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जिस आगरा किले में हुआ था शिवाजी का अपमान, वहीं गूंजेगी शौर्यगाथा - SHIVAJI BIRTH ANNIVERSARY

छत्रपति शिवाजी महाराज की 395वें जयंती समारोह पर आयोजित होगा भव्य कार्यक्रम.

आगरा किला में गूंजेगी शिवाजी की शौर्यगाथा
आगरा किला में गूंजेगी शिवाजी की शौर्यगाथा (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 19, 2025, 2:02 PM IST

आगरा: आगरा किला में बुधवार देर शाम छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा गूंजेगी. इसी आगरा किला में मुगल बादशाह औरगंजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान किया था. इतना ही उन्हें कैद में रखने का हुक्म दिया था. छत्रति शिवाजी महाराज आगरा में मुगल बादशाह औरंगजेब की कैद में 99 दिन तक रहे. अपनी चतुराई से मुगलिया फौज को चकमा देकर छत्रति शिवाजी महाराज अपने बेटे शंभाजी के साथ भाग निकले थे.

आज उसी आगरा किला में महाराष्ट्र सरकार और अजिंक्य देवगिरी प्रतिष्ठान को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से छत्रपति शिवाजी महाराज की 395वीं जयंती समारोह की अनुमति मिली है. इस बार किला में जहांगीर महल के सामने भव्य कार्यक्रम होने जा रहा है. इसमें महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडनवीस, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे, अभिनेता विकी कौशल के साथ ही अन्य ​अतिथि मौजूद रहेंगे.

आगरा किला में गूंजेगी शिवाजी की शौर्यगाथा (Video Credit; ETV Bharat)


19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग हुआ था जन्म: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र) में हुआ था. शिवाजी के पिता शहाजीराजे भोंसले एक सामंत और मां जीजाबाई थीं. शिवाजी महाराज ने भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, जो एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ थे. उन्होंने नौसेना भी तैयार की. सन 1676 में शिवाजी महाराज को उन्हें छत्रपति की उपाधि से नवाजा गया था.

बेटा शम्भाजी संग आगरा आए थे शिवाजी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि औरंगजेब ने दक्षिण भारत जीतने की ठानी. मगर, उसे लगातार छत्रपति शिवाजी महाराज से चुनौती मिल रही थी. इससे औरंगजेब बेहद परेशान था. औरंगजेब ने तब कूटनीति के तहत जयपुर के राजा जयसिंह को दक्षिण भारत में एक भारी भरकम फौज के साथ भेजा. जयसिंह ने दक्षिण में खूब खून बहाया. शिवाजी के कई विश्वासपात्र अपनी ओर कर लिए. इतना ही नहीं, जयसिंह और छत्रपति शिवाजी महाराज के मध्य पुरंदर की संधि हुई.


औरंगजेब के कहने पर राजा जयसिंह ने छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा किला में औरंगजेब मिलने की सलाह दी. कहा कि उन्हें पूरा सम्मान और सुरक्षित वापस भेजा जाएगा. हालांकि, छत्रपति शिवाजी महाराज को औरंगजेब पर भरोसा नहीं था. मगर, सलाहकारों की बात मानकर छत्रपति शिवाजी महाराज अपने पांच वर्षीय बेटा सम्भाजी और विश्वासपात्र सैनिकों के साथ देवगढ़ से आगरा के लिए 05 मार्च 1666 को रवाना हुए. 11 मई 1666 को आगरा आ गए.


दीवान-ए-खास में हुई थी औरंगजेब से मुलाकात: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज की मुलाकात 12 मई 1666 को हुई. आगरा किला के दीवान-ए-खास में औरंगजेब और शिवाजी महाराज की मुलाकात हुई थी. शिवाजी ने औरंगजेब को पांच हजार रुपये न्योछावर में दिए. इसके साथ ही एक हजार मोहरे भेंट की. मगर, मुलाकात में छत्रपति शिवाजी को औरंगजेब ने उचित सम्मान नहीं दिया.

