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ये हैं बिहार के 'मशरूम मैन', अब 2 लाख रोज की कमाई! जानें कैसे किया कमाल - Success Story

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Aug 20, 2024, 7:01 AM IST

Shashi Bhushan Tiwari : कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो. कुछ ऐसा ही पत्थर उछाला है मुजफ्फरपुर के रहने वाले शशि भूषण तिवारी ने. कई तरह के संघर्ष करने के बाद शशि भूषण तिवारी आज एक सफल उद्यमी बनकर उभरे हैं. उनके संघर्षों की कहानी जरूर भावुक कर देने वाली है लेकिन, अब उनकी सफलता की कहानी उनके इलाके में एक मिसाल बन चुकी है.

शशि भूषण तिवारी
शशि भूषण तिवारी (ETV Bharat)

पटना : शशि भूषण तिवारी अब मुजफ्फरपुर में 'मशरूम मैन' के नाम से जाने जाते हैं. इस सफलता को पाने के लिए शशि भूषण तिवारी ने दिन-रात मेहनत की है. अपने संघर्ष की कहानी सुनाते हुए शशि भूषण तिवारी कई बार भावुक हो जाते हैं. हालांकि, उनकी आंखों में इस बात की चमक होती है कि आज वह अपने संघर्ष को सफल कर चुके हैं. जो उन्होंने 24 साल पहले सपना देखा था उस सपने को साकार कर चुके हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने अपनी कहानी शेयर की.

'दिल्ली में कई बार भूखा सोया हूं' : शशि भूषण दिल्ली के संघर्ष को कभी नहीं भूलने की बात करते हैं. कहते हैं दिल्ली में मैंने ऐसा दिन गुजारा है कि भगवान ना करे किसी और को यह दिन गुजारना पड़े. मैंने पहली नौकरी मात्र 1200 रुपए महीने में शुरू की थी. मैं दिल्ली में कई रात बिना खाये सोया हूं. मैं ग्रेजुएट हूं लेकिन, दिल्ली में मैंने दूसरे के कारों का शीशा साफ किया है. जाड़े की रातों में सेव की पेटी को बिछाकर सोता था.

''1996 में मेरी शादी हो चुकी थी. उस समय को मैंने कैसे काटा वो शब्दों में नहीं बयां कर सकता हूं. पर इतना जरूर कहूंगा कि मेरी पत्नी मेरे साथ हमेशा खड़ी रही. मेरे सपनों को मुकाम तक पहुंचाने में मेरी पत्नी का बड़ा हाथ है. उसके हौसले ने मेरी जिंदगी को नई उंचाई है. आज मेरी बेटी शालू राज डॉक्टर है. मेरा बेटा साहिल तिवारी मेरे काम को आगे बढ़ा रहे हैं. आज मेरे पास लग्जरी कार है, घर है. अब हमलोग फार्म हाउस में ही रहते हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'पत्नी मेरे लिए पिलर है' : शशि भूषण कहते हैं कि, मेरी पत्नी ममता तिवारी का मुझे बहुत साथ मिला. मैं सुबह 4:00 बजे निकलता था दिल्ली में और रात 10:00 बजे आता था. पत्नी ने मेरा खूब साथ दिया. मेरी पत्नी ने कभी भी मुझसे कोई डिमांड नहीं किया. जब तक मैं काम करता रहा हूं तब तक वह घर पर इंतजार करती थी. वह कभी भी कोई बात हंस कर ही कहती हैं. उसने मुझे कभी टूटने नहीं दिया. आज वह मेरे साथ पिलर की तरह खड़ी है.

लोगों को काम से दिया जबाब : शुरू में मुजफ्फरपुर में लोगों ने बहुत ताना मारा. कोई कहता था कि यह कुकरमुत्ता है तो, कोई कहता था यह गोबर छाता है. लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त हूं. मैं कह देता था हनुमान जी, उन्हें आप देख लीजिएगा. परेशानियां किसकी जिंदगी में नहीं आती हैं और परेशानियों से मैं घबरा जाता और लोगों को जवाब देता तो, मैं यहां नहीं होता. मैं अपने कर्म पर फोकस किया. मैं उन सभी को अपने काम से जवाब दिया.

