अलवर : देश दुनिया में पर्यटन की दृष्टि से पहचान बना रहे अलवर जिले में पर्यटकों के देखने लायक कई दर्शनीय स्थल हैं, जो अपने खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं. ऐसा ही स्थापत्य कला का एक बेजोड़ नमूना अलवर शहर के बीचों-बीच बसा हुआ है, जिसे लोग 'मूसी महारानी की छतरी' या '80 खंभों की छतरी' के नाम से भी पहचानते हैं. इसके पीछे कारण है कि यह इमारत 80 बलुआ पत्थर से निर्मित खंभों पर टिकी है. इस इमारत को 1815 में तत्कालीन महाराजा विनय सिंह ने महाराजा बख्तावर सिंह व रानी मूसी की याद में बनवाया था.
इतिहासकार हरिशंकर गोयल ने बताया कि शहर के सागर ऊपर बनी यह इमारत आज भी अपनी कारीगरी से यहां आने वाले पर्यटकों की अचंभित करती है. मूसी महारानी की छतरी अलवर के पर्यटन केंद्रों में खास स्थान रखती है. उस समय के कारीगर ने इमारत को इस तरह से बनाया कि, जिन 80 खंभों पर यह इमारत खड़ी है, वह बलुआ पत्थर के हैं. इस इमारत का ऊपरी भाग संगमरमर से तैयार किया गया है, जिस पर छतरी के आंतरिक भाग में कलाकृतियां बनाई गई हैं. इसमें रामायण, कृष्ण लीला, पौराणिक चित्र व महाराजा बख्तावर सिंह का हाथी पर सवार चित्र बखूबी उकेरा गया है. गोयल बताते हैं कि मूसी महारानी की छतरी के अंदर एक स्थान पर राजा रानी के पदचिन्ह आज भी मौजूद हैं. ऐसा माना जाता है कि इसी जगह पर राजा की चिता पर रानी मूसी सती हुईं थी.
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बख्तेश्वर महादेव मंदिर के महंत व स्थानीय निवासी पं. विजय कुमार सारस्वत बताते हैं कि मूसी महारानी की छतरी करीब बख्तेश्वर महादेव मंदिर के साथ ही बनाई गई थी. यह मंदिर महाराजा बख्तावर सिंह ने 1815 में बनवाया था, इसके बाद महाराज की मृत्यु ही गई. उनकी याद में विनय सिंह ने इस इमारत का निर्माण करवाया. पं. विजय कुमार सारस्वत ने बताया कि आसपास के लोगों में मान्यता है कि राजा रानी के पदचिन्ह पर चढ़ाए गए पानी को बीमार बच्चों को लगाने पर वह ठीक हो जाते हैं. इसके चलते लोग यहां से बर्तन में पानी भरकर भी लेकर जाते हैं.
कौन थी रानी मूसी, किस तरह बनी महारानी : इतिहासकार बताते हैं कि मूसी महारानी की माता नौगांवा स्थित रघुनाथगढ़ में नृत्य गायन का कार्य करती थी. एक दिन ग्रामीणों के साथ उनका विवाद हो गया, जिसके बाद मूसी महारानी और उनकी मां को अलवर लेकर आया गया. इस दौरान मूसी की उम्र बहुत कम थी. मूसी की मां अब अलवर के राज दरबार में विभिन्न अवसरों पर नृत्य गायन करती थी. जब मूसी बड़ी हुई तब महाराज बख्तावर सिंह ने उससे विवाह कर लिया. इसके बाद वह मूसी महारानी कहलाने लगीं. कुछ समय बाद जब महाराजा बख्तावर सिंह की मृत्यु हुई, तब रानी मूसी भी महाराजा की चिता पर सती हो गईं. इस छतरी को इसलिए ही मूसी महारानी की छतरी कहा जाता है.
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पर्यटन विभाग की ओर से होते हैं आयोजन : स्थानीय लोगों के अनुसार मूसी महारानी की छतरी पर पर्यटन विभाग की ओर से विभिन्न आयोजन करवाए जाते हैं. इस पर्यटन स्थल पर मत्स्य उत्सव के दौरान भी कई कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिससे कि लोगों को इसके बारे जानकारी मिले. कुछ समय पहले ही पर्यटन विभाग की ओर से इस इमारत का रिनोवेशन का कार्य कराया गया है. इसके बाद यहां पर लोगों की चहल पहल बढ़ने लगी है. अब यहां वीकेंड पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं.