कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के बर्फीले इलाके स्नो लेपर्ड के लिए अब जीवनदायी साबित हो रहे हैं और हाल ही में नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के द्वारा किए गए सर्वे में भी यह बात सामने आई है. नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के द्वारा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, लाहौल स्पीति, चंबा और किन्नौर जिले में स्नो लेपर्ड को लेकर सर्वे किया गया. जिसमें पाया गया कि 44 बर्फानी तेंदुए इन चार जिलों में ज्यादा सक्रिय रहे हैं और एक अनुमान के अनुसार इनकी संख्या हिमाचल प्रदेश में 73 बताई गई है, लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा जारी रिपोर्ट में इसकी संख्या फिलहाल 51 है और पिछले अनुमान के साथ भी अब आगामी समय में एक बार फिर से सर्वे करने की तैयारी की जा रही है. स्नो लेपर्ड को लेकर कई अहम जानकारियां भी मिली हैं.
किस प्रदेश में कितने स्नो लेपर्ड ?
देशभर में स्नो लेपर्ड की संख्या भी सामने आ गई है. सर्वे में लद्दाख में सबसे ज्यादा 477 स्नो लेपर्ड मिले हैं. जबकि उत्तराखंड में 124, हिमाचल प्रदेश में 51, अरुणाचल प्रदेश में 36, सिक्किम में 21 और जम्मू कश्मीर में इनकी संख्या 9 पाई गई. वहीं, स्नो लेपर्ड का निवास 93 हजार 392 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में दर्ज किया गया और उनकी अनुमानित मौजूदगी भी 1 लाख 841 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पाई गई.
हिमाचल में ट्रैप कैमरों में नजर आए 44 स्नो लेपर्ड
नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन के द्वारा हिमाचल प्रदेश के चार जिलों में 10 जगह पर 50 से अधिक ट्रैप कैमरे लगाए गए थे और इन ट्रैप कैमरा में 44 स्नो लेपर्ड नजर आए हैं. मिली जानकारी के अनुसार एनसीएफ के सर्वे में भागा, भरमौर, चंद्रा, कुल्लू, मियाड, पिन, बसपा, ताबो, हेगरेंग और स्पीति में 10 जगह का चयन किया गया था. जहां स्नो लेपर्ड की आवाजाही भी काफी ज्यादा थी. ऐसे में सर्वे के दौरान स्थानीय लोगों की भी मदद ली गई और लोगों से पूछताछ के दौरान पता चला कि पहाड़ी क्षेत्र में कुछ जगह पर स्नो लेपर्ड की आवक अधिक है और यह कब-कब नजर आते हैं. इसकी भी जानकारी स्थानीय लोगों से ली गई थी.
एक ही इलाके में स्नो लेपर्ड और लेपर्ड
टीम के द्वारा वहां पर 50 कैमरों को अलग-अलग जगह पर रखा गया और 60 दिनों तक कैमरे एक ही जगह पर रहे. ऐसे में करीब 187 मौके पर 44 स्नो लेपर्ड नजर आए, इनमें से सबसे अधिक स्नो लेपर्ड स्पीति घाटी में थे. जहां पर 9 स्नो लेपर्ड 61 बार नजर आए हैं. इसके अलावा चंद्रा घाटी में तीन स्नो लेपर्ड 18 बार, ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क में दो तेंदुए ही 22 बार देखे गए हैं. वहीं, सर्वे के दौरान एक खास बात सामने आई है कि जिला कुल्लू के ग्रेट हिमालय नेशनल पार्क में स्नो लेपर्ड और सामान्य लेपर्ड एक ही इलाके में घूमते हुए नजर आए हैं. इससे यह पता चला है कि लेपर्ड की यह दोनों प्रजातियां एक दूसरे के इलाके में घूमती हैं. इससे पहले इस तरह का मामला पूरे देश में कहीं सामने नहीं आया है, क्योंकि स्नो लेपर्ड अधिकतर बर्फीले इलाकों में रहता है और लेपर्ड की सामान्य प्रजाति मैदानी व गर्म इलाकों में ही पाई जाती है.