हर महीने 50-60 लाख के मशरूम बिकते हैं : शशि भूषण का कहना है कि, एक दिन में 1600 किलो, 1800 किलो, 2000 किलो तो कभी-कभी 2200 किलो तक चला जाता है. यह बताना मुश्किल है कि प्रतिदिन कितना होगा लेकिन, कभी बढ़ता भी है और कभी घटता भी है. प्रतिदिन में 1600 से 1700 किलो बेचता हूं. प्रतिदिन 40 से 50 हजार प्रॉफिट हो जाता है. पिछले साल का जो मेरा बैलेंस रिकॉर्ड था वह 6 से 7 करोड़ का था. मेरा प्रति महीने मशरूम की बिक्री लगभग 50 से 60 लाख रुपए की हो जाती है. ये कभी बढ़ती घटती रहती है.

''मशरूम का रेट जो है वह बढ़ता और घटना रहता है. कभी ₹50 किलो भी बिकता है तो कभी ₹200 किलो में बिकता है. जो लगातार हमसे लेते हैं तो उनका रेट अलग होता है. जो कभी-कभार आता है उनके लिए रेट अलग होता है. मैं यह कोशिश करता हूं कि रेट ऐसा रहे कि आम लोगों के पास मेरा प्रोडक्ट पहुंचे. हमने सबसे ज्यादा महिलाओं को नौकरी दी है और लगभग यह डेढ़ सौ की संख्या में यहां काम करती हैं. इसके अलावा 10-15 पुरुष स्टाफ भी हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'मशरूम को नॉनवेज समझा था' : आइये अब आपको शशि भूषण तिवारी के बारे बताते हैं कि वह कैसे 'मशरूम मैन' बन गए. शशि भूषण जब भी उस दिन को याद करते हैं उनके चेहरे पर अजीब सी चमक दिखती है. वो कहते हैं, मैं जब साल 2000 में दिल्ली में रहता था. उस समय पहली बार मैंने मशरूम का स्वाद चखा था. मैं ब्राह्मण परिवार से आता हूं, मुझे लगा कि किसी ने नॉनवेज खिला दिया. बाद में मेरे दोस्तों ने कहा कि नहीं यह वेज है और इसे खाया जा सकता है. मैंने दोबारा खाया तो उसका टेस्ट लाजवाब लगा और वह स्वाद आज तक मेरे जुबान पर है. उसके बाद से मैं इस मशरूम को लेकर एक लंबा संघर्ष किया है.

Shashi Bhushan Tiwari
मुजफ्फरपुर के मशरूम मैन (ETV Bharat)

''जब मैं मशरूम खाया था तो मेरे अंदर यह जिज्ञासा हुई कि आखिर यह चीज है क्या? इसे कैसे बनाया जाता है? इसे कैसे उगाया जाता है? इन तमाम चीजों की जिज्ञासा मेरे अंदर हुई. दोस्तों ने बताया कि जहां मैं काम करता था (आजादपुर मंडी) वहां यह मशरूम आता था. उस समय मैं पहली बार मशरूम को देखा था.''-शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'मशरूम के बारे में जिज्ञासा बढ़ी' : शशि भूषण का कहना था लोगों ने उन्हें बताया गया कि यह खुंबी है. खुंबी मेरे लिए नया शब्द था. फिर बाद में लोगों ने बताया कि इसे मशरूम कहते हैं. लोगों ने कहा कि यह दिल्ली के नजदीक हरियाणा में होता है. इसके बाद समय निकालकर जहां-जहां इसका पैदावार होता था, मैं वहां जाता था. जब भी छुट्टी मिलती थी, मैं वहां चला जाता था. मैं लगातार उसके बारे में जानना चाहता था.

Shashi Bhushan Tiwari
मशरूम मैन की कहानी (ETV Bharat)

''एक बार तो मैं मशरूम खरीद कर घर ले गया था लेकिन, मुझे मशरूम की सब्जी कैसे बनती है, यह बनाने नहीं आया. फिर मेरे दिमाग में यह बात आई कि क्यों नहीं इसे अपने यहां उगाया जाए? अपने यहां उपजाया जाए? मैं लगातार हरियाणा के किसानों से बातचीत करता रहा.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'जो हरियाणा में था सबकुछ बिहार जैसा था' : शशि भूषण ने कहा कि, हरियाणा में जितने भी वर्कर थे लगभग बिहार के रहने वाले थे. जो रॉ मेटेरियल इसके लिए लगता है वह हमारे यहां भी आराम से मिल सकता था. जो क्लाइमेट की जरूरत मशरूम के लिए होती है. जो हरियाणा में है वह बिहार में भी है. फिर मैंने सोचा कि इसे किया जा सकता है और मैं लगातार रिसर्च कर रहा था. चूंकि इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही थी. तो मैं वहां ट्रेनिंग करना शुरू किया. मैं सोलन के वैज्ञानिकों से बातचीत की. वहां उनके संपर्क में रहा.

