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जानिए, कोडरमा के शिव मंदिर का रहस्य, बाबा की महिमा देख लोग हैरान! - Mysterious Shiv Temple

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jul 29, 2024, 9:54 PM IST

Mysterious Shiv temple in Koderma. कोडरमा में एक ऐसा शिव मंदिर है, जिसका रहस्य आज तक लोगों के लिए पहली है. मंदिर से जुड़ा इतिहास काफी पुराना है. साथ ही मंदिर में स्थापित शिवलिंग भी काफी रहस्यमयी है.

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डिजाइन इमेज (ETV Bharat)

कोडरमाः मान्यता है कि सावन में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं. साथ ही हिन्दू धर्म ग्रंथों में सावन की सोमवारी का खास महत्व बताया गया है. सोमवारी के दिन श्रद्धालु शिवालयों में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. ऐसे तो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का खास स्थान है, लेकिन कोडरमा में भी एक प्राचीन शिव मंदिर हैं तो पुरातात्विक महत्व रखता है और यहां के लोग इस मंदिर को देवघर के बाबा मंदिर के रूप में ही जानते हैं.

कोडरमा के घोड़सिमर मंदिर के कई रहस्य (वीडियो-ईटीवी भारत)

सतगावां के घोड़सिमर मंदिर में छिपे हैं कई रहस्य

हम बात कर रहे हैं कोडरमा के सतगावां प्रखंड स्थित घोड़सिमर मंदिर की. यहां भोलेनाथ को लोग घोड़मेश्वर बाबा के रूप में पूजते हैं. यह मंदिर अति प्राचीन होने के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व भी रखता है. साथ ही मंदिर के गर्भ में कई इतिहास छिपे हैं.

दूध से अभिषेक करने पर उभरती है महादेव की तस्वीर

स्थानीय जानकारों और पुजारी के अनुसार शिव पुराण में जो चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की बताई गई है, वहीं चौहद्दी कोडरमा के घोड़सिमर मंदिर की भी है. यहां भोलेनाथ की पांच फीट आयताकार विशालकाय शिवलिंग स्थापित है, जो दिन के चारों पहर में अलग-अलग रंगों में नजर आता है. साथ ही स्थानीय लोग बताते हैं कि शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने पर भगवान शिव की छवि शिवलिंग पर उभर आती है. मान्यता है कि लंकाधिपति रावण भगवान भोलेनाथ का विशालकाय शिवलिंग लेकर जाते वक्त यहीं रुके थे और यहीं उस शिवलिंग को स्थापित कर दिया. तब से इस जगह पर भोलेनाथ की पूजा-पाठ होती आ रही है.

कोडरमा जियोलॉजिकल विभाग के प्रोफेसर प्यारेलाल यादव ने बताया कि शिवलिंग का रंग बदलना सूर्य की रौशनी के साथ होता है. सूर्य की रौशनी जब मंदिर के फर्श और दीवारों पर जब पड़ती है तो वह रिफलेक्ट करता है. जिसकी वजह से मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग का रंग अलग अलग समय पर परावर्तित होने के कारण अलग-अलग रंगों में नजर आता है. -प्रोफेसर प्यारेलाल यादव, राम लखन सिंह यादव कॉलेज, कोडरमा (जियोलॉजिकल विभाग).

कोडरमा से 55 किलोमीटर दूर घोड़सिमर मंदिर

कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर गया से देवघर जाने वाली सड़क पर दुम्मदुमा गांव स्थित सतगावां प्रखंड के सकरी नदी किनारे अवस्थित घोड़सिमर मंदिर की प्रसिद्धि कोडरमा ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी फैली है और दूर-दूर से लोग इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. यहां शिवलिंग के अलावे हजारों मूर्तियां हैं. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में इस मंदिर के अलावा यहां 108 मंदिरों की स्थापना की थी.

खुदाई में निकल चुकी है कई देवी-देवताओं की प्रतिमा

वहीं आसपास के गांव स्थित मंदिरों की खुदाई के दौरान कई देवी-देवताओं की प्रतिमा निकली थी, लेकिन सभी मूर्तियां खंडित हैं. जानकार बताते हैं कि मुगल काल में इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया गया था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

घोड़सिमर मंदिर की चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की तरह

मंदिर के पूर्व दिशा में शिवपुरी गांव, पश्चिम में दर्शनिया नाला, उत्तर में सकरी नदी, दक्षिण में महावर पहाड़ है. यही चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की भी है. इस ऐतिहासिक स्थल को राज्य सरकार के कला व संस्कृति विभाग ने खुदाई कर विकसित करने की भी योजना बनाई है. साथ ही पुरातत्व विशेषज्ञों ने यहां आकर स्थल का निरीक्षण भी किया है.

