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हाल-ए-राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल: 8 साल में बंद हो गए 6 ओटी, एक तिहाई भी नहीं बचे डॉक्टर - Shortage Of Doctors In RGSSH

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 26, 2024, 5:15 PM IST

Rajiv Gandhi Super Speciality Hospital: दिल्ली सरकार के बड़े अस्पतालों में शुमार राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में डॉक्टरों की कमी से कई विभाग ठप हैं. अस्पताल के निदेशक डॉ. आशीष गोयल का कहना है कि अभी फैकल्टी की भर्ती प्रक्रिया में है. इन पदों पर भर्ती होने के बाद डॉक्टर और प्रशासनिक विभाग में खाली पदों पर भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू करेंगे.

राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल
राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल (Etv Bharat)

नई दिल्लीः दिल्ली सरकार का राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल जब से शुरू हुआ है तभी से डॉक्टरों और अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहा है. अस्पताल 2016 में शुरू किया गया था. इसमें कार्डियोलॉजी, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, गैस्ट्रो सर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन, यूरोलॉजी सहित कई विभाग शुरू किए गए. जब ये विभाग शुरू हुआ था, उस समय भी अस्पताल में जितने डॉक्टरों और स्टाफ की जरूरत थी उतने नहीं थे. सभी को कॉन्ट्रैक्ट पर ही भर्ती किया गया था. लेकिन, सभी की मेहनत से अस्पताल चल पड़ा और मरीजों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई.

फिर कोरोना के समय में 2020 में इसे कोरोना मरीजों के इलाज के लिए भी डेडीकेटेड किया गया. तत्कालीन चिकित्सा निदेशक डॉ. बीएल शेरवाल ने कोरोना के समय में अस्पताल का प्रबंधन ठीक से संभाला. फिर जब कोरोना की वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो अस्पताल में ही दिल्ली राज्य का वैक्सीन स्टोरेज सेंटर बनाया गया. लेकिन, इस सब के बाद धीरे-धीरे दिल्ली सरकार से अस्पताल को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि मिलने में देरी होने लगी और अस्पताल की स्थिति बिगड़ने लगी.

डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जाने लगे. कुछ मशीनें भी खराब होकर बंद हो गई. डॉक्टर, नर्सेज और अन्य स्टाफ को वेतन मिलने में तीन-तीन महीने की देरी होने लगी. यह स्थिति पिछले तीन साल से लगातार जारी है. अस्पताल में पिछले आठ सालों से भर्ती नहीं हुई है. मई में अस्पताल छोड़ने वाले डॉक्टर अरुण कुमार ने बताया कि पिछले एक साल में समय पर वेतन न मिलने की वजह से 10 डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जा चुके हैं. सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने की वजह से कई विभाग पूरी तरह से ठप हैं. ठप होने वाले विभागों में गैस्ट्रो सर्जरी, नेफ्रोलॉजी, क्रिटिकल केयर और रेडियोलॉजी शामिल हैं.

डॉक्टरों की स्वीकृत 85 पदों में से खाली हैं 66 पद: यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन (यूडीएफए) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों के स्वीकृत पद 85 हैं, जिनमें सिर्फ अभी 19 पद ही भरे हुए हैं. इसके अलावा अस्पताल जूनियर रेजिडेंट के भरोसे हैं. कुल 12 ऑपरेशन थिएटर में से सिर्फ चार ही चालू है. वहीं, प्रशासनिक पदों की बात करें तो कुल स्वीकृत पद 83 हैं, जिनमें से सिर्फ 7 पद ही भरे हुए हैं. इस तरह ये अस्पताल मात्र 20 प्रतिशत स्टाफ के भरोसे ही चल रहा है, जबकि नियमानुसार अस्पताल की 650 बेड की क्षमता के अनुसार कम से कम 40 प्रतिशत स्टाफ होना आवश्यक है.

यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार इतने पद हैं खाली.
यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार इतने पद हैं खाली. (ETV Bharat)

डॉ. अरुण कुमार का कहना है कि अगर इस अस्पताल में जरूरत के अनुसार पूरा स्टाफ भर्ती कर लिया जाए तो यहां 10 हजार मरीजों का प्रतिदिन इलाज हो सकता है. लेकिन, अभी सिर्फ 1000 या 1500 मरीजों का ही इलाज हो पा रहा है. जबकि दिल्ली के अन्य सरकारी अस्पतालों में क्षमता से अधिक मरीजों का लोड है. लेकिन, यह अकेला ऐसा अस्पताल है, जहां क्षमता से कई गुना कम मरीज आते हैं.