'मैंने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया' : काफी सारा डाटा इकट्ठा करने के बाद जब मैं इन चीजों को सीख गया. तब मैंने निश्चय किया कि अपने यहां किया जा सकता. हालांकि मेरी पारिवारिक जिम्मेदारियां काफी थी तो, बहुत जल्दी में दिल्ली नहीं छोड़ सकता था लेकिन, मैं 2019 में मन बना लिया कि मैं अब दिल्ली को छोड़ दूंगा और मैं मशरूम की फार्मिंग करूंगा और मैंने अपना बोरिया बिस्तर जल्दी से समेट लिया.

'19 साल लग गए सपने को पूरा करने में' : शशि भूषण का कहना है कि मुजफ्फरपुर में मशरूम लाने के लिए 19 साल लग गए. मेरी जिम्मेदारियां काफी थी. बच्चे उस समय छोटे थे. तमाम जिम्मेदारियों को निभाते हुए, 19 साल लग गए. 2019 में मैंने पूरी तरह से मन बना लिया था और मैं यहां आ गया. यहां भी हालत बहुत अच्छे हो गए थे. बिहार के रोड अच्छे हो गए थे. बिजली अच्छी हो गई थी.

'बैंक वाले फाइनेंस करने से बच रहे थे' : मैंने काम करना शुरू कर दिया. 2020 में बैंक की तरफ से छोटा फाइनेंस दिया गया. इसके पीछे की वजह यह है कि बैंक इस पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं कर रहे थे. बैंक वाले कहते थे कि मशरूम उगा कर ईएमआई कैसे दे सकते हैं? मैं विश्वास दिलाता रहा लेकिन बैंक लोन नहीं दे रहा था. मैं लगातार संघर्ष कर रहा था.

''बैंक आफ इंडिया को मैंने कन्विंस कर लिया. मैंने अपने प्रोजेक्ट को बताया और इस मशरूम की फार्मिंग को मैंने बताया. मैंने बैंक मैनेजर को कहा कि पंजाब का पापुलेशन 4 करोड़, हरियाणा का पॉपुलेशन दो करोड़ और यह दोनों मिलाकर 6 करोड़ लोग पूरी तरह से बिहार के 18 करोड़ लोगों को अपना प्रोडक्ट बेचते हैं. पंजाब हरियाणा के प्रोडक्ट के लिए बिहार सबसे बड़ा मार्केट है. जबकि मैनपावर हमारे पास सबसे ज्यादा है. बैंक मैनेजर उस समय कन्वेंस हो गए और उन्होंने मुझे लोन दिया.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'मशरूम को लाइफ देने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाया' : शशि भूषण ने कहा कि, मैंने 6 कमरे का अपना फार्म हाउस शुरू किया. धीरे-धीरे बढ़कर आज 20 कमरे का फार्म हाउस है. पहले बहुत सारी चुनौतियां थी. कभी ट्रांसपोर्टेशन की दिक्कत थी तो, कभी हड़ताल हो जाता तो, कभी पर्व त्यौहार हो जाना, इससे मुश्किल होती थी. फिर मैंने वैज्ञानिकों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह बहुत जल्द खराब होने वाला आइटम है. फिर मैं इस पर काम करना शुरू किया और फिर मैंने प्रोसेसिंग यूनिट लगाया. पहले नुकसान होता था अब डब्बे में पैक करके उसे 2 साल का लाइफ मैंने दे दिया है. अब यह ऑनलाइन पर भी बिकता है.

