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कौन था कारगिल की जंग का पहला शहीद ? महज 22 साल में दिया था सर्वोच्च बलिदान, पाकिस्तान ने शव के साथ की थी दरिंदगी - Kargil war first martyr

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jun 29, 2024, 7:08 PM IST

Updated : Jun 29, 2024, 8:01 PM IST

Saurbah Kalia 48th Birth Anniversary: शहीद कैप्टन सौरव कालिया कांगड़ा जिला के पालपुर के रहने वाले थे. वह CDS एग्जाम क्वालीफाई कर बतौर अधिकारी थलसेना में भर्ती हुए थे.

KARGIL WAR FIRST MARTYR
शही कैप्टन सौरव कालिया की 48वीं जयंती (Etv Bharat GFX)

First Martyr of Kargil War: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... ये अल्फाज देश के जाबांजों की शहादत पर सुनाई देते हैं लेकिन देश का एक सपूत ऐसा भी था जिसके बारे में आज बहुत कम लोग जानते हैं. करगिल की जंग जीतने का जश्न देशभर में हर साल मनाया जाता है और ये उन गिने चुने मौकों में से एक होता है जब देश अपने शहीदों को याद करता है. लेकिन इस जाबांज की कहानी के बगैर करगिल की जीत भी अधूरी है और उसका जश्न भी क्योंकि ये उस जंग के पहले शहीद की कहानी है. जिसने महज 22 बरस की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भी उस वक्त बेनकाब हुए जब करगिल के पहले शहीद का शव घर पहुंचा था. उस शहीद का नाम है कैप्टन सौरभ कालिया

डॉक्टर बनाना चाहते थे सौरभ कालिया

करगिल की जंग का जिक्र इस नाम के बिना अधूरा है क्योंकि इस जंग का एक गुमनाम हीरो कैप्टन सौरभ कालिया हैं. 29 जून 1976 को सौरभ कालिया का जन्म अमृतसर में हुआ था. वो मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे. सौरभ कालिया की प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई थी. सौरभ कालिया डॉक्टर बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम भी दिया था. लेकिन अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाया था. प्राइवेट कॉलेजों की भारी भरकम फीस को देखते हुए उन्होंने पालमपुर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की. ग्रेजुएशन करने के बाद सौरव कालिया ने अगस्त 1997 में सीडीएस का एग्जाम क्लीयर कर आईएमए ज्वाइन किया. सौरव कालिया की माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके कालिया है.

KARGIL WAR FIRST MARTYR
कैप्टन सौरव कालिया के घर में रखी उनकी तस्वीरें (ETV Bharat)

कारगिल में हुई थी पहली तैनाती

12 दिसंबर 1998 को सौरव कालिया भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) में कारगिल सेक्टर में हुई. महज 21 साल की उम्र में सौरभ कालिया 4 जाट रेजिमेंट के अधिकारी बने थे. 31 दिसंबर 1998 को 4 जाट रेजिमेंट सेंटर बरेली में प्रस्तुत होने के बाद वह जनवरी 1999 में कारगिल पहुंचे. उस वक्त सीमा पर हालात ठीक नहीं थे लेकिन देश को भनक तक नहीं थी कि कुछ ही दिनों बाद देश इतिहास की सबसे बड़ी जंगों में से एक का हिस्सा बनने वाला है.

पेट्रोलिंग पर गए और वापस नहीं लौटे कैप्टन कालिया

कहते हैं कि करगिल युद्ध में पाकिस्तान की नापाक हरकत का भारतीय सेना को पता भी ना चलता अगर कुछ चरवाहों की नजर कारगिल की पहाड़ियों पर हथियारबंद घुसपैठियों पर ना पड़ी होती. 3 मई 1999 को चरवाहे ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर हथियारबंद लोगों को देखा और फौरन इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी. जिसके बाद कैप्टन कालिया समेत 6 जवानों के एक दल को पेट्रोलिंग के लिए भेजने का फैसला लिया.

first martyr Saurabh Kalia
कारगिल वॉर का पहला शहीद (ETV Bharat)

पाकिस्तान की नापाक हरकत

5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया. 22 दिनों तक कैप्टन सौरव कालिया और उनके साथियों को भारत को बिना सूचना दिए पाकिस्तान ने बंदी बनाकर रखा और कई अमानवीय यातनाएं दीं. उस वक्त भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक सौरभ कालिया और उनकी टीम को 15 मई को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ा और 7 जून तक उन्हें कई यातनाएं दी. जिनेवा कन्वेंशन के मुताबिक युद्धबंदियों के साथ इस तरह का सलूक कोई देश नहीं कर सकता लेकिन पाकिस्तान ने नियम कायदे तो छोड़िये इंसानियत तक को तार-तार कर दिया था.