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सावन की दूसरी सोमवारीः देवघर के बाबाधाम में कांवरियों का उमड़ा सैलाब, बोलबम के जयकारे से गूंज रहा वातावरण - devotees gathered at Babadham

कोडरमाः मान्यता है कि सावन में भोलेनाथ की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती हैं. साथ ही हिन्दू धर्म ग्रंथों में सावन की सोमवारी का खास महत्व बताया गया है. सोमवारी के दिन श्रद्धालु शिवालयों में पहुंचकर भगवान भोलेनाथ की आराधना करते हैं. ऐसे तो देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक झारखंड के देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का खास स्थान है, लेकिन कोडरमा में भी एक प्राचीन शिव मंदिर हैं तो पुरातात्विक महत्व रखता है और यहां के लोग इस मंदिर को देवघर के बाबा मंदिर के रूप में ही जानते हैं.

कोडरमा के घोड़सिमर मंदिर के कई रहस्य (वीडियो-ईटीवी भारत)

सतगावां के घोड़सिमर मंदिर में छिपे हैं कई रहस्य

हम बात कर रहे हैं कोडरमा के सतगावां प्रखंड स्थित घोड़सिमर मंदिर की. यहां भोलेनाथ को लोग घोड़मेश्वर बाबा के रूप में पूजते हैं. यह मंदिर अति प्राचीन होने के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व भी रखता है. साथ ही मंदिर के गर्भ में कई इतिहास छिपे हैं.

दूध से अभिषेक करने पर उभरती है महादेव की तस्वीर

स्थानीय जानकारों और पुजारी के अनुसार शिव पुराण में जो चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की बताई गई है, वहीं चौहद्दी कोडरमा के घोड़सिमर मंदिर की भी है. यहां भोलेनाथ की पांच फीट आयताकार विशालकाय शिवलिंग स्थापित है, जो दिन के चारों पहर में अलग-अलग रंगों में नजर आता है. साथ ही स्थानीय लोग बताते हैं कि शिवलिंग पर दूध से अभिषेक करने पर भगवान शिव की छवि शिवलिंग पर उभर आती है. मान्यता है कि लंकाधिपति रावण भगवान भोलेनाथ का विशालकाय शिवलिंग लेकर जाते वक्त यहीं रुके थे और यहीं उस शिवलिंग को स्थापित कर दिया. तब से इस जगह पर भोलेनाथ की पूजा-पाठ होती आ रही है.

कोडरमा जियोलॉजिकल विभाग के प्रोफेसर प्यारेलाल यादव ने बताया कि शिवलिंग का रंग बदलना सूर्य की रौशनी के साथ होता है. सूर्य की रौशनी जब मंदिर के फर्श और दीवारों पर जब पड़ती है तो वह रिफलेक्ट करता है. जिसकी वजह से मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग का रंग अलग अलग समय पर परावर्तित होने के कारण अलग-अलग रंगों में नजर आता है. -प्रोफेसर प्यारेलाल यादव, राम लखन सिंह यादव कॉलेज, कोडरमा (जियोलॉजिकल विभाग).

कोडरमा से 55 किलोमीटर दूर घोड़सिमर मंदिर

कोडरमा जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर गया से देवघर जाने वाली सड़क पर दुम्मदुमा गांव स्थित सतगावां प्रखंड के सकरी नदी किनारे अवस्थित घोड़सिमर मंदिर की प्रसिद्धि कोडरमा ही नहीं, बल्कि दूसरे राज्यों में भी फैली है और दूर-दूर से लोग इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. यहां शिवलिंग के अलावे हजारों मूर्तियां हैं. मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने एक ही रात में इस मंदिर के अलावा यहां 108 मंदिरों की स्थापना की थी.

खुदाई में निकल चुकी है कई देवी-देवताओं की प्रतिमा

वहीं आसपास के गांव स्थित मंदिरों की खुदाई के दौरान कई देवी-देवताओं की प्रतिमा निकली थी, लेकिन सभी मूर्तियां खंडित हैं. जानकार बताते हैं कि मुगल काल में इस मंदिर को नष्ट करने का प्रयास किया गया था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.

घोड़सिमर मंदिर की चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की तरह

मंदिर के पूर्व दिशा में शिवपुरी गांव, पश्चिम में दर्शनिया नाला, उत्तर में सकरी नदी, दक्षिण में महावर पहाड़ है. यही चौहद्दी देवघर के बाबा मंदिर की भी है. इस ऐतिहासिक स्थल को राज्य सरकार के कला व संस्कृति विभाग ने खुदाई कर विकसित करने की भी योजना बनाई है. साथ ही पुरातत्व विशेषज्ञों ने यहां आकर स्थल का निरीक्षण भी किया है.

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