Shashi Bhushan Tiwari
कैसे होता है मशरूम का उत्पादन? (ETV Bharat)

''मैं अपने दिल की बात बताता हूं. मैंने अपनी पत्नी के लिए कुछ गोल्ड भी बनवाए थे. जब मुझे लोन लेना था और बैंक ने कहा कि लिक्विड लेंगे तो, मेरी पत्नी ने सहर्ष मुझे अपना सारा सोना दे दिया. कभी भी यह नहीं पूछा कि यह किसके लिए, क्यों ले रहे हैं? मैं अपना सोना नहीं दूंगी, उन्होंने अपना मंगलसूत्र तक दे दिया. इस फॉर्म को खड़ा करने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया. उन्होंने मुझे बहुत हिम्मत दिया. उनको यह लगता था कि मैं कुछ भी कर सकता हूं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

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पटना : शशि भूषण तिवारी अब मुजफ्फरपुर में 'मशरूम मैन' के नाम से जाने जाते हैं. इस सफलता को पाने के लिए शशि भूषण तिवारी ने दिन-रात मेहनत की है. अपने संघर्ष की कहानी सुनाते हुए शशि भूषण तिवारी कई बार भावुक हो जाते हैं. हालांकि, उनकी आंखों में इस बात की चमक होती है कि आज वह अपने संघर्ष को सफल कर चुके हैं. जो उन्होंने 24 साल पहले सपना देखा था उस सपने को साकार कर चुके हैं. ईटीवी भारत से उन्होंने अपनी कहानी शेयर की.

'दिल्ली में कई बार भूखा सोया हूं' : शशि भूषण दिल्ली के संघर्ष को कभी नहीं भूलने की बात करते हैं. कहते हैं दिल्ली में मैंने ऐसा दिन गुजारा है कि भगवान ना करे किसी और को यह दिन गुजारना पड़े. मैंने पहली नौकरी मात्र 1200 रुपए महीने में शुरू की थी. मैं दिल्ली में कई रात बिना खाये सोया हूं. मैं ग्रेजुएट हूं लेकिन, दिल्ली में मैंने दूसरे के कारों का शीशा साफ किया है. जाड़े की रातों में सेव की पेटी को बिछाकर सोता था.

''1996 में मेरी शादी हो चुकी थी. उस समय को मैंने कैसे काटा वो शब्दों में नहीं बयां कर सकता हूं. पर इतना जरूर कहूंगा कि मेरी पत्नी मेरे साथ हमेशा खड़ी रही. मेरे सपनों को मुकाम तक पहुंचाने में मेरी पत्नी का बड़ा हाथ है. उसके हौसले ने मेरी जिंदगी को नई उंचाई है. आज मेरी बेटी शालू राज डॉक्टर है. मेरा बेटा साहिल तिवारी मेरे काम को आगे बढ़ा रहे हैं. आज मेरे पास लग्जरी कार है, घर है. अब हमलोग फार्म हाउस में ही रहते हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'पत्नी मेरे लिए पिलर है' : शशि भूषण कहते हैं कि, मेरी पत्नी ममता तिवारी का मुझे बहुत साथ मिला. मैं सुबह 4:00 बजे निकलता था दिल्ली में और रात 10:00 बजे आता था. पत्नी ने मेरा खूब साथ दिया. मेरी पत्नी ने कभी भी मुझसे कोई डिमांड नहीं किया. जब तक मैं काम करता रहा हूं तब तक वह घर पर इंतजार करती थी. वह कभी भी कोई बात हंस कर ही कहती हैं. उसने मुझे कभी टूटने नहीं दिया. आज वह मेरे साथ पिलर की तरह खड़ी है.

लोगों को काम से दिया जबाब : शुरू में मुजफ्फरपुर में लोगों ने बहुत ताना मारा. कोई कहता था कि यह कुकरमुत्ता है तो, कोई कहता था यह गोबर छाता है. लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा. मैं हनुमान जी का बहुत बड़ा भक्त हूं. मैं कह देता था हनुमान जी, उन्हें आप देख लीजिएगा. परेशानियां किसकी जिंदगी में नहीं आती हैं और परेशानियों से मैं घबरा जाता और लोगों को जवाब देता तो, मैं यहां नहीं होता. मैं अपने कर्म पर फोकस किया. मैं उन सभी को अपने काम से जवाब दिया.

हर महीने 50-60 लाख के मशरूम बिकते हैं : शशि भूषण का कहना है कि, एक दिन में 1600 किलो, 1800 किलो, 2000 किलो तो कभी-कभी 2200 किलो तक चला जाता है. यह बताना मुश्किल है कि प्रतिदिन कितना होगा लेकिन, कभी बढ़ता भी है और कभी घटता भी है. प्रतिदिन में 1600 से 1700 किलो बेचता हूं. प्रतिदिन 40 से 50 हजार प्रॉफिट हो जाता है. पिछले साल का जो मेरा बैलेंस रिकॉर्ड था वह 6 से 7 करोड़ का था. मेरा प्रति महीने मशरूम की बिक्री लगभग 50 से 60 लाख रुपए की हो जाती है. ये कभी बढ़ती घटती रहती है.