सौरभ कालिया की शव के साथ दरिंदगी

इसका खुलासा तब हुआ जब पाकिस्तान ने 7 जून 1999 को सौरभ कालिया और उनकी टीम के शव वापस लौटाए. पाकिस्तान ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भारतीय सैनिकों के शरीर को जगह-जगह गर्म सरिये और सिगरेट से दागा गया था. सौरभ कालिया का पार्थिव शरीर जब उनके पैतृक आवास पालमपुर में पहुंचा तो उनके परिजनों की रूह कांप गई, ये सुनकर ही उनके माता-पिता ने अपने बेटे का आखिर दीदार करने से भी इनकार कर दिया था. उस वक्त सौरभ के भाई वैभव ने बताया कि शव को पहचानना बहुत मुश्किल था क्योंकि उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और दांत तोड़ दिए गए थे. चेहरे पर सिर्फ भौहें बची हुई थी, निजी अंगों के साथ भी छेड़छाड़ की गई थी. कुल मिलाकर शहीद कैप्टन कालिया के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार की गई थी. जो जेनेवा कन्वेंशन के साथ-साथ भारत पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते का भी उल्लंघन था.

first martyr Saurabh Kalia
कैप्टन सौरव कालिया का घर (ETV Bharat)

जन्मदिन के दिन घर आने का किया था वादा, उसी महीने मिली शहादत

सौरभ कालिया के भाई वैभव बताते हैं कि सौरभ कालिया के आर्मी ज्वाइन करने के बाद उस वक्त केवल चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी. चिट्ठियों में वो बस इतना ही लिखते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है. सौरभ कालिया ने 30 अप्रैल 1999 को परिवार से आखिरी बार फोन पर बात की थी. उस दिन वैभव का जन्मदिन था. वैभव को जन्मदिन की बधाई देकर वह फॉरवर्ड पोस्ट पर चले गए थे. सौरभ ने वादा किया था कि वो अपने जन्मदिन पर 29 जून को पालमपुर जरूर आएंगे. इसके बाद परिवार से उनकी कभी बात नहीं हो पाई. परिवार को इसके बाद केवल उनके शहीद होने की खबर मिली. शहादत की खबर भी उसी जून के महीने आई जब उनका परिवार जन्मदिन की तैयारी और उनके घर आने की राह देख रहा था.

DR. NK Kalia
डॉ. एनके कालिया, शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के पिता (ETV Bharat file photo)

शहीद सौरभ कालिया को मिले गैलंट्री अवॉर्ड

कैप्टन सौरभ कालिया को कारीगल युद्व का पहला शहीद माना जाता है. इसी को लेकर उन्हें हाइएस्ट गालंट्री अवॉर्ड व न्याय देने की मांग बीते 25 सालों से उठ रही है. सौरभ कालिया की 48वीं जयंती पर मंडी से सांसद कंगना रनौत ने X पर पोस्ट कर लिखा कि सौरभ कालिया एक गुमनाम नायक हैं. उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे.

वहीं, कंगना के साथ करगिल वॉर के हीरो रहे ब्रिगेडियर (रि.) खुशाल ठाकुर ने X पर पोस्ट करते हुए शहीद कैप्टन को याद किया. ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर मंडी जिला से संबंध रखते हैं और करगिल युद्ध में उनकी भी अहम भूमिका थी. उन्होंने कहा पाकिस्तान ने जो यातनाएं सौरभ कालिया को दी थीं वह अमानवीय थीं. ये जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन था. 25 साल के बाद भी परिवार बेटे के लिए दुनियाभर में न्याय मांग रहा है. पिता एनके कालिया ने कथित रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें सजा देने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से संपर्क किया, लेकिन सौरभ कालिया को वह न्याय व सम्मान नहीं मिल सका.

हिमाचल के शहीदों को सलाम

हिमाचल को वीरों की भूमि कहा जाता है. यहां एक से एक कई शूरवीर निकले जो भारत मां की सेवा में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए कभी पीछे नहीं हटे. हिमाचल प्रदेश महज 70 लाख की जनसंख्या वाला छोटा सा राज्य है और इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां के करीब 1096 जवानों ने गैलेंट्री अवॉर्ड जीते हैं जो जनसंख्या की दृष्टि से भारत देश में सबसे ज्यादा है. कैप्टन सौरभ कालिया के अलावा शहीद विक्रम बत्रा जैसे हिमाचल के कई जाबाजों ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए. देश के लिए सर्वस्व कुर्बान करने वाले सभी शहीदों को ईटीवी भारत का सलाम.

