मुजफ्फरपुर: कहते हैं शौक बड़ी चीज होती है और अगर वही शौक पेशा बन जाए, फिर सफलता जल्द हाथ लगती है. आज के दौर की महिलाएं घरों से निकलकर स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में यूट्यूब व दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का बड़ा रोल है. मुजफ्फरपुर की 26 साल की स्मृति ने लॉकडाउन के दौरान अपने प्रतिभा को पहचान दिलाई है. स्मृति ने महज 50 रुपए से स्टार्ट अप की शुरुआत कर लाखों का बिजनस खड़ा कर दिया है.
स्मृति की स्कसेस स्टोरी: स्मृति रेशम के धागों से महिलाओं के ज्वेलरी जैसे गले का हार, लॉकेट, चूड़ी, कंगन, इयररिंग्स बना रही हैं. इन आर्नामेंट्स को अलग-अलग रंग के धागों से तैयार किया जा रहा है. मार्केट में जितने भी प्लास्टिक के आर्नेमेंट मिलते हैं, वह बल्क में खरीदती हैं. उसपर वे रेशम के धागे से डिजाइन करती हैं. देश की महिलाओं के साथ-साथ विदेशी महिलाएं भी इन फैंसी आभूषण की कायल हैं. विदेशी महिलाएं भी स्मृति को स्पेशल ऑर्डर देकर ज्वेलरी मंगाती हैं.
लॉकडाउन में सीखा काम: स्मृति बताती हैं कि वर्ष 2018 में यूट्यूब पर उन्होंने वीडियो देखा, जिससे वह प्रभावित हुईं. फिर उन्हें आइडिया आया कि क्यों ना रेशम के धागे से ज्वेलरी बनाई जाए. पहले उन्होंने खुद और दोस्तों के लिए ज्वेलरी बनाई. दोस्तों ने उन ऑर्नामेंट्स को काफी पसंद किया. मुहल्ले के लोगों ने भी देखा तो उन्हें पसंद आया. लॉकडाउन के वक्त स्मृति ने सोचा कि इससे बिजनस शुरू किया जाए. बाजार में प्रोड्क्टस उतारने के लिए घर पर ही ऑनलाइन वीडियो देखकर रेशम के धागे से अलग-अलग आर्मामेंट बनाने का काम सीखी.
पॉकेट मनी बचाकर शुरू किया बिजनस: स्मृति ने बताया कि "घर से खर्च करने के लिए जो पॉकेट मनी मिलता था, उसे बचा कर बाजार से झुमका और रेशम के धागे लाई. इसके बाद काम शुरू की. पहले दोस्तों, फिर मोहल्ले की महिलाओं को अपना सामान दिखाई. जब मोहल्ले से ऑर्डर मिलने लगे, तब काम में तेजी आ गई."
सोशल मीडिया के जरिए किया प्रचार: वे बताती हैं कि मोहल्ले के बाद उन्होंने व्हाट्सएप ग्रुप बनाया. फेसबुक पर भी उनका प्रोफाइल था. वह जिसे भी अपना प्रोडक्ट देती, उसे अपने ग्रुप से जोड़ती ताकि और भी कस्टमर जुड़े. धीरे धीरे शहर से बिहार तक और बाद में देशभर से भी ऑर्डर मिलने लगे. कुछ समय बाद स्मृति को इंटरनेशनल ऑर्डर मिलने लगे. अभी तक वे जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूएसए तक के कस्टमर को अपना प्रोडक्ट सेल कर चुकी हैं.
विदेश भेजने पर प्रोडक्ट हो जाता है महंगा: वे बताती हैं कि भारत से बाहर भेजने पर आर्डर काफी महंगे हो जाते है. एक लहठी अगर लोकल मार्केट में बेचना होता है तो करीब 1 हजार से अधिक रुपए मिलते हैं. लेकिन, यही प्रोडक्ट अगर विदेश भेजने हो तो महंगे हो जाते है, क्यूंकि इसमें कुरियर चार्ज अलग लगता है, जो खर्च कस्टमर को ही देना पड़ता है.
"विदेश भेजने के लिए किलो के हिसाब से प्रोडक्ट का पैसा तय होता है. 1 हजार की लहठी किलो के हिसाब से 2 हजार से 25सौ तक की हो जाती है. वहीं, बल्क में अगर ऑर्डर मिलता है तो किलो का भाव कम हो जाता है. उस समय 5 से 6 सौ रुपए किलो प्रोडक्ट जाती है. वही, सिंगल में 1 हजार रुपए किलो कॉस्ट हो जाता है."- स्मृति, महिला उद्यमी
बचपन से था क्राफ्ट का शौक: स्मृति बताती हैं कि उन्हें बचपन से ही क्राफ्ट का शौक रहा है. उन्हें नई तरह के क्राफ्ट बनाने की जिद्द सी रहती थी, घर वाले भी इसमें उनका सपोर्ट करते थे. जिस वजह से आज उन्होंने अपनी शौक को बिजनेस में बदल दिया है. स्मृति ने बताया कि इसका फीडबैक भी अच्छा मिल रहा है. स्मृति के प्रॉडक्ट्स ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से बाजार में बिकते हैं.
"कोई महिला इस काम को ठीक से करे तो महीने का एक लाख से अधिक कमा सकती है. इसमें लागत कम है, मुनाफा ज्यादा है. हालांकि हैंड क्राफ्ट होने की वजह से मेहनत लगती है. बहुत ही ध्यान से प्लास्टिक के फ्रेम पर धागे से काम करना पड़ता है."- स्मृति, महिला उद्यमी
स्मृति की पढ़ाई-लिखाई: स्मृति शहर के भगवानपुर स्तिथ यादव नगर इलाके की रहने वाली हैं. उनके पिता नवल किशोर प्रसाद सिंह रिटायर्ड शिक्षक हैं, मां मीना देवी गृहणी हैं. उनके तीन भाई बहन हैं. स्मृति ने शहर में ही रहकर नीजी स्कूल से मैट्रिक पास की. इसके बाद इंटर की पढ़ाई स्कूल से ही हुई. फिर, लंगट सिंह कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट हुई. अभी वे वर्तमान में आरबीबीएम कॉलेज से बीएससी क्लिनिकल न्यूट्रीशन एंड डायटिशियन का कोर्स कर रही हैं.
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