''मशरूम का रेट जो है वह बढ़ता और घटना रहता है. कभी ₹50 किलो भी बिकता है तो कभी ₹200 किलो में बिकता है. जो लगातार हमसे लेते हैं तो उनका रेट अलग होता है. जो कभी-कभार आता है उनके लिए रेट अलग होता है. मैं यह कोशिश करता हूं कि रेट ऐसा रहे कि आम लोगों के पास मेरा प्रोडक्ट पहुंचे. हमने सबसे ज्यादा महिलाओं को नौकरी दी है और लगभग यह डेढ़ सौ की संख्या में यहां काम करती हैं. इसके अलावा 10-15 पुरुष स्टाफ भी हैं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'मशरूम को नॉनवेज समझा था' : आइये अब आपको शशि भूषण तिवारी के बारे बताते हैं कि वह कैसे 'मशरूम मैन' बन गए. शशि भूषण जब भी उस दिन को याद करते हैं उनके चेहरे पर अजीब सी चमक दिखती है. वो कहते हैं, मैं जब साल 2000 में दिल्ली में रहता था. उस समय पहली बार मैंने मशरूम का स्वाद चखा था. मैं ब्राह्मण परिवार से आता हूं, मुझे लगा कि किसी ने नॉनवेज खिला दिया. बाद में मेरे दोस्तों ने कहा कि नहीं यह वेज है और इसे खाया जा सकता है. मैंने दोबारा खाया तो उसका टेस्ट लाजवाब लगा और वह स्वाद आज तक मेरे जुबान पर है. उसके बाद से मैं इस मशरूम को लेकर एक लंबा संघर्ष किया है.

Shashi Bhushan Tiwari
मुजफ्फरपुर के मशरूम मैन (ETV Bharat)

''जब मैं मशरूम खाया था तो मेरे अंदर यह जिज्ञासा हुई कि आखिर यह चीज है क्या? इसे कैसे बनाया जाता है? इसे कैसे उगाया जाता है? इन तमाम चीजों की जिज्ञासा मेरे अंदर हुई. दोस्तों ने बताया कि जहां मैं काम करता था (आजादपुर मंडी) वहां यह मशरूम आता था. उस समय मैं पहली बार मशरूम को देखा था.''-शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'मशरूम के बारे में जिज्ञासा बढ़ी' : शशि भूषण का कहना था लोगों ने उन्हें बताया गया कि यह खुंबी है. खुंबी मेरे लिए नया शब्द था. फिर बाद में लोगों ने बताया कि इसे मशरूम कहते हैं. लोगों ने कहा कि यह दिल्ली के नजदीक हरियाणा में होता है. इसके बाद समय निकालकर जहां-जहां इसका पैदावार होता था, मैं वहां जाता था. जब भी छुट्टी मिलती थी, मैं वहां चला जाता था. मैं लगातार उसके बारे में जानना चाहता था.

Shashi Bhushan Tiwari
मशरूम मैन की कहानी (ETV Bharat)

''एक बार तो मैं मशरूम खरीद कर घर ले गया था लेकिन, मुझे मशरूम की सब्जी कैसे बनती है, यह बनाने नहीं आया. फिर मेरे दिमाग में यह बात आई कि क्यों नहीं इसे अपने यहां उगाया जाए? अपने यहां उपजाया जाए? मैं लगातार हरियाणा के किसानों से बातचीत करता रहा.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'जो हरियाणा में था सबकुछ बिहार जैसा था' : शशि भूषण ने कहा कि, हरियाणा में जितने भी वर्कर थे लगभग बिहार के रहने वाले थे. जो रॉ मेटेरियल इसके लिए लगता है वह हमारे यहां भी आराम से मिल सकता था. जो क्लाइमेट की जरूरत मशरूम के लिए होती है. जो हरियाणा में है वह बिहार में भी है. फिर मैंने सोचा कि इसे किया जा सकता है और मैं लगातार रिसर्च कर रहा था. चूंकि इसकी डिमांड लगातार बढ़ रही थी. तो मैं वहां ट्रेनिंग करना शुरू किया. मैं सोलन के वैज्ञानिकों से बातचीत की. वहां उनके संपर्क में रहा.