ये भी पढ़ें: कंगना रनौत ने पूछा शहीद सौरभ कालिया गुमनाम नायक क्यों, सरकारों पर उठाए सवाल

First Martyr of Kargil War: शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा... ये अल्फाज देश के जाबांजों की शहादत पर सुनाई देते हैं लेकिन देश का एक सपूत ऐसा भी था जिसके बारे में आज बहुत कम लोग जानते हैं. करगिल की जंग जीतने का जश्न देशभर में हर साल मनाया जाता है और ये उन गिने चुने मौकों में से एक होता है जब देश अपने शहीदों को याद करता है. लेकिन इस जाबांज की कहानी के बगैर करगिल की जीत भी अधूरी है और उसका जश्न भी क्योंकि ये उस जंग के पहले शहीद की कहानी है. जिसने महज 22 बरस की उम्र में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया. पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भी उस वक्त बेनकाब हुए जब करगिल के पहले शहीद का शव घर पहुंचा था. उस शहीद का नाम है कैप्टन सौरभ कालिया

डॉक्टर बनाना चाहते थे सौरभ कालिया

करगिल की जंग का जिक्र इस नाम के बिना अधूरा है क्योंकि इस जंग का एक गुमनाम हीरो कैप्टन सौरभ कालिया हैं. 29 जून 1976 को सौरभ कालिया का जन्म अमृतसर में हुआ था. वो मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले थे. सौरभ कालिया की प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई थी. सौरभ कालिया डॉक्टर बनना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम भी दिया था. लेकिन अच्छे कॉलेज में एडमिशन नहीं मिल पाया था. प्राइवेट कॉलेजों की भारी भरकम फीस को देखते हुए उन्होंने पालमपुर की एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से बीएससी की पढ़ाई की. ग्रेजुएशन करने के बाद सौरव कालिया ने अगस्त 1997 में सीडीएस का एग्जाम क्लीयर कर आईएमए ज्वाइन किया. सौरव कालिया की माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके कालिया है.

KARGIL WAR FIRST MARTYR
कैप्टन सौरव कालिया के घर में रखी उनकी तस्वीरें (ETV Bharat)

कारगिल में हुई थी पहली तैनाती

12 दिसंबर 1998 को सौरव कालिया भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) में कारगिल सेक्टर में हुई. महज 21 साल की उम्र में सौरभ कालिया 4 जाट रेजिमेंट के अधिकारी बने थे. 31 दिसंबर 1998 को 4 जाट रेजिमेंट सेंटर बरेली में प्रस्तुत होने के बाद वह जनवरी 1999 में कारगिल पहुंचे. उस वक्त सीमा पर हालात ठीक नहीं थे लेकिन देश को भनक तक नहीं थी कि कुछ ही दिनों बाद देश इतिहास की सबसे बड़ी जंगों में से एक का हिस्सा बनने वाला है.

पेट्रोलिंग पर गए और वापस नहीं लौटे कैप्टन कालिया

कहते हैं कि करगिल युद्ध में पाकिस्तान की नापाक हरकत का भारतीय सेना को पता भी ना चलता अगर कुछ चरवाहों की नजर कारगिल की पहाड़ियों पर हथियारबंद घुसपैठियों पर ना पड़ी होती. 3 मई 1999 को चरवाहे ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर हथियारबंद लोगों को देखा और फौरन इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी. जिसके बाद कैप्टन कालिया समेत 6 जवानों के एक दल को पेट्रोलिंग के लिए भेजने का फैसला लिया.

first martyr Saurabh Kalia
कारगिल वॉर का पहला शहीद (ETV Bharat)

पाकिस्तान की नापाक हरकत

5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया. 22 दिनों तक कैप्टन सौरव कालिया और उनके साथियों को भारत को बिना सूचना दिए पाकिस्तान ने बंदी बनाकर रखा और कई अमानवीय यातनाएं दीं. उस वक्त भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक सौरभ कालिया और उनकी टीम को 15 मई को पाकिस्तानी सेना ने पकड़ा और 7 जून तक उन्हें कई यातनाएं दी. जिनेवा कन्वेंशन के मुताबिक युद्धबंदियों के साथ इस तरह का सलूक कोई देश नहीं कर सकता लेकिन पाकिस्तान ने नियम कायदे तो छोड़िये इंसानियत तक को तार-तार कर दिया था.

