ETV Bharat / state

ये खास सॉफ्टवेयर करेगा असली-नकली सिग्नेचर की पहचान, भारत सरकार ने दी मंजूरी - SOFTWARE IDENTIFY FAKE SIGNATURE

पंजाब यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक खास सॉफ्टवेयर डेवलप किया है. इसके जरिए असली नकली सिग्नेचरकी पहचान आसानी से हो सकेगी.

software will identify real fake signatures
सॉफ्टवेयर करेगा असली-नकली सिग्नेचर की पहचान (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Haryana Team

Published : Dec 6, 2024, 8:35 AM IST

Updated : Dec 6, 2024, 10:27 AM IST

चंडीगढ़: पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी और फॉरेंसिक साइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने एक खास सॉफ्टवेयर तैयार किया है. इस सॉफ्टवेयर के जरिए असली और नकली हस्ताक्षरों की पहचान आसानी से की जा सकेगी. इस सॉफ्टवेयर को भारत सरकार के कॉपीराइट कार्यालय ने कॉपीराइट पंजीकरण प्रदान किया है. इस मॉडल का उपयोग महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर, जालसाजी जैसी धोखाधड़ी की पहचान करने में किया जा सकता है.

सिग्नेचर पहचानने में मिलेगी मदद: इस सॉफ्टवेयर के जरिए कम सिग्नेचर की गिनती के होते हुए भी यह पहचान कर सकता हैं कि किसी भी डॉक्यूमेंट पर हुए हस्ताक्षरों में कौन से हस्ताक्षर असली है और कौन सा नकली है. यह सॉफ्टवेयर सिर्फ कुछ मिनटों में ही अपना रिजल्ट दे देता है. जिन डाक्यूमेंट पर पांच से छह सिग्नेचर हुए हैं, उसी में पहचान हो जाएगी कि सिग्नेचर असली है या नकली जबकि इससे पहले सिग्नेचर असली है या नकली. इसे पहचानने के लिए बड़ी संख्या में हस्ताक्षरों की जरूरत होती थी. हस्ताक्षरों की यह संख्या 500 से एक हजार तक हो सकती है, जिससे इस नकली हस्ताक्षरों की पहचान की जा सके.

असली-नकली सिग्नेचर की पहचान (ETV Bharat)

पिछले साल शुरू हुआ था काम: इस बारे में प्रोफेसर केवल कृष्ण ने बताया कि साल 2023 जून माह में ही सॉफ्टवेयर बनाने का काम शुरू किया गया था. यह सॉफ्टवेयर जून यानि कि एक ही वर्ष में 2024 बनकर तैयार हो गया था. बाकी समय इसका कॉपीराइट लेने में लगा. सॉफ्टवेयर के जरिए जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 फीसद की सटीकता प्राप्त हुई.

राकेश मीना अपने पीएचडी शोध के लिए हस्ताक्षर सत्यापन पर काम कर रहे हैं, जो अपने पीएचडी शोध के लिए इस मॉडल का उपयोग करेंगे. एआई मॉडल एसवीएम पर आधारित है, जो एक पर्यवेक्षित मशीन लर्निंग एल्गोरिदम है, जो व्यावहारिक स्थितियों में वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को अलग करता है. मॉडल को 1400 हस्तलिखित हस्ताक्षरों पर वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 फीसद की सटीकता प्राप्त हुई. -केवल कृष्ण, प्रोफेसर

इस टीम ने किया सॉफ्टवेयर डेवलप: इस खास सॉफ्टवेयर को एआई मॉडल प्रोफेसर केवल कृष्ण और उनकी अनुसंधान टीम ने डेवलप किया है. टीम में राकेश मीना, दामिनी सिवान, पीहुल कृष्ण, अंकिता गुलेरिया, नंदिनी चितारा, रितिका वर्मा, आकांशा राणा, आयुषी श्रीवास्तव शामिल थी. इस मॉडल को बनाने में प्रोफेसर अधिक घोष और डॉ विशाल शर्मा ने भी योगदान दिया. पीहुल कृष्णन यूआईईटी. के पूर्व छात्र हैं. अब स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी हिमाचल प्रदेश में पीएचडी शोध विद्वान हैं. ऐसे में अब इस सॉफ्टवेयर की मदद से असली और नकली हस्ताक्षर की पहचान और भी आसान हो जाएगी.