'मैंने अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया' : काफी सारा डाटा इकट्ठा करने के बाद जब मैं इन चीजों को सीख गया. तब मैंने निश्चय किया कि अपने यहां किया जा सकता. हालांकि मेरी पारिवारिक जिम्मेदारियां काफी थी तो, बहुत जल्दी में दिल्ली नहीं छोड़ सकता था लेकिन, मैं 2019 में मन बना लिया कि मैं अब दिल्ली को छोड़ दूंगा और मैं मशरूम की फार्मिंग करूंगा और मैंने अपना बोरिया बिस्तर जल्दी से समेट लिया.

'19 साल लग गए सपने को पूरा करने में' : शशि भूषण का कहना है कि मुजफ्फरपुर में मशरूम लाने के लिए 19 साल लग गए. मेरी जिम्मेदारियां काफी थी. बच्चे उस समय छोटे थे. तमाम जिम्मेदारियों को निभाते हुए, 19 साल लग गए. 2019 में मैंने पूरी तरह से मन बना लिया था और मैं यहां आ गया. यहां भी हालत बहुत अच्छे हो गए थे. बिहार के रोड अच्छे हो गए थे. बिजली अच्छी हो गई थी.

'बैंक वाले फाइनेंस करने से बच रहे थे' : मैंने काम करना शुरू कर दिया. 2020 में बैंक की तरफ से छोटा फाइनेंस दिया गया. इसके पीछे की वजह यह है कि बैंक इस पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं कर रहे थे. बैंक वाले कहते थे कि मशरूम उगा कर ईएमआई कैसे दे सकते हैं? मैं विश्वास दिलाता रहा लेकिन बैंक लोन नहीं दे रहा था. मैं लगातार संघर्ष कर रहा था.

''बैंक आफ इंडिया को मैंने कन्विंस कर लिया. मैंने अपने प्रोजेक्ट को बताया और इस मशरूम की फार्मिंग को मैंने बताया. मैंने बैंक मैनेजर को कहा कि पंजाब का पापुलेशन 4 करोड़, हरियाणा का पॉपुलेशन दो करोड़ और यह दोनों मिलाकर 6 करोड़ लोग पूरी तरह से बिहार के 18 करोड़ लोगों को अपना प्रोडक्ट बेचते हैं. पंजाब हरियाणा के प्रोडक्ट के लिए बिहार सबसे बड़ा मार्केट है. जबकि मैनपावर हमारे पास सबसे ज्यादा है. बैंक मैनेजर उस समय कन्वेंस हो गए और उन्होंने मुझे लोन दिया.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

'मशरूम को लाइफ देने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाया' : शशि भूषण ने कहा कि, मैंने 6 कमरे का अपना फार्म हाउस शुरू किया. धीरे-धीरे बढ़कर आज 20 कमरे का फार्म हाउस है. पहले बहुत सारी चुनौतियां थी. कभी ट्रांसपोर्टेशन की दिक्कत थी तो, कभी हड़ताल हो जाता तो, कभी पर्व त्यौहार हो जाना, इससे मुश्किल होती थी. फिर मैंने वैज्ञानिकों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह बहुत जल्द खराब होने वाला आइटम है. फिर मैं इस पर काम करना शुरू किया और फिर मैंने प्रोसेसिंग यूनिट लगाया. पहले नुकसान होता था अब डब्बे में पैक करके उसे 2 साल का लाइफ मैंने दे दिया है. अब यह ऑनलाइन पर भी बिकता है.

Shashi Bhushan Tiwari
कैसे होता है मशरूम का उत्पादन? (ETV Bharat)

''मैं अपने दिल की बात बताता हूं. मैंने अपनी पत्नी के लिए कुछ गोल्ड भी बनवाए थे. जब मुझे लोन लेना था और बैंक ने कहा कि लिक्विड लेंगे तो, मेरी पत्नी ने सहर्ष मुझे अपना सारा सोना दे दिया. कभी भी यह नहीं पूछा कि यह किसके लिए, क्यों ले रहे हैं? मैं अपना सोना नहीं दूंगी, उन्होंने अपना मंगलसूत्र तक दे दिया. इस फॉर्म को खड़ा करने के लिए उन्होंने बहुत संघर्ष किया. उन्होंने मुझे बहुत हिम्मत दिया. उनको यह लगता था कि मैं कुछ भी कर सकता हूं.''- शशि भूषण तिवारी, मशरूम मैन

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