10 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर पाया जाता है स्नो लेपर्ड
स्नो लेपर्ड दुनिया की दुर्लभ प्रजातियों में शामिल है. यह 10 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर पाया जाता है. स्नो लेपर्ड बर्फीले क्षेत्र में निवास करने वाला स्लेटी और सफेद फर वाला विडाल कुल (Cat Family) का स्तनधारी वन्यजीव है. यह तेंदुए की विश्व स्तर पर विलुप्त प्राय प्रजाति है. स्नो लेपर्ड खासकर मध्य एशिया के बर्फीले पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है, लेकिन प्राकृतिक वास के नुकसान, शिकार और संघर्ष के कारण स्नो लेपर्ड की संख्या में भारी कमी देखी गई है.
सर्वे के दौरान स्नो लेपर्ड के शिकार का भी सर्वे किया गया. जिसमें जानवरों की 28 प्रजातियों का पता चला है. इनमें ज्यादातर शाकाहारी जानवर हैं, जिन्हें स्नो लेपर्ड अपना शिकार बनाता है. सर्वे में यह बात सामने आई है कि स्नो लेपर्ड का घनत्व उसके शिकार करने वाले जीवों के घनत्व से जुड़ा हुआ है. ऐसे में उसके शिकार होने वाले जानवर अधिक होंगे तो उस इलाके में स्नो लेपर्ड भी अधिक होंगे. हिमाचल प्रदेश के स्पीति और ताबो में यह घनत्व सबसे अधिक है और चंद्रा और भरमौर में यह घनत्व सबसे कम देखा गया है.
भारतीय वन्यजीव संस्थान के द्वारा स्नो लेपर्ड की गणना के लिए कार्यक्रम नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन, डब्लू डब्लू एफ इंडिया का सहयोग लिया गया था. स्नो लेपर्ड की गणना के लिए वन और वन्य जीव कर्मचारी, शोधकर्ता सहित स्थानीय लोगों की भी मदद ली गई. गणना के पहले चरण में स्नो लेपर्ड के स्थानीय निवास का निरीक्षण किया गया और दूसरे चरण में हर चिन्हित क्षेत्र में कैमरा ट्रैप का उपयोग भी किया गया.
बीते जनवरी माह में देश की राजधानी दिल्ली में भारतीय वन्य जीव बोर्ड की बैठक आयोजित की गई थी. इस बैठक में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस बारे रिपोर्ट पेश की थी और देश भर में स्नो लेपर्ड की संख्या के बारे में जानकारी दी थी. केंद्रीय मंत्री ने बोर्ड की बैठक में बताया था कि भारत में स्नो लेपर्ड की जनसंख्या का आकलन देश का पहला वैज्ञानिक सर्वे था. यह सर्वे देश में 2019 से लेकर साल 2023 तक चलाया गया था. इस सर्वे में कैमरे की मदद से स्नो लेपर्ड की संख्या का पता लगाया गया है. वहीं, इस बोर्ड की बैठक में देश में प्रतिशत स्नो लेपर्ड रेंज की जानकारी मिली है और वन्य जीव बोर्ड के द्वारा एक स्नो लिप्स सेल बनाने के बारे में भी कहा गया है. इसके लिए भी अब आगामी समय में विचार किया जाएगा.
हिमाचल में स्नो लेपर्ड की अनुमानित संख्या 73
वहीं, नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन बेंगलुरु के समन्वयक अजय बिजुर ने बताया कि हिमाचल प्रदेश के चार जिलों में स्नो लेपर्ड का सर्वे किया गया था. जिसके अच्छे नतीजे सामने आए हैं. फाउंडेशन के द्वारा लगाए गए कैमरे में 44 स्नो लेपर्ड नजर आए हैं और उनकी अनुमानित संख्या भी 73 तक मानी गई है. केंद्र सरकार को इस बारे रिपोर्ट दी गई है और फिर से सर्वे शुरू करने की भी सरकार के द्वारा योजना बनाई जा रही है.
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