"अभी फैकल्टी की भर्ती प्रक्रिया में है. इन पदों पर भर्ती होने के बाद डॉक्टर और प्रशासनिक विभाग में खाली पदों पर भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू करेंगे." -डॉ. आशीष गोयल, अस्पताल के निदेशक

अस्पताल में फैकल्टी की 49 पोस्ट के लिए भर्ती: इस अस्पताल में फैकल्टी और स्पेशलिस्ट डॉक्टर के खाली पदों को भरने के लिए मई में विज्ञापन निकाला गया था. इसमें 19 जुलाई से इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू होनी थी. लेकिन, डॉक्टरों के संगठन यूडीएफए की ओर से हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद अस्पताल की ओर से ही इंटरव्यू की प्रक्रिया को रोक दिया गया है. यूडीएफए की तरफ से दायर मामले में कहा गया है कि अस्पताल में फैकल्टी के पदों पर भर्ती नियमों की अनदेखी करके की जा रही है. 18 जुलाई को यूडीएफए की ओर से याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की ओर से अगली सुनवाई 29 अगस्त के लिए तय की गई है.

ढाई साल से अस्पताल में नहीं है कोई स्थायी निदेशक: अस्पताल में बीते ढाई साल से कोई स्थाई निदेशक नहीं है. अक्टूबर 2021 में निदेशक डॉ. बीएल शेरवाल का ट्रांसफर होने के बाद से यहां किसी की स्थायी निदेशक के रूप में नियुक्ति नहीं की गई है. 2017 से 2021 अक्टूबर तक डॉ. बीएल शेरवाल यहां आखिरी स्थायी निदेशक थे. उनके समय में अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार हुआ था. लेकिन, उनके बाद अभी तक यहां किसी भी स्थाई निदेशक की भर्ती नहीं हुई है.

नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 तक लाल बहादुर शास्त्री के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संजय अग्रवाल ने अतिरिक्त प्रभार संभाला. उनके बाद अक्टूबर 2022 से जनवरी 2023 तक जीटीबी में निदेशक का पद का संभाल रहे डॉ. सुभाष गिरी को यहां का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. फरवरी 2023 से जुलाई 2023 तक लोक नायक अस्पताल के निदेशक (प्रोफेसर) और दिल्ली राज्य कैसर संस्थान के निदेशक डॉ. किशोर सिंह ने भी यहां का अतिरिक्त प्रभार संभाला और अभी मौजूदा समय में में बुराड़ी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. आशीष गोयल को यहां का अतिरिक्त प्रभार सौंपा हुआ है.

नई दिल्लीः दिल्ली सरकार का राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल जब से शुरू हुआ है तभी से डॉक्टरों और अन्य स्टाफ की कमी से जूझ रहा है. अस्पताल 2016 में शुरू किया गया था. इसमें कार्डियोलॉजी, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, गैस्ट्रो सर्जरी, पल्मोनरी मेडिसिन, यूरोलॉजी सहित कई विभाग शुरू किए गए. जब ये विभाग शुरू हुआ था, उस समय भी अस्पताल में जितने डॉक्टरों और स्टाफ की जरूरत थी उतने नहीं थे. सभी को कॉन्ट्रैक्ट पर ही भर्ती किया गया था. लेकिन, सभी की मेहनत से अस्पताल चल पड़ा और मरीजों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई.

फिर कोरोना के समय में 2020 में इसे कोरोना मरीजों के इलाज के लिए भी डेडीकेटेड किया गया. तत्कालीन चिकित्सा निदेशक डॉ. बीएल शेरवाल ने कोरोना के समय में अस्पताल का प्रबंधन ठीक से संभाला. फिर जब कोरोना की वैक्सीन लगनी शुरू हुई तो अस्पताल में ही दिल्ली राज्य का वैक्सीन स्टोरेज सेंटर बनाया गया. लेकिन, इस सब के बाद धीरे-धीरे दिल्ली सरकार से अस्पताल को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि मिलने में देरी होने लगी और अस्पताल की स्थिति बिगड़ने लगी.

डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जाने लगे. कुछ मशीनें भी खराब होकर बंद हो गई. डॉक्टर, नर्सेज और अन्य स्टाफ को वेतन मिलने में तीन-तीन महीने की देरी होने लगी. यह स्थिति पिछले तीन साल से लगातार जारी है. अस्पताल में पिछले आठ सालों से भर्ती नहीं हुई है. मई में अस्पताल छोड़ने वाले डॉक्टर अरुण कुमार ने बताया कि पिछले एक साल में समय पर वेतन न मिलने की वजह से 10 डॉक्टर अस्पताल छोड़कर जा चुके हैं. सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर होने की वजह से कई विभाग पूरी तरह से ठप हैं. ठप होने वाले विभागों में गैस्ट्रो सर्जरी, नेफ्रोलॉजी, क्रिटिकल केयर और रेडियोलॉजी शामिल हैं.

