गोड्डाः पिछले 9 साल में सरकार एनडीए और महागठबंधन की रही है. सरकार भले ही अलग-अलग गठबंधन की हो, एक बात जो दोनों में एक सामान्य रही वो यह कि दोनों की सरकारों में बाबूलाल की याचिका पर सुनवाई पेंडिंग है. पिछली सरकार में स्पीकर दिनेश उरांव ने उनका मामला लटका कर रखा, इस बार रवींद्र नाथ महतो ने मामले को लटका कर रखा है.
गोड्डा सांसद डॉ निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि पिछले 4 साल से बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को न सदनं में बोलने का समय दिया गया और न कई सालों तक नेता प्रतिपक्ष का अधिकार. क्या बाबूलाल मरांडी आदिवासी नेता नहीं है, क्या ये आदिवासियों का अपमान नहीं है. दरअसल विधानसभा के विशेष सत्र में नेता प्रतिपक्ष अमर बाउरी ने कहा कि हेमंत सोरेन आदिवासी नेता हो सकते हैं लेकिन आदिवासियों के नेता नहीं हो सकते हैं. इसी बात पर बहस शुरू हो गई.
दरअसल बाबूलाल मरांडी की अपनी बनाई पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने सबसे अच्छा प्रदर्शन 2014 में किया. उनके कुल 8 विधायक जीते थे. भाजपा सत्ता में आई, रघुवर दास मुख्यमंत्री बने. कुछ दिनों बाद जेवीएम के 6 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. कुछ मंत्री भी बन गए. इसके बाद बाबूलाल मरांडी पूरे पांच साल तक विधानसभा अध्यक्ष से उनकी सदस्य्ता रद्द करने को लेकर तत्कालीन स्पीकर डॉ दिनेश उरांव के टेबल पर अर्जी देते रहे लेकिन एक न सुनी गई.
फिर 2019 के चुनावा में पार्टी के तीन विधायक जीते, जिनमें बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की शामिल थे. इस बार यहांं फिर स्थिति बदल गई तीन में दो विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने कांग्रेस में शामिल हो गए. बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी जेवीएम का बीजेपी में विलय कर दिया. बीजेपी ने उन्हें विधायक दल का नेता भी बना दिया. मामला इस बार फंस गया कि असली जेवीएम कौन है. मामला फिर स्पीकर के पास अटक गया. विधानसभा अध्यक्ष ने उन्हें नेता प्रतिपक्ष की मान्यता नहीं दी. उनकी विधायकी पर सुनवाई चलती रही. आखिर भाजपा ने विधायक दल का नेता अमर बाउरी को चुन लिया.
फिलहाल झरखंड की राजनीति में आदिवासी का असली नेता कौन है इस पर मंथन जारी है. हेमंत सोरेन फिलहाल इडी की गिरफ्त में हैं. भाजपा बाबूलाल मरांडी के आदिवासी नेता होने के साथ ही उनके अपमान का रोना रोती है, लेकिन सच यही है कि बाबूलाल मरांडी लगभग एक दशक से अलग-अलग विधानसभा अध्यक्ष के फेर में फंसे हुए हैं. इस मसले पर भाजपा नेता भी स्पष्ट नहीं बोल पाते हैं. उनके करीबी भाजपा जिलाध्यक्ष संजीव मिश्रा कहते हैं कि पिछली बात पुरानी है लेकिन अब बाबूलाल मरांडी को दबाया जा रहा है, उन्हें मान्यता नहीं देना गलत है.