भीलवाड़ा. नारकोटिक्स विभाग के अंतर्गत किसानों की ओर से बोई गई अफीम की फसल पर मौसम की मार देखने मिल रही है, जिसके कारण किसान चिंतित नजर आ रहे हैं. वर्तमान में अफीम की फसल परिपक्व हो गई है. किसानों को परिपक्व अफीम की फसल की खेत से चोरी होने का भी डर है. ऐसे में किसान खेत की मेड़ पर झोपड़ी बनाकर फसल की रखवाली कर रहे हैं.
अफीम की फसल को काले सोने के नाम से भी जानते हैं, जहां अगर अच्छा उत्पादन होता है तो किसानों को भी अच्छा मुनाफा मिलता है. भीलवाड़ा नारकोटिक्स विभाग के अंतर्गत भीलवाड़ा जिले की जहाजपुर, कोटड़ी, मांडलगढ़, बिजोलिया और चित्तौड़गढ़ जिले की रावतभाटा व बेगू तहसील सम्मिलित हैं, जहां भीलवाड़ा नारकोटिक्स विभाग की ओर से इन 6 तहसील के किसानों को प्रति किसान दस आरी का पट्टा दिया गया है.
अफीम की फसल हुई परिपक्व : इन 5445 किसानों को 645 हेक्टेयर भूमि में प्रति 10 आरी (आधा बीघा) अफीम की फसल की बुवाई के लिए पट्टे मिले थे, जहां किसानों ने रबी की फसल की बुवाई के समय ही अफीम की फसल की बुवाई की थी. वर्तमान में अफीम की फसल परिपक्व हो चुकी है, लेकिन पश्चिमी विक्षोभ के कारण बादल छाये जाने से इन किसानों को फसल खराब होने का अंदेशा है.
शीतलहर से बचाव के लिए ये उपाय : कोटड़ी तहसील के वन का खेड़ा गांव के किसान हरीलाल जाट भी अपने खेत में परिपक्व अफीम की फसल की रखवाली कर रहे हैं. उन्होंने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि वो पिछले 10 सालों से अफीम की खेती कर रहे हैं. नारकोटिक्स विभाग ने उन्हें 10 आरी (आधा बीघा) अफीम की बुवाई का पट्टा दे रखा है. फसल की बुवाई के बाद हम सबसे पहले फसल की निराई- गुड़ाई करते हैं. वहीं, इस फसल की 10 बार सिचांई करनी पड़ती है. साथ ही सर्दी की ऋतु में अफीम की फसल को शीतलहर से बचाने के लिए फसल के चारों तरफ मक्के की फसल की बुवाई करते हैं.
फसल का उत्पादन मौसम के कारण फिक्स नहीं : उन्होंने कहा कि फसल का उत्पादन मौसम के कारण फिक्स नहीं है, क्योंकि यह मौसम आधारित फसल है. इसको काला सोना भी कहते हैं. वर्तमान मे मौसम की वजह से इस फसल में भारी नुकसान होने की आशंका है. बादल होने से भी फसल में नुकसान हो रहा है. अफीम के पौधे में कैंसर जैसी बीमारी चल रही है, जिससे अफीम के पौधे पर कुछ परिपक्व डोडे खराब हो चुके हैं. उस डोडे में अफीम का दूध सूख गया है. ऐसे में हमारी सरकार व नारकोटिक्स विभाग से मांग है कि फसलों का भौतिक सत्यापन कर तुलाई के समय अफीम व मार्फिन के तोल में राहत दी जाए.
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फसल चोरी का भी किसानों को भय : किसान हरी लाल जाट ने कहा कि अफीम की फसल परिपक्व हो चुकी है, ऐसे में रात को फसल चोरी का भय रहता है. फसल उत्पादन पर नारकोटिक्स विभाग में अफीम जमा करवानी पड़ती है, अगर फसल चोरी हो जाए तो अगली बार हमारा पट्टा भी कैंसिल हो जाता है. इसलिए हम खेत की मेड़ पर ही 24 घंटे रखवाली करते हैं.
अफीम डोडे के चीरे से पहले करते हैं भगवान की पूजा : किसान हरी लाल जाट ने कहा कि अफीम डोडे पर चीरा लगाया जाता है. इससे डोडे के अंदर दूध निकलता है, इसे अफीम का दूध बोलते हैं. इस दूध को सुखाकर नारकोटिक्स विभाग को जमा करवाया जाता है. डोडे पर चीरा लगाने से पहले हम खेत की मेड़ पर परिवार संग भगवान की विशेष पूजा अर्चना करते है.
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विभाग बोला- हम नहीं, सरकार देती है राहत : भीलवाड़ा नारकोटिक्स विभाग के जिला अफीम अधिकारी डी.के. सिंह ने कहा कि पिछले वर्ष 4.2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मार्फिन का औसत था और इस वर्ष भी यही रखा गया है. फसल खराबे का आकलन हम नहीं करवाते हैं. सरकार अगर गिरदावरी करवाती है, तो वह रिपोर्ट भारत सरकार को भेजते हैं. भारत सरकार अगर औसत मार्फिन में राहत देने का काम करती है, तो हम अफीम तुलाई के समय राहत देते हैं, वरना नहीं.
वहीं, प्रदेश में अफीम किसान संघ समिति के अध्यक्ष बद्रीलाल तेली ने कहा कि लगातार दो-तीन बार पश्चिम विक्षोभ के कारण बादल व बारिश हुई, जिसके कारण अफीम फसल को नुकसान हुआ है. केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह किसानों को राहत दे सके. इसके लिए हम केंद्रीय वित्त मंत्री को ज्ञापन भेजकर अफीम नीति व औसत मार्फिन में राहत देने की मांग करेंगे.