बिलासपुर: बिलासपुर की शारदा पांडेय वह महिला हैं, जो 57 की उम्र में भी 27 की लड़कियों जैसा खेल में प्रदर्शन करती हैं. बिजली की तरह इनमें फुर्ती और अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करने का जज्बा है. बिलासपुर की चैंपियन फैमिली की मुख्य सदस्य शारदा पांडेय का नाम आज एथलेटिक्स की दुनिया में काफी बड़ा हो गया है. अब तक उन्होंने अपने नाम 25 नेशनल गोल्ड मेडल और सैकड़ों की संख्या में कांस्य मेडल कर लिया है. इनके परिवार की दो बेटी और पति खेल में गोल्ड मैडल ले चुके हैं. इनके परिवार को अब चैंपियन फैमिली भी कहा जाने लगा है.
25 साल बाद करियर बनाने निकली शारदा: दरअसल, शारदा ने एथलेटिक्स में गोला फेक खेल में अपनी एक अलग पहचान बना रखी है. भारत के सभी एथलेटिक्स कॉम्पिटिशन में ये भाग ले चुकी हैं. इस माह होने वाले जम्मू कश्मीर में एथलेटिक्स चैंपियनशिप में शारदा ने हिस्सा लिया है. शारदा पांडे वैसे तो एक घरेलू महिला हैं. इनके जीवन का 25 साल परिवार को संभालने और संवारने के साथ ही बेटियों की परवरिश, शिक्षा, दीक्षा के साथ उनके करियर बनाने में निकल गया. इन्हें अपने सपने बच्चों और परिवार के लिए दबाना पड़ा था. यह अपना जीवन परिवार में न्यौछावर कर दी थी, लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि वे एक बार फिर खेल की दुनिया में वापस आ गई .
बेटियों ने सपने पूरे करने में की मदद: शारदा पांडे ने ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान बताया, "मुझे बचपन से ही एथलेटिक्स में इंटरेस्ट रहा. मैं छोटी थी तो पिता प्रेम शंकर पांडेय मेरे पहले गुरु थे. उन्होंने मुझे मच्छरदानी बांधने वाली लकड़ी से भाला फेंकने की तैयारी शुरू कराई. दादा हेड मास्टर थे, पिता भी हेड मास्टर रहे और शिक्षक फैमिली होने के नाते मुझ पर भी अच्छी शिक्षा की जिम्मेदारी थी. लेकिन हमेशा ही मैथ्स में कमजोर रहती और पढ़ाई की ओर ध्यान हटता देख पिता मुझे स्कूल ले गए और भाला फेंक खेल के विषय में बताया. उस दौरान उनके पास प्रोफेशनल भाला तो नहीं था, तब पिता मच्छरदानी बांधने वाले बांस की लकड़ी से मुझे प्रैक्टिस करवाया करते थे. तब स्कूल शिक्षा के बाद कॉलेज शिक्षा तक भाला फेंक के खेल में अपनी पहचान बनाने लगी थी. 25 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई. यहां पति भी एथलेटिक्स से जुड़े हुए थे. वह गोला फेंक खेल खेलते थे. तब मैं उन्हें देखती थी, फिर धीरे-धीरे समय बीतता गया और दो बेटियां हुई. उनके परवरिश में मैंने अपने स्पोर्ट्स ऑफिसर की नौकरी छोड़ दी. 25 साल बाद दोबारा 50 की उम्र में एथलेटिक्स खेलने मैदान में उतरी हूं."
मैं 50 की उम्र में पहली बार मैदान में खेलने उतरी, तो काफी डरी हुई थी.मुझे समाज के रूढ़िवादियों की सोच और ताने भी सुनने पड़ते थे. कुछ लोग कहते थे कि जिस उम्र में बच्चों को खेलना चाहिए, उस उम्र में खुद खेल रही है. यह सुनकर काफी खराब लगता था, जब मैं पहली बार नेशनल कॉम्पिटिशन में भाग लेने बैंगलुरु गई, तो काफी डरी हुई थी. मेरे पास उतने पैसे भी नहीं थे कि अच्छे से वहां जा सकूं, लेकिन वहां पहुंचने के बाद मैंने प्रतियोगिता जीती और गोल्ड मेडल लेकर आई. उसके बाद फिर वही लोग मेरी तारीफ करने लगे. कल तक जो लोग ताना दिया करते थे, आज वह तारीफ करते हैं. -शारदा पांडेय तिवारी, एथलीट्स
बेटियों ने निभाई अहम भूमिका: शारदा की बेटियों ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया, "मां ने जीवन में परिवार को काफी महत्व दिया है. वो अपना सपना परिवार के लिए भूल गई. हमने जबरदस्ती भेजा. हमने कहा कि परिवार के प्रति आपकी जिम्मेदारियां पूरी हो गई है. अब आप अपने सपने पूरे करो. आज मां को इस मुकाम पर देख अच्छा लगता है. हम चाहते हैं वो इंटरनेशनल लेबल पर वो जीत हासिल करें."
बता दें कि शारदा तिवारी को कुछ सालों में ही सैकड़ों मेडल मिल चुके हैं. उन्हें चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए इनविटेशन मिलने लगा है. वह जहां भी एथलेटिक्स में गोला फेक कॉम्पटिशिन होता है वह हिस्सा लेती हैं. उनके घर में मेडल और शील्ड सैकड़ों की तादाद में है. पति, दोनों बेटियां और खुद गोल्ड मेडल हासिल कर चुकी हैं. यही वजह है कि बिलासपुर में उनके परिवार को चैंपियन परिवार कहा जाता है.