पटना: बिहार में नदी जोड़ने योजना की चर्चा उसी समय से हो रही है जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे.अटल जी की जयंती पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के केन बेतवा नदी जोड़ योजना की शुरुआत कर दी है. केन बेतवा योजना अब जमीन पर उतरने वाला है पीएम मोदी ने इसकी शुरुआत कर दी है लेकिन बिहार की कोसी मेची पर ग्रहण समाप्त नहीं हो रहा है.
सीएम नीतीश ने कई बार की है कोशिश: मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी कई अवसरों पर यह मामला उठाते रहे हैं. इसके बाद इस परियोजना को आगे बढ़ने पर सहमति बनी और अब यह बजट में भी प्रावधान हो गया. बता दें कि इस योजना से अररिया के 59642 हेक्टेयर, पूर्णिया के 59970 हेक्टेयर, किशनगंज के 39548 हेक्टेयर और कटिहार के 35635 हेकटेयर जमीन में सिंचाई की सुविधा होगी.
बिहार सरकार केंद्र से गुहार लगा चुकी है: बिहार में कोसी-मेची नदी योजना की चर्चा पिछले दो दशक से हो रही है. नदियों को जोड़ने की चर्चा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में खूब हुई थी, क्योंकि बिहार का बड़ा हिस्सा बाढ़ प्रभावित है, इसलिए बिहार सरकार नदियों को जोड़ने की योजना को लेकर कई बार केंद्र से गुहार लगा चुकी है. कोसी मेची नदी योजना की स्वीकृति मिलने के बाद भी उस पर काम शुरू नहीं हुआ है, क्योंकि जब स्वीकृति मिली तो उस समय 4900 करोड़ों की राशि इस योजना पर खर्च होने वाली थी.
राशि को लेकर मामला फंसा: अटल जी की सरकार में केन बेतवा और कोसी मेची नदी जोड़ योजना पर एक साथ काम आगे बढ़ा था. लेकिन केन बेतवा को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय योजना के तहत स्वीकृत कर दिया जिससे 90:10 के रेशियों में राशि उपलब्ध हो गई लेकिन बिहार की योजनाओं को केंद्र सरकार ने स्वीकृति तो जरूर दी, लेकिन राशि 60: 40 के रेशियों में स्वीकृत किया और मामला यहीं फंस गया. नीतीश सरकार के बार-बार मांग के बाद भी तक यह योजना लटकी हुई है.
डीपीआर की राशि भी कैबिनेट से स्वीकृत: 2019 में ही केंद्र सरकार ने इस योजना की स्वीकृति दे दी थी. जिसमें 60% राशि केंद्र सरकार देती और 40% राज्य सरकार को खर्च करना पड़ता. बिहार सरकार की ओर से कोसी मेची नदी जोड़ योजना के लिए दो फेज की डीपीआर की राशि भी कैबिनेट से स्वीकृत कर दी है. पहले पेज का डीपीआर बन भी गया है और लंबे समय से एक केंद्र सरकार के पास अटका हुआ है.
केंद्र से 90:10 के रेशियों में राशि की मांग: जब संजय झा बिहार के जल संसाधन मंत्री थे तब उनके स्तर से कई बार केंद्र को पत्र लिखा गया. बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय चौधरी ने अभी हाल ही में दिल्ली में नदियों के जोड़ने के लिए बनी विशेष समिति की 22वीं बैठक में भी केंद्रीय जल शक्ति मंत्री से मुलाकात की थी और बिहार की नदी जोड़ परियोजना को प्राथमिकता के आधार पर स्वीकृति प्रदान करने की मांग की थी.
बिहार की बड़ी परियोजना: विजय चौधरी ने 90:10 के अनुपात में कोसी मेची परियोजना के लिंक परियोजना की तर्ज पर करने की स्वीकृति देने की भी मांग की थी. बिहार सरकार का तर्क है जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने केन बेतवा परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना के तहत शामिल किया है. बिहार की भी कोसी मेची नदी जोड़ योजना को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करना चाहिए क्योंकि इसमें भी 2 लाख हेक्टेयर से अधिक की सिंचाई की सुविधा होने वाली है और बिहार जैसे राज्य के लिए यह बड़ी परियोजना है.
राशि चार से पांच गुना बढ़ चुका है: हालांकि बजट में केंद्र सरकार में 11500 करोड़ की राशि बाढ़ प्रबंधन के लिए दी है. लेकिन कोसी मेची को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. कोसी मेची नदी जोड़ योजना को लेकर 2013-14 में बिहार सरकार ने एक आकलन किया था उस समय 3000 करोड़ की राशि इस योजना पर खर्च होती है लेकिन अब यह राशि चार से पांच गुना बढ़ चुका है.
