पलामू: अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति कुछ ही महीनों में कमजोर हो गई थी. लेकिन देश के कुछ ऐसे इलाके थे जहां बहादुर योद्धा के बदौलत यह क्रांति लंबे वक्त तक चली थी. यह इलाका था पलामू और क्रांतिकारी थे दो भाई नीलांबर और पीतांबर. नीलांबर-पीतांबर गुरिल्ला वार में पारंगत थे, लेकिन अंग्रेजों और स्थानीय जमींदारों के छल के कारण दोनों पकड़े गए. जिसे बाद में अंग्रेजों ने दोनों भाइयों को फांसी पर चढ़ा दिया था. झारखंड से करीब 250 किलोमीटर दूर है चेमो सान्या गांव, जो नीलांबर और पीतांबर का निवास स्थान था. दरअसल, 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में विद्रोह हुआ और एक क्रांति ने जन्म लिया था. क्रांति के वक्त पीतांबर रांची में रहा करते थे. पूरे देश में क्रांति की खबर आग की तरह फैल गई थी, जिसके बाद पीतांबर वापस अपने गांव लौट गए. पीतांबर और उनके भाई नीलांबर ने चेमो सान्या में भोक्ता, खरवार, चेरो और जागीरदारों के साथ बैठक की. इसी बैठक में क्रांति का बिगुल फूंका गया और गुरिल्ला वार शुरू हो गया.
कोयला सप्लाई रोकने से अंग्रेजों में बढ़ी थी बौखलाहट
हमले की शुरुआत हुई रेलवे स्टेशन से. नीलांबर-पीतांबर ने सैकड़ो लड़ाकों के साथ राजहरा के रेलवे स्टेशन पर हमला कर दिया और अंग्रेजों की कोयला सप्लाई को रोक दिया गया. इस घटना के बाद अंग्रेज बौखला गए. उस दौरान लेफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में अंग्रेजों की एक बड़ी फौज पलामू पहुंची और नीलांबर-पीतांबर के ठिकानों पर हमला कर दिया. इसके बाद छापेमारी करने लगे. इस दौरान नीलांबर-पीतांबर के फौजी को नुकसान पहुंचा लेकिन दोनों भाई बच गए. बाद में अंग्रेजों ने कर्नल डाल्टन को बड़ी फौज के साथ पलामू भेज दिया, जिसमें मद्रास इन्फेंट्री के सैनिक, घुड़सवार और विशेष बंदूकधारी शामिल थे.
24 दिनों का ठिकाना लेकर अंग्रेजों ने मचाई थी तबाही
कर्नल डाल्टन की फौज नीलांबर-पीतांबर को खोजते हुए फरवरी 1858 में चेमो सान्या पहुंची थी. कर्नल डाल्टन लगातार 24 दिनों से चेमो सान्या में अपना ठिकाना ले रखे थे. इस दौरान चेरो, भोक्ता और खरवार के लड़ाकों को पकड़ लिया गया और उन पर अत्याचार किया जाने लगा. फिर भी दोनों भाईयों ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को जारी रखा हुआ था. कहा जाता है कि भगवान बिरसा मुंडा से पहले नीलांबर-पीतांबर ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी. इतिहास के शोध कर रहे छात्र अवधेश कुमार का कहना है कि नीलांबर-पीतांबर गुरिल्ला लड़ाई में पारंगत थे. दोनों योद्धा भाईयों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
धोखे से पकड़े गए नीलांबर-पीतांबर
लेकिन इस बीच 1859 में स्थानीय जमींदारों ने नीलांबर-पीतांबर को धोखा दे दिया. जिसका परिणाम यह हुआ कि दोनों भाई नीलांबर-पीतांबर अंग्रेजों के चंगुल में फंस गए और फिर 28 मार्च 1859 को पलामू के लेस्लीगंज में एक पेड़ पर सरेआम नीलांबर और पीतांबर को फांसी पर लटका दिया गया. दोनों वीर योद्धा भाइयों के बलिदान को सदैव याद की जाती है. खासकर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर, इन स्वतंत्रता सेनानियों को जरूर याद किया जाता है. क्योंकि आज हम आजादी के साथ जिस राज्य में रह रहे हैं तो उसके पीछे इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान है.
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