सौरभ कालिया की शव के साथ दरिंदगी

इसका खुलासा तब हुआ जब पाकिस्तान ने 7 जून 1999 को सौरभ कालिया और उनकी टीम के शव वापस लौटाए. पाकिस्तान ने दरिंदगी की सारी हदें पार कर दी थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भारतीय सैनिकों के शरीर को जगह-जगह गर्म सरिये और सिगरेट से दागा गया था. सौरभ कालिया का पार्थिव शरीर जब उनके पैतृक आवास पालमपुर में पहुंचा तो उनके परिजनों की रूह कांप गई, ये सुनकर ही उनके माता-पिता ने अपने बेटे का आखिर दीदार करने से भी इनकार कर दिया था. उस वक्त सौरभ के भाई वैभव ने बताया कि शव को पहचानना बहुत मुश्किल था क्योंकि उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और दांत तोड़ दिए गए थे. चेहरे पर सिर्फ भौहें बची हुई थी, निजी अंगों के साथ भी छेड़छाड़ की गई थी. कुल मिलाकर शहीद कैप्टन कालिया के साथ दरिंदगी की सारी हदें पार की गई थी. जो जेनेवा कन्वेंशन के साथ-साथ भारत पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते का भी उल्लंघन था.

first martyr Saurabh Kalia
कैप्टन सौरव कालिया का घर (ETV Bharat)

जन्मदिन के दिन घर आने का किया था वादा, उसी महीने मिली शहादत

सौरभ कालिया के भाई वैभव बताते हैं कि सौरभ कालिया के आर्मी ज्वाइन करने के बाद उस वक्त केवल चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी. चिट्ठियों में वो बस इतना ही लिखते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है. सौरभ कालिया ने 30 अप्रैल 1999 को परिवार से आखिरी बार फोन पर बात की थी. उस दिन वैभव का जन्मदिन था. वैभव को जन्मदिन की बधाई देकर वह फॉरवर्ड पोस्ट पर चले गए थे. सौरभ ने वादा किया था कि वो अपने जन्मदिन पर 29 जून को पालमपुर जरूर आएंगे. इसके बाद परिवार से उनकी कभी बात नहीं हो पाई. परिवार को इसके बाद केवल उनके शहीद होने की खबर मिली. शहादत की खबर भी उसी जून के महीने आई जब उनका परिवार जन्मदिन की तैयारी और उनके घर आने की राह देख रहा था.

DR. NK Kalia
डॉ. एनके कालिया, शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के पिता (ETV Bharat file photo)

शहीद सौरभ कालिया को मिले गैलंट्री अवॉर्ड

कैप्टन सौरभ कालिया को कारीगल युद्व का पहला शहीद माना जाता है. इसी को लेकर उन्हें हाइएस्ट गालंट्री अवॉर्ड व न्याय देने की मांग बीते 25 सालों से उठ रही है. सौरभ कालिया की 48वीं जयंती पर मंडी से सांसद कंगना रनौत ने X पर पोस्ट कर लिखा कि सौरभ कालिया एक गुमनाम नायक हैं. उन्हें वो सम्मान नहीं मिला जिसके वो हकदार थे.

वहीं, कंगना के साथ करगिल वॉर के हीरो रहे ब्रिगेडियर (रि.) खुशाल ठाकुर ने X पर पोस्ट करते हुए शहीद कैप्टन को याद किया. ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर मंडी जिला से संबंध रखते हैं और करगिल युद्ध में उनकी भी अहम भूमिका थी. उन्होंने कहा पाकिस्तान ने जो यातनाएं सौरभ कालिया को दी थीं वह अमानवीय थीं. ये जिनेवा कन्वेंशन का उल्लंघन था. 25 साल के बाद भी परिवार बेटे के लिए दुनियाभर में न्याय मांग रहा है. पिता एनके कालिया ने कथित रूप से जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान करने और उन्हें सजा देने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों से संपर्क किया, लेकिन सौरभ कालिया को वह न्याय व सम्मान नहीं मिल सका.

हिमाचल के शहीदों को सलाम

हिमाचल को वीरों की भूमि कहा जाता है. यहां एक से एक कई शूरवीर निकले जो भारत मां की सेवा में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए कभी पीछे नहीं हटे. हिमाचल प्रदेश महज 70 लाख की जनसंख्या वाला छोटा सा राज्य है और इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि यहां के करीब 1096 जवानों ने गैलेंट्री अवॉर्ड जीते हैं जो जनसंख्या की दृष्टि से भारत देश में सबसे ज्यादा है. कैप्टन सौरभ कालिया के अलावा शहीद विक्रम बत्रा जैसे हिमाचल के कई जाबाजों ने देश की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर कर दिए. देश के लिए सर्वस्व कुर्बान करने वाले सभी शहीदों को ईटीवी भारत का सलाम.

ये भी पढ़ें: कंगना रनौत ने पूछा शहीद सौरभ कालिया गुमनाम नायक क्यों, सरकारों पर उठाए सवाल

Last Updated : Jun 29, 2024, 8:01 PM IST
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