ये भी पढ़ें: युवाओं का सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का सपना होगा पूरा, गरीबी नहीं आएगी आड़े, बस करना होगा ये काम - Software Engineers

चंडीगढ़: पंजाब विश्वविद्यालय के एंथ्रोपोलॉजी और फॉरेंसिक साइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने एक खास सॉफ्टवेयर तैयार किया है. इस सॉफ्टवेयर के जरिए असली और नकली हस्ताक्षरों की पहचान आसानी से की जा सकेगी. इस सॉफ्टवेयर को भारत सरकार के कॉपीराइट कार्यालय ने कॉपीराइट पंजीकरण प्रदान किया है. इस मॉडल का उपयोग महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर, जालसाजी जैसी धोखाधड़ी की पहचान करने में किया जा सकता है.

सिग्नेचर पहचानने में मिलेगी मदद: इस सॉफ्टवेयर के जरिए कम सिग्नेचर की गिनती के होते हुए भी यह पहचान कर सकता हैं कि किसी भी डॉक्यूमेंट पर हुए हस्ताक्षरों में कौन से हस्ताक्षर असली है और कौन सा नकली है. यह सॉफ्टवेयर सिर्फ कुछ मिनटों में ही अपना रिजल्ट दे देता है. जिन डाक्यूमेंट पर पांच से छह सिग्नेचर हुए हैं, उसी में पहचान हो जाएगी कि सिग्नेचर असली है या नकली जबकि इससे पहले सिग्नेचर असली है या नकली. इसे पहचानने के लिए बड़ी संख्या में हस्ताक्षरों की जरूरत होती थी. हस्ताक्षरों की यह संख्या 500 से एक हजार तक हो सकती है, जिससे इस नकली हस्ताक्षरों की पहचान की जा सके.

असली-नकली सिग्नेचर की पहचान (ETV Bharat)

पिछले साल शुरू हुआ था काम: इस बारे में प्रोफेसर केवल कृष्ण ने बताया कि साल 2023 जून माह में ही सॉफ्टवेयर बनाने का काम शुरू किया गया था. यह सॉफ्टवेयर जून यानि कि एक ही वर्ष में 2024 बनकर तैयार हो गया था. बाकी समय इसका कॉपीराइट लेने में लगा. सॉफ्टवेयर के जरिए जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 फीसद की सटीकता प्राप्त हुई.

राकेश मीना अपने पीएचडी शोध के लिए हस्ताक्षर सत्यापन पर काम कर रहे हैं, जो अपने पीएचडी शोध के लिए इस मॉडल का उपयोग करेंगे. एआई मॉडल एसवीएम पर आधारित है, जो एक पर्यवेक्षित मशीन लर्निंग एल्गोरिदम है, जो व्यावहारिक स्थितियों में वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को अलग करता है. मॉडल को 1400 हस्तलिखित हस्ताक्षरों पर वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 फीसद की सटीकता प्राप्त हुई. -केवल कृष्ण, प्रोफेसर

इस टीम ने किया सॉफ्टवेयर डेवलप: इस खास सॉफ्टवेयर को एआई मॉडल प्रोफेसर केवल कृष्ण और उनकी अनुसंधान टीम ने डेवलप किया है. टीम में राकेश मीना, दामिनी सिवान, पीहुल कृष्ण, अंकिता गुलेरिया, नंदिनी चितारा, रितिका वर्मा, आकांशा राणा, आयुषी श्रीवास्तव शामिल थी. इस मॉडल को बनाने में प्रोफेसर अधिक घोष और डॉ विशाल शर्मा ने भी योगदान दिया. पीहुल कृष्णन यूआईईटी. के पूर्व छात्र हैं. अब स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी हिमाचल प्रदेश में पीएचडी शोध विद्वान हैं. ऐसे में अब इस सॉफ्टवेयर की मदद से असली और नकली हस्ताक्षर की पहचान और भी आसान हो जाएगी.

ये भी पढ़ें: युवाओं का सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनने का सपना होगा पूरा, गरीबी नहीं आएगी आड़े, बस करना होगा ये काम - Software Engineers

Last Updated : Dec 6, 2024, 10:27 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.