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शिवपुरी में इलाज के अभाव में आदिवाासी परिवार की मासूम बच्ची की मौत, न इलाज मिला और न एंबुलेंस - innocent girl tribal death

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 27, 2024, 7:45 AM IST

शिवपुरी जिला अस्पताल में सही समय पर इलाज नहीं मिलने से 11 माह की बच्ची की मौत हो गई. दुर्भाग्य ये है कि जिला अस्पताल की ओर से इस आदिवासी परिवार को बच्ची का शव घर ले जाने के लिए दर-दर भटकना पड़ना पड़ा. इससे पहले पीड़ित मां ने बच्ची को बचाने के भरी बारिश में नाला पार किया. इसके बाद 3 सरकारी अस्पतालों में भटकी लेकिन कलेजे के टुकड़े को नहीं बचा पाई.

innocent girl tribal death
आपबीती बताती पीड़ित मां (ETV BHARAT)

शिवपुरी। कोलारस विधानसभा क्षेत्र के तहत रन्नौद थाना क्षेत्र के गुर्जन गांव के आदिवासी परिवार को सरकारी सिस्टम का शिकार होना पड़ा. इस परिवार की 11 माह की मासूम बच्ची ने उपचार के अभाव में रविवार रात जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया. मासूम बच्ची को न तो उपचार उपलब्ध करवाया गया और न ही शव ले जाने के लिए एंबुलेंस मिली. रात में शव घर लेने जाने के लिए भटक रहे माता-पिता को कुछ लोगों ने चंदा इकट्ठा करके रवाना किया.

इलाज के लिए भटकी मां, नहीं बचा सकी अपनी बच्ची को (ETV BHARAT)

अपने मायके रक्षाबंधन मनाने आई थी महिला

मामले के अनुसार ग्राम गुर्जन निवासी मनीषा आदिवासी अपनी 11 माह की जुड़वां बच्चियों को लेकर अपने मायके ग्राम बरखेड़ी रक्षाबंधन मनाने आई थी. बरखेड़ी में शनिवार रात उसकी एक बेटी की तबीयत खराब हो गई. मूसलाधार बारिश के कारण वह बच्ची को लेकर उपचार के लिए नहीं जा सकी. रविवार सुबह जैसे ही बारिश थमी तो वह बच्ची को पास के गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर के यहां ले गई. झोलाछाप डॉक्टर ने बच्ची की हालत को देखते हुए महिला को लुकवासा स्वास्थ्य केंद्र जाने की सलाह दी.

जिम्मेदारों ने एक से दूसरे अस्पताल भटकाया

जब मनीषा बच्ची को लेकर लुकवासा स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंची तो वहां चिकित्सकीय स्टाफ ने बच्ची को उपचार प्रदान करने की बजाय कोलारस जाने की सलाह दी. मनीषा अपनी बच्ची को कोलारस लेकर आई. यहां भी चिकित्सकीय अमले बच्ची को उपचार मुहैया नहीं कराया और शिवपुरी जिला अस्पताल जाने के लिए कहा. वह अपनी बच्ची को लेकर रविवार की शाम 6 बजे जिला अस्पताल लेकर आई तो डॉक्टरों ने बच्ची की गंभीर हालत को देखते हुए भी पहले उससे कागजी खानापूर्ति पूरी करने के लिए कहा.

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गंभीर हालत के बावजूद कागजी कार्रवाई करवाई

मनीषा के अनुसार "उसे एक घंटा तो पर्चा बनवाने में लग गया. उस समय तक डॉक्टरों ने उसकी बच्ची को देखा तक नहीं. जब वह पर्चा बनवा कर लौटी तब तक बच्ची ने दम तोड़ दिया." बता दें कि नियमानुसार मरीज को सबसे पहले जिम्मेदारों को प्राथमिक उपचार मुहैया कराना था और उसे 108 एंबुलेंस उपलब्ध करवानी थी, लेकिन न तो लुकवासा में ऐसा किया गया और न ही कोलारस में. इस मामले में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. बीएल यादव का कहना "बच्ची की मौत के बाद शव वाहन के लिए रेडक्रॉस को सूचना दे दी गई थी. शव वाहन भेजने का काम रेडक्रॉस प्रबंधन ही करता है. सूचना के बाद रेडक्रॉस का शव वाहन उन्हें छोड़ने किन वजह से नहीं गया, यह मालूम नहीं है. मैं इसके बारे में पता करता हूं."

