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सिहावा के श्रृंगी ऋषि के यज्ञ से हुआ था राम का जन्म, जानिए अयोध्या नगरी से क्या था नाता ?

Shringi Rishi of Sihawa छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले से भगवान श्रीराम का खास नाता रहा है. क्योंकि भगवान श्री रामचंद्र जी का जन्म यज्ञ से हुआ था. ये यज्ञ श्रृंगी ऋषि ने करवाया था,जिनका आश्रम धमतरी जिले में आज भी मौजूद हैं.आईए जानते हैं कैसे राम के जन्म में श्रृंगी ऋषि ने भूमिका निभाई.

Shringi Rishi of Sihawa
रामचंद्र जी का जन्म यज्ञ से हुआ
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jan 19, 2024, 11:38 PM IST

रामचंद्र जी का जन्म यज्ञ से हुआ

धमतरी : सिहावा के महेंद्रगिरी पर्वत पर श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ था, यहां आज भी श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. यहीं से महानदी का उद्गम भी हुआ है. कहते है वनवास के दौरान भगवान राम ने भी महेंद्रगिरी पर्वत पर समय बिताया था. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस इलाके को रामवनगमन पथ में शामिल किया है. आज जब अयोध्या में श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है,ऐसे में धमतरी जिले का श्रृंगी ऋषि पर्वत फिर से श्रद्धालुओं को बीते दौर की याद दिला रहा है.

क्या है धमतरी से प्रभु श्रीराम का नाता ? : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में करीब 160 किलोमीटर दूर धमतरी जिले में बसा है ग्राम पंचायत सिहावा. जो महेंद्रगिरी पर्वत के नीचे और महानदी के तट पर बसा है. सिहावा पहुंचते ही ऊंचे पहाड़ पर मंदिर और उस पर लहराते ध्वज को नीचे से ही देखा जा सकता है. इसी पहाड़ की चोटी पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. आम बोलचाल की भाषा में इसे श्रृंगी ऋषि पर्वत भी कहा जाता है.

श्रृंगी ऋषि में हो रही हैं तैयारियां : श्रृंगी ऋषि का आश्रम पहले वीरान था. लेकिन आज यहां मंदिर, मंडप, सीढ़ियां, बिजली- पानी सभी चीजों का इंतजाम है. लोगों के दान और पंचायत की मदद से आश्रम के स्वरूप को बदला गया है. करीब साढ़े चार सौ सीढ़ियां चढ़कर आप आश्रम पहुंच सकते हैं. रामलला प्राण प्रतिष्ठा को लेकर यहां भी यज्ञ की तैयारी चल रही है. मंडप, ध्वज, कलश, रंगोली से पूरे आश्रम को सजाया गया है. ये एक सुखद संयोग ही है कि 2017 में स्थानीय वेदाचार्यो और पुजारियों ने 21 जनवरी को ही श्रृंगी ऋषि का प्रतिष्ठापन किया था. इस साल 2024 में 22 तारीख को अयोध्या में रामलला का प्रतिष्ठापन हो रहा है.

क्या है राम का श्रृंगी से नाता ? : रामचरित मानस के बाल कांड में बताया गया है कि जब राजा दशरथ को उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र नहीं प्राप्त हो रहा था. तब वो बड़े परेशान थे. तब महर्षि वशिष्ट ने उन्हे श्रृंगी ऋषि के शरण में जाने की सलाह दी थी. ऐसा कहा जाता है उस युग में सिर्फ श्रृंगी ऋषि ने ही पुत्रयेष्ठी मंत्र सिद्ध किया था.महर्षि वशिष्ट के कहे अनुसार राजा दशरथ सिहावा के महेंद्र गिरी पर्वत आए.इसके बाद श्रृंगी ऋषि की शरण में जाकर उनसे पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की प्रार्थना की. राजा दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या आए जहां उन्होंने पुत्रयेष्ठी यज्ञ संपन्न कराया.यज्ञ से प्राप्त खीर को राजा दशरथ की तीनों रानियों के खिलाया गया. इसके बाद ही भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन का जन्म हुआ था.

