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में पहले यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश भी हुए थे. अब सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बाबूराम सहित करीब चालीस अन्य लोगों को राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि विभिन्न चरणों में राज्य सरकार की तरफ से की गई कार्रवाई में याचिकाकर्ताओं के पक्ष की अनदेखी की गई है. शिमला व कुल्लू सहित प्रदेश के अन्य हिस्सों से ये मामले सामने आए थे. फिलहाल, सभी को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है.

सीनियर एडवोकेट नीरज शर्मा का कहना है कि 28 नवंबर को ये केस सुप्रीम कोर्ट में लगा था. अब ये फैसला सर्वोच्च अदालत की साइट पर अपलोड हो गया है. उन्होंने बताया कि बाबूराम व अन्य के मामले में पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले में यथास्थिति बरकरार रखने के लिए कहा था. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इसी नेचर के कुछ मामले जोड़ कर सुनवाई हुई थी. इस सुनवाई में एसएलपी दाखिल करने वाले याचिकाकर्ताओं को बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के संदर्भ में उसी यथास्थिति को बरकरार रखने को कहा है, जो हाईकोर्ट के आदेश से पहले थी.

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