शिवपुरी। कोलारस विधानसभा क्षेत्र के तहत रन्नौद थाना क्षेत्र के गुर्जन गांव के आदिवासी परिवार को सरकारी सिस्टम का शिकार होना पड़ा. इस परिवार की 11 माह की मासूम बच्ची ने उपचार के अभाव में रविवार रात जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया. मासूम बच्ची को न तो उपचार उपलब्ध करवाया गया और न ही शव ले जाने के लिए एंबुलेंस मिली. रात में शव घर लेने जाने के लिए भटक रहे माता-पिता को कुछ लोगों ने चंदा इकट्ठा करके रवाना किया.

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अपने मायके रक्षाबंधन मनाने आई थी महिला

मामले के अनुसार ग्राम गुर्जन निवासी मनीषा आदिवासी अपनी 11 माह की जुड़वां बच्चियों को लेकर अपने मायके ग्राम बरखेड़ी रक्षाबंधन मनाने आई थी. बरखेड़ी में शनिवार रात उसकी एक बेटी की तबीयत खराब हो गई. मूसलाधार बारिश के कारण वह बच्ची को लेकर उपचार के लिए नहीं जा सकी. रविवार सुबह जैसे ही बारिश थमी तो वह बच्ची को पास के गांव में एक झोलाछाप डॉक्टर के यहां ले गई. झोलाछाप डॉक्टर ने बच्ची की हालत को देखते हुए महिला को लुकवासा स्वास्थ्य केंद्र जाने की सलाह दी.

जिम्मेदारों ने एक से दूसरे अस्पताल भटकाया

जब मनीषा बच्ची को लेकर लुकवासा स्वास्थ्य केंद्र लेकर पहुंची तो वहां चिकित्सकीय स्टाफ ने बच्ची को उपचार प्रदान करने की बजाय कोलारस जाने की सलाह दी. मनीषा अपनी बच्ची को कोलारस लेकर आई. यहां भी चिकित्सकीय अमले बच्ची को उपचार मुहैया नहीं कराया और शिवपुरी जिला अस्पताल जाने के लिए कहा. वह अपनी बच्ची को लेकर रविवार की शाम 6 बजे जिला अस्पताल लेकर आई तो डॉक्टरों ने बच्ची की गंभीर हालत को देखते हुए भी पहले उससे कागजी खानापूर्ति पूरी करने के लिए कहा.

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मनीषा के अनुसार "उसे एक घंटा तो पर्चा बनवाने में लग गया. उस समय तक डॉक्टरों ने उसकी बच्ची को देखा तक नहीं. जब वह पर्चा बनवा कर लौटी तब तक बच्ची ने दम तोड़ दिया." बता दें कि नियमानुसार मरीज को सबसे पहले जिम्मेदारों को प्राथमिक उपचार मुहैया कराना था और उसे 108 एंबुलेंस उपलब्ध करवानी थी, लेकिन न तो लुकवासा में ऐसा किया गया और न ही कोलारस में. इस मामले में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. बीएल यादव का कहना "बच्ची की मौत के बाद शव वाहन के लिए रेडक्रॉस को सूचना दे दी गई थी. शव वाहन भेजने का काम रेडक्रॉस प्रबंधन ही करता है. सूचना के बाद रेडक्रॉस का शव वाहन उन्हें छोड़ने किन वजह से नहीं गया, यह मालूम नहीं है. मैं इसके बारे में पता करता हूं."

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