कौन थे श्रृंगी ऋषि ?: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्रृंगी ऋषि का जन्म हिरणी के गर्भ से हुआ था. उनके माथे पर सींग था. सींग इसी कारण उनका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा. कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि महर्षि विभांडक के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र थे. कथाओं में ये प्रसंग आता है कि विभांडक महान तपस्वी थे. जो महेंद्र गिरी पर्वत पर रहते थे. साथ ही वो बेहद आकर्षक देहयष्ठी वाले थे. स्वर्ग की अप्सराएं उन पर मोहित हो जाती थी. एक बार जब विभांडक ऋषि तपस्या कर रहे थे. तब एक अपसरा हिरणी का रूप लेकर उनके करीब चली गई. इसी समय विभांडक ऋषि का वीर्य स्खलित होकर पास के जल कुंड में मिल गया. इस पानी को उस हिरणी ने पी लिया और गर्भवती हो गई. इसी हिरणी के गर्भ से श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ था. ये भी कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि हमेंशा महेंद्रगिरी पर्वत पर ही जन्में, यहीं रहे. यहां तपस्या की. उन्होंने कभी किसी स्त्री को नहींं देखा था.

ऋषि की माता का भी मंदिर : सिहावा के श्रृंगी ऋषि पर्वत पर माता शांता का भी छोटा सा मंदिर है. माता शांता राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान थी. यानी भगवान राम की बड़ी बहन थी. जिन्हें माता कौशिल्या की बहन ने गोद लिया था. राजा दशरथ ने पुत्रयेष्ठी यज्ञ के बाद, श्रृंगी ऋषि को श्रेष्ठ दक्षिणा के रूप में अपनी बेटी शांता दी थी. इसी कारण श्रृंगी ऋषि आश्रम के पास माता शांता का मंदिर भी बनाया गया है. मान्यता ये भी है कि आज भी निसंतान दंपत्ति श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पूजापाठ और यज्ञ के बाद संतान प्राप्त करते हैं. श्रृंगी ऋषि पर्वत से ही छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी का भी उद्गम माना गया है. पर्वत पर एक छोटा कुंड है. जो कभी सूखता नहीं है. वनवास के समय भगवान राम लंबे समय तक, महेंद्रगिरी पर्वत के आसपास रहे. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस इलाके को राम वन गमन पथ में शामिल किया है.

श्रद्धालु करते हैं पूजा पाठ : इस आश्रम में कई प्राचीन खंडित प्रतिमाओं को भी सहेज कर रखा गया है. इनके बारे में कोई नहीं जानता कि ये क्या हैं. किस निर्माण का हिस्सा हैं. लेकिन इन्हें सुरक्षित रखा गया है. आश्रम में चट्टान के नीचे श्रृंगी ऋषि की तप करते हुए प्रतिमा है. श्रद्धालु यहां आते हैं पूजा करते हैं. इस आश्रम का प्रबंधन और रखरखाव गांव के ही पुजारी और स्थानीय वेदाचार्य करते हैं. जिन्हें आम लोगों की तरफ से पूरी मदद मिलती है.

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क्या है धमतरी से प्रभु श्रीराम का नाता ? : छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में करीब 160 किलोमीटर दूर धमतरी जिले में बसा है ग्राम पंचायत सिहावा. जो महेंद्रगिरी पर्वत के नीचे और महानदी के तट पर बसा है. सिहावा पहुंचते ही ऊंचे पहाड़ पर मंदिर और उस पर लहराते ध्वज को नीचे से ही देखा जा सकता है. इसी पहाड़ की चोटी पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम है. आम बोलचाल की भाषा में इसे श्रृंगी ऋषि पर्वत भी कहा जाता है.

श्रृंगी ऋषि में हो रही हैं तैयारियां : श्रृंगी ऋषि का आश्रम पहले वीरान था. लेकिन आज यहां मंदिर, मंडप, सीढ़ियां, बिजली- पानी सभी चीजों का इंतजाम है. लोगों के दान और पंचायत की मदद से आश्रम के स्वरूप को बदला गया है. करीब साढ़े चार सौ सीढ़ियां चढ़कर आप आश्रम पहुंच सकते हैं. रामलला प्राण प्रतिष्ठा को लेकर यहां भी यज्ञ की तैयारी चल रही है. मंडप, ध्वज, कलश, रंगोली से पूरे आश्रम को सजाया गया है. ये एक सुखद संयोग ही है कि 2017 में स्थानीय वेदाचार्यो और पुजारियों ने 21 जनवरी को ही श्रृंगी ऋषि का प्रतिष्ठापन किया था. इस साल 2024 में 22 तारीख को अयोध्या में रामलला का प्रतिष्ठापन हो रहा है.

