गढ़वाः जन्माष्टमी के मौके पर झारखंड के गढ़वा स्थित ऐतिहासिक श्री बंशीधर नगर स्थित भगवान राधे कृष्ण नए वस्त्र में दर्शन दे रहे है. कई दशकों के बाद भगवान श्री राधे कृष्ण के वस्त्र को बदला गया है. अयोध्या स्थित रामलाल का ड्रेस डिजाइन करने वाले मनीष त्रिपाठी ने भगवान श्री राधे कृष्णा का वस्त्र को डिजाइन किया है. झारखंड सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश ठाकुर के तरफ से इस वस्त्र को समर्पित किया गया है.
जन्माष्टमी के मौके पर पूजा अर्चना के बाद भगवान श्री राधे कृष्ण को नया वस्त्र पहनाया गया. 01 जून को चर्चित डिजाइनर मनीष त्रिपाठी ने भगवान श्री राधे कृष्ण की मान लिया था ताकि नए वस्त्र को बनाया जा सके. शनिवार को झारखंड स्वर्ण जयंती एक्सप्रेस से भगवान श्री राधे कृष्णा का वस्त्र श्री बंशीधर नगर पहुंचा था जिसे भव्य तरीके से स्वागत किया गया था.
त्रिभंगी स्वरूप में नजर आने लगे है भगवान श्री राधे कृष्ण
श्री बंशीधर नगर श्री कृष्णा कॉरिडोर का एक हिस्सा है. श्री बंशीधर नगर में भगवान श्री कृष्णा त्रिभंगी स्वरूप में विराजमान है. नए वस्त्र में भगवान श्री राधे कृष्ण भव्य नजर आ रहे हैं और उनका त्रिभंगी स्वरूप भव्य दिख रहा है. नए वस्त्र को बनाने में सोना का इस्तेमाल किया गया है. करीब ढाई महीनों के मेहनत के बाद नया वस्त्र तैयार हुआ है. पहले दिन हजारों की संख्या में लोगों ने भगवान श्री राधे कृष्णा का दर्शन किया है.
श्री बंशीधर नगर मंदिर ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी राजेश प्रताप देव ने बताया कि रामलला की ड्रेस डिजाइन करने वाले मनीष त्रिपाठी ने भगवान श्री राधे कृष्णा का वस्त्र डिजाइन किया है. नए वस्त्र में भगवान श्री राधे कृष्ण भव्य नजर आ रहे हैं और इनका त्रिभंगी स्वरूप नजर आ रहा है.
शुद्ध 32 मन सोना की भगवान कृष्ण की मूर्ति, विश्व में सबसे अधिक सोना की वजनी मूर्ति
श्री बंशीधर नगर स्थित भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति शुद्ध 32 मन सोने की है. किलो में यह 1280 होता है. मूर्ति की कीमत लगभग 2500 करोड़ रुपए है. श्री कृष्ण के साथ मौजूद माता राधा की मूर्ति अष्टधातु की बनी हुई है. कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति विश्व में सबसे अधिक सोने की वजन वाली मूर्ति है.
200 वर्ष पहले स्थापित हुई थी भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति
श्री बंशीधर नगर स्थित भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति करीब 200 वर्ष पहले स्थापित हुई थी. मूर्ति की स्थापना के बाद मंदिर का निर्माण कार्य हुआ था. कहा जाता है कि 14 अगस्त 1827 को राजमाता शिवमनी देवी ने जन्माष्टमी का व्रत किया था. व्रत के दिन राजमाता को सपने में भगवान श्री कृष्ण ने दर्शन दिया. जिसके बाद झारखंड-उत्तर प्रदेश सीमा पर मौजूद शिवपहाड़ी पर पूजा अर्चना की गई थी.
शिवपहाड़ी पर खुदाई के लिए शुरुआत राजमाता ने की थी. खुदाई में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति बाहर निकली थी. बाद में मूर्ति को हाथी से राजमहल लाया जा रहा था लेकिन हाथी राजमहल के बाहर बैठ गया. काफी कोशिशों के बाद भी हाथी नहीं उठा इसके बाद मूर्ति को वहीं पर स्थापित कर दिया गया. 21 जनवरी 1828 को मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई और वाराणसी से अष्टधातु की माता राधा की मूर्ति मंगवाई गई थी.
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