डॉक्टरों की स्वीकृत 85 पदों में से खाली हैं 66 पद: यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन (यूडीएफए) के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि अस्पताल में डॉक्टरों के स्वीकृत पद 85 हैं, जिनमें सिर्फ अभी 19 पद ही भरे हुए हैं. इसके अलावा अस्पताल जूनियर रेजिडेंट के भरोसे हैं. कुल 12 ऑपरेशन थिएटर में से सिर्फ चार ही चालू है. वहीं, प्रशासनिक पदों की बात करें तो कुल स्वीकृत पद 83 हैं, जिनमें से सिर्फ 7 पद ही भरे हुए हैं. इस तरह ये अस्पताल मात्र 20 प्रतिशत स्टाफ के भरोसे ही चल रहा है, जबकि नियमानुसार अस्पताल की 650 बेड की क्षमता के अनुसार कम से कम 40 प्रतिशत स्टाफ होना आवश्यक है.

यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार इतने पद हैं खाली.
यूनाइटेड डॉक्टर्स फ्रंट एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव के अनुसार इतने पद हैं खाली. (ETV Bharat)

डॉ. अरुण कुमार का कहना है कि अगर इस अस्पताल में जरूरत के अनुसार पूरा स्टाफ भर्ती कर लिया जाए तो यहां 10 हजार मरीजों का प्रतिदिन इलाज हो सकता है. लेकिन, अभी सिर्फ 1000 या 1500 मरीजों का ही इलाज हो पा रहा है. जबकि दिल्ली के अन्य सरकारी अस्पतालों में क्षमता से अधिक मरीजों का लोड है. लेकिन, यह अकेला ऐसा अस्पताल है, जहां क्षमता से कई गुना कम मरीज आते हैं.

"अभी फैकल्टी की भर्ती प्रक्रिया में है. इन पदों पर भर्ती होने के बाद डॉक्टर और प्रशासनिक विभाग में खाली पदों पर भर्ती करने की प्रक्रिया शुरू करेंगे." -डॉ. आशीष गोयल, अस्पताल के निदेशक

अस्पताल में फैकल्टी की 49 पोस्ट के लिए भर्ती: इस अस्पताल में फैकल्टी और स्पेशलिस्ट डॉक्टर के खाली पदों को भरने के लिए मई में विज्ञापन निकाला गया था. इसमें 19 जुलाई से इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू होनी थी. लेकिन, डॉक्टरों के संगठन यूडीएफए की ओर से हाईकोर्ट में मामला जाने के बाद अस्पताल की ओर से ही इंटरव्यू की प्रक्रिया को रोक दिया गया है. यूडीएफए की तरफ से दायर मामले में कहा गया है कि अस्पताल में फैकल्टी के पदों पर भर्ती नियमों की अनदेखी करके की जा रही है. 18 जुलाई को यूडीएफए की ओर से याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की ओर से अगली सुनवाई 29 अगस्त के लिए तय की गई है.

ढाई साल से अस्पताल में नहीं है कोई स्थायी निदेशक: अस्पताल में बीते ढाई साल से कोई स्थाई निदेशक नहीं है. अक्टूबर 2021 में निदेशक डॉ. बीएल शेरवाल का ट्रांसफर होने के बाद से यहां किसी की स्थायी निदेशक के रूप में नियुक्ति नहीं की गई है. 2017 से 2021 अक्टूबर तक डॉ. बीएल शेरवाल यहां आखिरी स्थायी निदेशक थे. उनके समय में अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं में काफी सुधार हुआ था. लेकिन, उनके बाद अभी तक यहां किसी भी स्थाई निदेशक की भर्ती नहीं हुई है.

नवंबर 2021 से अक्टूबर 2022 तक लाल बहादुर शास्त्री के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संजय अग्रवाल ने अतिरिक्त प्रभार संभाला. उनके बाद अक्टूबर 2022 से जनवरी 2023 तक जीटीबी में निदेशक का पद का संभाल रहे डॉ. सुभाष गिरी को यहां का अतिरिक्त प्रभार दिया गया. फरवरी 2023 से जुलाई 2023 तक लोक नायक अस्पताल के निदेशक (प्रोफेसर) और दिल्ली राज्य कैसर संस्थान के निदेशक डॉ. किशोर सिंह ने भी यहां का अतिरिक्त प्रभार संभाला और अभी मौजूदा समय में में बुराड़ी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. आशीष गोयल को यहां का अतिरिक्त प्रभार सौंपा हुआ है.

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