भरतपुर. भक्तों की आस्था और श्रद्धा का कोई अंत नहीं है. भरतपुर के एक व्यक्ति ने अपने घर को मंदिर बनाकर पारे के शिवलिंग को स्थापित करने का संकल्प लिया था, लेकिन वो जीते जी अपने इस संकल्प को पूरा नहीं कर पाया, तो उसके देहांत के बाद उनकी बेटी ने अपने पिता के संकल्प को पूरा किया है. इस शिवलिंग की खास बात यह है कि 15 इंच (सवा फीट) ऊंचा यह शिवलिंग 104 किलो पारे और कुछ मात्रा सोने व चांदी से तैयार कराया गया है. दावा है कि यह प्रदेश का पारे से निर्मित सबसे बड़े आकार का शिवलिंग है. श्रावण मास में जानते हैं भक्त पिता के संकल्प को पूरा करने वाली बेटी और अद्भुत शिवलिंग निर्माण की इस कहानी को.
शहर की आशा सिंघल ने बताया कि नदिया मोहल्ला निवासी उनके पिता राधेश्याम सिंघल और सुशीला देवी के बेटे का 2003 में देहांत हो गया था. बेटे की मौत ने राधेश्याम और सुशीला देवी को झकझोर कर रख दिया. बेटे की मौत के बाद राधेश्याम के मन में वैराग्य भाव जाग गया और उन्होंने वर्ष 2006 में अपने घर को ही शिवालय के रूप में परिवर्तित करने का संकल्प लिया. आशा सिंघल ने बताया कि माता पिता ने घर को मंदिर के रूप में परिवर्तित कराकर उसमें 51 किलो वजन के पारे से निर्मित शिवलिंग स्थापित कराने का संकल्प लिया था. वो धीरे-धीरे पारा खरीद कर इकट्ठा करते रहे और जीते जी उन्होंने 40 किलो पारा एकत्रित कर लिया था, लेकिन संकल्प पूरा होने से पहले ही पिता राधेश्याम वर्ष 2012 में गुजर गए.
बेटी ने किया पिता के संकल्प को पूरा : आशा सिंघल ने बताया कि पिता राधेश्याम ने जीते जी अपने घर का एक दान पात्र तैयार किया, जिसमें इस घर को मंदिर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए लिखा गया. पिता के गुजरने के बाद वर्ष 2021 में बेटी आशा सिंघल ने पिता का संकल्प पूरा करने का बीड़ा उठाया. पिता ने 51 किलो पारे से निर्मित शिवलिंग का संकल्प लिया था और बेटी ने इसे बढ़ाकर 101 किलो का स्थापित करने का प्रण ले लिया.
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कई दिनों तक नहीं मिले कारीगर : आशा सिंघल ने बताया कि शिवलिंग निर्माण के लिए हमने 14 लाख रुपए में 110 किलो पारा खरीद लिया, लेकिन काफी तलाश में भी पारे से शिवलिंग निर्माण करने वाले मिस्त्री नहीं मिले. आखिर में मध्य प्रदेश के जबलपुर में पारे से शिवलिंग तैयार करने वाले कारीगर मिल गए. उन्होंने करीब डेढ़ माह तक पारे का शोधन किया. उसके बाद भरतपुर आए. 9 लोगों ने मिलकर तीन दिन में 104 किलो पारे से शिवलिंग तैयार कर दिए. इसमें निर्माण के लिए कुछ मात्रा सोने और चांदी भी इस्तेमाल किए गए.
सावन में दर्शन को लगती है भीड़ : आशा सिंघल ने बताया कि शिवलिंग का निर्माण होने के बाद इसे माता-पिता के मकान में ही मंदिर का रूप देकर अष्ट विधि संस्कार से संस्कारित कर स्थापित करा दिया गया है. इस बार श्रावण मास में श्रद्धालु इस अद्भुत शिवलिंग की पूजा और अभिषेक कर पुण्य प्राप्त रहे हैं.