जितना विलंब होगा राशि उतनी बढ़ेगी: एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का कहना है कि जितना विलंब होगा राशि उतनी बढ़ेगी. कोसी मेची नदी जोड़ योजना अररिया, पूर्णिया, किशनगंज और कटिहार में बड़ी आबादी को बाढ़ से राहत दिलाएगा. इसके साथ 2 लाख 14813 हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा होगी.
120 किलोमीटर में कैनाल का निर्माण होगा: विद्यार्थी विकास ने बताया कि कोसी मेची योजना के माध्यम से कोसी बेसिन के अतिरिक्त पानी को महानंदा बेसिन में लाया जाएगा इसके लिए 120 किलोमीटर में कैनाल का निर्माण होगा. यह कैनाल नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगा। इस योजना के तहत कंकई, रावता, बकरा जैसी छोटी नदियों को भी जोड़ने की तैयारी है.
बाढ़ से मिलेगी मुक्ति: बिहार सरकार का एक तरफ यह तर्क रहा है कि जब तक नेपाल में डैम नहीं बन जाता है कोसी की तबाही से बचना संभव नहीं है लेकिन कोसी मेची नदी जोड़ योजना के माध्यम से भी बड़े हिस्से को बाढ़ से बचाना संभव है साथ ही इससे सिंचाई की सुविधा लाखों किसानों को मिलेगी.
2006 में शुरू हुई पहल: बाढ़ पर लंबे समय से काम करने वाले इंजीनियर दिनेश मिश्रा का कहना है कि बिहार में कोसी मेची लिंक 2004 से ही केंद्र सरकार ने गंभीरता पूर्वक विचार करना शुरू किया था. बिहार सरकार की ओर से 2006 में इस पर पहल शुरू हुई. नेशनल वाटर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने 2010 में इस परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट बिहार सरकार को दी थी.
सिंचाई सुविधा को मिला बल: दिनेश मिश्रा ने कहा कि कोसी मेची लिंक के निर्माण के बाद अररिया में 69000 हेक्टेयर, किशनगंज में 39000 हेक्टेयर, पूर्णिया में 69000 हेक्टेयर और कटिहार में 35000 हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई की सुविधा मिलने लगेगी ऐसा दावा किया गया. बाढ़ की समस्या के हल होने का सपना भी देखा जाने लगा.
पूर्वी कोसी नहर मेची नदी में मिलेगा: इस योजना में पूर्वी कोसी नहर जिसकी लंबाई अभी 41.30 किलोमीटर है. अब इसको 76.02 किलोमीटर बढ़ा कर मेची नदी में मिला दिया जाएगा. दिनेश मिश्रा ने कहा कि इस योजना की लागत शुरू में 2900 करोड़ रुपए बताई जा रही थी जो बाद में 6300 करोड़ पर तक हो गई है और अब तो यह काफी अधिक बढ़ चुका है.
"अटल जी ने बिहार को कई परियोजना दी थी. कोसी मेची परियोजना भी है. इसे लटका हुआ नहीं कहना चाहिए. इस पर काम चल रहा है और जमीन पर भी उतरेगा. अटल जी का जो भी सपना है उसे जरूर पूरा किया जाएगा." - हरि सहनी, भाजपा मंत्री
"हर साल नेपाल से आने वाली पानी के कारण उत्तर बिहार के बड़े हिस्से में तबाही होती है. इसीलिए इस महत्वाकांक्षी योजना को तैयार किया गया. यदि इस योजना में और विलंब हुआ तो उसकी लागत और बढ़ेगी. यदि जल्द जमीन पर उतर जाएगा तो इसका लाभ उत्तर बिहार के बड़े हिस्से को मिलना तय है." -सुनील पांडे, राजनीतिक विशेषज्ञ
पटना हाईकोर्ट ने दिया था निर्देश: पटना हाई कोर्ट के तरफ से भी केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया था जल्द से जल्द फंडिंग को लेकर फैसला कर लिया जाए. केंद्र सरकार की तरफ से 60:40 रेशियों में फैसला तो किया गया है लेकिन उस पर बिहार सरकार तैयार नहीं है और अब डबल इंजन की सरकार में सब की नजर है कि केंद्र सरकार इस मामले में जल्द पहल करेगी.
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