देहरादूनः आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस है. नर्स दिवस मानने का मुख्य उद्देश्य है कि स्वास्थ्य सेवाओं में नर्सों की एक बड़ी भागीदारी को सराहा जा सके. इलाज के दौरान डॉक्टर के साथ नर्स भी एक बड़ी भूमिका निभाती है. आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में ऑक्सीलियरी नर्स एंड मिडवाइफ (एएनएम) लोगों को न सिर्फ जागरूक करती हैं. बल्कि बच्चों के टीकाकरण के साथ ही गर्भवती महिलाओं का भी विशेष ध्यान रखती हैं. बावजूद इसके नर्सों को वो तवज्जों नहीं मिल पाती है, जो उनको मिलना चाहिए. उत्तराखंड राज्य में क्या है नर्सों की स्थिति? किन दिक्कतों का करना पड़ता है सामना?
अस्पतालों में भर्ती किसी भी मरीज को ठीक करने में दवा और डॉक्टर्स के साथ ही मरीजों का देखभाल करने वाली नर्सों की भी बड़ी भूमिका होती है. क्योंकि ये नर्स मरीजों के स्थितियों की मॉनिटरिंग करना, मरीजों की देखभाल के साथ ही चिकित्सीय सलाह भी देती है. ऐसे में मरीजों का देखभाल करने वाली नर्सों के सम्मान और उनके योगदान की सराहना करने को लेकर हर साल 12 मई को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाया जाता है. अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस मनाने की घोषणा साल 1974 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस ने की थी. ऐसे में मॉडर्न नर्सिंग की जन्मदाता फ्लोरेंस नाइटिंगेल के सम्मान में उनके जन्मदिन पर हर साल इंटरनेशनल नर्सेस डे मनाया जाता है.
उत्तराखंड में वर्षवार मेरिट के आधार पर हो रही है भर्ती: उत्तराखंड में हर साल हजारों की संख्या में युवक और युवतियां नर्सिंग कोर्स कर पासआउट होती हैं. ऐसे में राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनी रहती है कि नर्सिंग की पढ़ाई कर चुके युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जाए. इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार ने कुछ साल पहले नर्सिंग अधिकारियों के भर्ती पर बड़ा निर्णय लिया था. जिसके तहत वर्षवार मेरिट के आधार पर नर्सिंग अधिकारियों की नियुक्ति राजकीय चिकित्सालयों और मेडिकल कॉलेज में की जाएगी. इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार ने निर्णय लिया था कि स्थाई निवास प्रमाण पत्र वाले युवाओं की ही नियुक्ति की जाएगी. इसके लिए उत्तराखंड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड, बारीकी से अभ्यर्थियों के प्रमाण पत्रों को जांच करने के बाद चयनित करेगा.
13 से 15 हजार रुपए में नौकरी करने को मजबूर हैं नर्स: उत्तराखंड की बात करें तो हर साल हजारों की संख्या में युवा, नर्सिंग की पढ़ाई पूरी कर नौकरी की तलाश में जुट जाते हैं. ताकि अपने भविष्य को संवारने के साथ ही मरीजों की सेवा कर सकें. लेकिन आज की स्तिथि यह है कि कॉन्ट्रैक्ट व्यवस्था शुरू होने के बाद नर्स को 13 से 15 हजार रुपए में नौकरी करने पर मजबूर होना पड़ता है. राजकीय चिकित्सालयों में काम कर रही कई नर्सों ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए बताया कि उनकी सैलेरी बहुत कम है. लेकिन जिम्मेदारियां काफी होती है. अलग-अलग डिपार्टमेंट में काम कर रही नर्सों का काम भिन्न भिन्न होता है. हालांकि, उन्हें नौकरी का डर भी सताता रहता है कि कहीं वो बेरोजगार ना हो जाए.
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