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SKRU वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन 'स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर' पर यूके से मिला पेटेंट, किसानों को होगा बड़ा फायदा - Patent from UK - PATENT FROM UK

SKRU Scientists, बीकानेर के एसकेआरएयू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन 'स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर' पर यूके से पेटेंट मिला है. इस रिसर्च से किसान अब अपने खेत में कम लागत से फसल अवशेष प्रबंधन कर पाएंगे और पर्यावरण प्रदूषण से भी राहत मिलेगी.

SKRU scientists get patent from UK
SKRU वैज्ञानिकों को यूके से मिला पेटेंट (ETV Bharat Bikaner)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 21, 2024, 4:17 PM IST

बीकानेर. स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन 'स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर' पर यूके (यूनाइटेड किंगडम) से पेटेंट मिला है. कृषि विश्वविद्यालय की डॉ. मनमीत कौर, डॉ.वाई. के. सिंह, सुश्री शौर्या सिंह, डॉ. अरुण कुमार एवं डॉ. पी. के. यादव को ये पेटेंट मिला है. कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतु वर्तमान में जो मशीनें हैं वे सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं. लिहाजा, आम किसान उसका उपयोग नहीं कर पाता, लेकिन "स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" मशीन उनसे करीब चार गुना कम कीमत पर ही उपलब्ध हो सकेगी.

इस मशीन का व्यावसायिक निर्माण विश्वविद्यालय अपने स्तर पर निजी फर्म के साथ टाईअप कर जल्द ही शुरू करेगा. लिहाजा, कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि अब पराली एवं अन्य फसल अवशेषों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएगी. पेटेंट मिलने पर कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा निरन्तर किए जा रहे शोध विश्वविद्यालय को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगें. गौरतलब है कि पिछले वर्ष ही एसकेआरएयू को बाजरा बिस्किट पर फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी से पेटेंट मिला था.

पढ़ें : छात्रा का कमाल : 10 गुना कम लागत से तैयार किया नैपकिन इंसीनरेटर, संक्रमण फ्री होगा निस्तारण - Napkin Incinerator

लंबे समय बाद सफलता : कृषि महाविद्यालय अधिष्ठाता डीन डॉ. पीके यादव ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर लम्बे समय तक शोध के उपरांत "स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" का डिजाइन तैयार किया गया है, जिसे यूनाइटेड किंगडम द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है. साथ ही कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन लम्बे समय से देश में ज्वलंत समस्या बनी हुई है. जिसका विभिन्न प्रयासों के बाद भी निराकरण नही हो पा रहा है. ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बेहद कम कीमत पर निर्मित मशीन ''स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" आने वाले समय में फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव ला सकती है.

एक महीने में मिला पेटेंट : सह आचार्य. डॉ. वाई.के. सिंह ने बताया कि यूनाइटेड किंगडम से पेटेंट मिलने में करीब पांच छह महीने लग जाते हैं, लेकिन इस मशीन को एक महीने में पेटेंट प्रदान कर दिया गया. साथ ही मशीन के कार्य करने को लेकर बताया कि फसल कटने के बाद जो फसल अवशेष रह जाते हैं उसे ये मशीन छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर पूरे क्षेत्र में फैला देती है. जो जैविक खाद में परिवर्तित होकर फसलों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है.

मिलेगा लाभ : सहायक आचार्य डॉ. मनमीत कौर ने बताया कि जुलाई 2023 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार भारत प्रतिवर्ष करीब 650 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है. किसानों द्वारा अधिक फसल पैदा करने की प्रतिस्पर्धा के चलते फसल अवशेषों को अपशिष्ट मानकर त्वरित निपटान के लिए जला देना आम बात हो गई है. जबकि फसल अवशेष जलाने से ना केवल महत्वपूर्ण बायोमास का नुकसान होता है, बल्कि यह प्रदूषण वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है. फसल अवशेष दहन से मृदा की उर्वरता भी कम हो रही है एवं मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है.

बीकानेर. स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीन 'स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर' पर यूके (यूनाइटेड किंगडम) से पेटेंट मिला है. कृषि विश्वविद्यालय की डॉ. मनमीत कौर, डॉ.वाई. के. सिंह, सुश्री शौर्या सिंह, डॉ. अरुण कुमार एवं डॉ. पी. के. यादव को ये पेटेंट मिला है. कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन हेतु वर्तमान में जो मशीनें हैं वे सब्सिडी के बाद भी काफी महंगी हैं. लिहाजा, आम किसान उसका उपयोग नहीं कर पाता, लेकिन "स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" मशीन उनसे करीब चार गुना कम कीमत पर ही उपलब्ध हो सकेगी.

इस मशीन का व्यावसायिक निर्माण विश्वविद्यालय अपने स्तर पर निजी फर्म के साथ टाईअप कर जल्द ही शुरू करेगा. लिहाजा, कृषि विश्वविद्यालय की यह उपलब्धि अब पराली एवं अन्य फसल अवशेषों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएगी. पेटेंट मिलने पर कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने वैज्ञानिकों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा निरन्तर किए जा रहे शोध विश्वविद्यालय को विश्व स्तर पर ख्याति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगें. गौरतलब है कि पिछले वर्ष ही एसकेआरएयू को बाजरा बिस्किट पर फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी से पेटेंट मिला था.

पढ़ें : छात्रा का कमाल : 10 गुना कम लागत से तैयार किया नैपकिन इंसीनरेटर, संक्रमण फ्री होगा निस्तारण - Napkin Incinerator

लंबे समय बाद सफलता : कृषि महाविद्यालय अधिष्ठाता डीन डॉ. पीके यादव ने बताया कि फसल अवशेष प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण विषय पर लम्बे समय तक शोध के उपरांत "स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" का डिजाइन तैयार किया गया है, जिसे यूनाइटेड किंगडम द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है. साथ ही कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन लम्बे समय से देश में ज्वलंत समस्या बनी हुई है. जिसका विभिन्न प्रयासों के बाद भी निराकरण नही हो पा रहा है. ऐसे में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बेहद कम कीमत पर निर्मित मशीन ''स्टबल चॉपर कम स्प्रेडर" आने वाले समय में फसल अवशेष प्रबंधन के क्षेत्र में क्रांतिकारी प्रभाव ला सकती है.

एक महीने में मिला पेटेंट : सह आचार्य. डॉ. वाई.के. सिंह ने बताया कि यूनाइटेड किंगडम से पेटेंट मिलने में करीब पांच छह महीने लग जाते हैं, लेकिन इस मशीन को एक महीने में पेटेंट प्रदान कर दिया गया. साथ ही मशीन के कार्य करने को लेकर बताया कि फसल कटने के बाद जो फसल अवशेष रह जाते हैं उसे ये मशीन छोटे छोटे टुकड़ों में काट कर पूरे क्षेत्र में फैला देती है. जो जैविक खाद में परिवर्तित होकर फसलों को आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध कराता है.

मिलेगा लाभ : सहायक आचार्य डॉ. मनमीत कौर ने बताया कि जुलाई 2023 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार भारत प्रतिवर्ष करीब 650 मिलियन टन फसल अवशेष उत्पन्न करता है. किसानों द्वारा अधिक फसल पैदा करने की प्रतिस्पर्धा के चलते फसल अवशेषों को अपशिष्ट मानकर त्वरित निपटान के लिए जला देना आम बात हो गई है. जबकि फसल अवशेष जलाने से ना केवल महत्वपूर्ण बायोमास का नुकसान होता है, बल्कि यह प्रदूषण वृद्धि में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है. फसल अवशेष दहन से मृदा की उर्वरता भी कम हो रही है एवं मानव स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है.

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