क्या है राम का श्रृंगी से नाता ? : रामचरित मानस के बाल कांड में बताया गया है कि जब राजा दशरथ को उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र नहीं प्राप्त हो रहा था. तब वो बड़े परेशान थे. तब महर्षि वशिष्ट ने उन्हे श्रृंगी ऋषि के शरण में जाने की सलाह दी थी. ऐसा कहा जाता है उस युग में सिर्फ श्रृंगी ऋषि ने ही पुत्रयेष्ठी मंत्र सिद्ध किया था.महर्षि वशिष्ट के कहे अनुसार राजा दशरथ सिहावा के महेंद्र गिरी पर्वत आए.इसके बाद श्रृंगी ऋषि की शरण में जाकर उनसे पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की प्रार्थना की. राजा दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या आए जहां उन्होंने पुत्रयेष्ठी यज्ञ संपन्न कराया.यज्ञ से प्राप्त खीर को राजा दशरथ की तीनों रानियों के खिलाया गया. इसके बाद ही भगवान राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघन का जन्म हुआ था.

कौन थे श्रृंगी ऋषि ?: धार्मिक ग्रंथों के अनुसार श्रृंगी ऋषि का जन्म हिरणी के गर्भ से हुआ था. उनके माथे पर सींग था. सींग इसी कारण उनका नाम श्रृंगी ऋषि पड़ा. कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि महर्षि विभांडक के पुत्र और कश्यप ऋषि के पौत्र थे. कथाओं में ये प्रसंग आता है कि विभांडक महान तपस्वी थे. जो महेंद्र गिरी पर्वत पर रहते थे. साथ ही वो बेहद आकर्षक देहयष्ठी वाले थे. स्वर्ग की अप्सराएं उन पर मोहित हो जाती थी. एक बार जब विभांडक ऋषि तपस्या कर रहे थे. तब एक अपसरा हिरणी का रूप लेकर उनके करीब चली गई. इसी समय विभांडक ऋषि का वीर्य स्खलित होकर पास के जल कुंड में मिल गया. इस पानी को उस हिरणी ने पी लिया और गर्भवती हो गई. इसी हिरणी के गर्भ से श्रृंगी ऋषि का जन्म हुआ था. ये भी कहा जाता है कि श्रृंगी ऋषि हमेंशा महेंद्रगिरी पर्वत पर ही जन्में, यहीं रहे. यहां तपस्या की. उन्होंने कभी किसी स्त्री को नहींं देखा था.

ऋषि की माता का भी मंदिर : सिहावा के श्रृंगी ऋषि पर्वत पर माता शांता का भी छोटा सा मंदिर है. माता शांता राजा दशरथ की सबसे बड़ी संतान थी. यानी भगवान राम की बड़ी बहन थी. जिन्हें माता कौशिल्या की बहन ने गोद लिया था. राजा दशरथ ने पुत्रयेष्ठी यज्ञ के बाद, श्रृंगी ऋषि को श्रेष्ठ दक्षिणा के रूप में अपनी बेटी शांता दी थी. इसी कारण श्रृंगी ऋषि आश्रम के पास माता शांता का मंदिर भी बनाया गया है. मान्यता ये भी है कि आज भी निसंतान दंपत्ति श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पूजापाठ और यज्ञ के बाद संतान प्राप्त करते हैं. श्रृंगी ऋषि पर्वत से ही छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी का भी उद्गम माना गया है. पर्वत पर एक छोटा कुंड है. जो कभी सूखता नहीं है. वनवास के समय भगवान राम लंबे समय तक, महेंद्रगिरी पर्वत के आसपास रहे. छत्तीसगढ़ सरकार ने इस इलाके को राम वन गमन पथ में शामिल किया है.

श्रद्धालु करते हैं पूजा पाठ : इस आश्रम में कई प्राचीन खंडित प्रतिमाओं को भी सहेज कर रखा गया है. इनके बारे में कोई नहीं जानता कि ये क्या हैं. किस निर्माण का हिस्सा हैं. लेकिन इन्हें सुरक्षित रखा गया है. आश्रम में चट्टान के नीचे श्रृंगी ऋषि की तप करते हुए प्रतिमा है. श्रद्धालु यहां आते हैं पूजा करते हैं. इस आश्रम का प्रबंधन और रखरखाव गांव के ही पुजारी और स्थानीय वेदाचार्य करते हैं. जिन्हें आम लोगों की तरफ से पूरी मदद मिलती है.

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