उन्हें छोटे मंसबदारों के पास खड़ा कर दिया. सभी को पान दिए गए. मगर, छत्रवति शिवाजी को पान नहीं दिया गया. औरंगजेब का दरवार ऐसे चलने लगा कि वहां पर शिवाजी हैं ही नहीं. जिस पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने नाराजगी जताई और दीवान-ए-खास से बाहर निकल आए. इस पर औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को दोबारा मिलने के लिए बुलाया. मगर, वे नहीं गए. इससे गुस्साए औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे संभाजी को नजरबंद करके मुगल फौज बैठा दी. फिर, राजा जयसिंह के सुपुर्द करके कैद में रखने हुक्म दिया. जिसका जिक्र मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब 'औरंगजेब' और मेरी पुस्तक तवारीख-ए-आगरा में है.


99 दिन रहे औरंगजेब की कैद में शिवाजी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि औरंगजेब के आदेश पर छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बेटा शम्भाजी को राजा जयसिंह ने फिदाई खां की हवेली (कोठी मीना बाजार) के क्षेत्र में रखा था. जहां अपनी सूझबूझ और चतुराई से शिवाजी महाराज और शम्भाजी दोनों कैद से निकल गए, जो आगरा से निकल कर पहले मथुरा पहुंचे. मथुरा में शिवाजी महाराज ने अपने विश्वासपात्र के पास ही बेटा शम्भाजी को सौंपा. मथुरा से साधु के वेश में प्रयागराज निकल गए. प्रयागराज से फिर शिवाजी महाराज 25 दिन में अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे. औरंगजेब की कैद में शिवाजी महाराज और उनके बेटा शम्भाजी 99 दिन रहे.


शिवाजी ने यूं दिया था चकमा: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि बात 16 मई, 1666 की है. छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की कैद से निकलने के लिए बीमारी का बहाना बनाया. अपनी सेहत के लिए गरीबों को फल बांटना शुरू किए. 19 अगस्त 1666 को शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ यहीं से फलाें व मिठाइयों की टोकरी में बैठकर निकल गए. औरंगजेब को 20 अगस्त 1666 को औरंगजेब को शिवाजी के आगरा से चले जाने की जानकारी हुई थी. शिवाजी 12 सितंबर, 1666 को राजगढ़ पहुंचे. आगरा में छत्रपति शिवाजी का प्रवास 101 दिन का रहा. जिसमें 99 दिन नजरबंदी में बिताए.

इतिहास की तिथियों में है अंतर: छत्रपति शिवाजी महाराज का आगरा में प्रवास 101 दिन का है, जो 11 मई 1666 से 19 अगस्त 1666 तक ही आगरा में रहे. कुछ इतिहासकारों ने शिवाजी के औरंगजेब की कैद से बचकर निकलने की तिथि 13 या 16 अगस्त लिखी हैं. इस बारे में इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि पुरानी व नई तिथियों की गणना में कुछ दिनों का अंतर होता है. यही वजह है कि इतिहासकारों ने अलग-अलग तिथियां लिखी हैं.



यह भी पढ़ें: आगरा किले में गूंजेगी शिवाजी महाराज की शौर्यगाथा, महाराष्ट्र के सीएम भी आएंगे

यह भी पढ़ें: मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज की युद्ध रणनीति आज भी कई देशों के लिए है प्रेरणास्रोत - Chhatrapati Shivaji Maharaj





आगरा: आगरा किला में बुधवार देर शाम छत्रपति शिवाजी महाराज की शौर्य गाथा गूंजेगी. इसी आगरा किला में मुगल बादशाह औरगंजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज का अपमान किया था. इतना ही उन्हें कैद में रखने का हुक्म दिया था. छत्रति शिवाजी महाराज आगरा में मुगल बादशाह औरंगजेब की कैद में 99 दिन तक रहे. अपनी चतुराई से मुगलिया फौज को चकमा देकर छत्रति शिवाजी महाराज अपने बेटे शंभाजी के साथ भाग निकले थे.

आज उसी आगरा किला में महाराष्ट्र सरकार और अजिंक्य देवगिरी प्रतिष्ठान को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से छत्रपति शिवाजी महाराज की 395वीं जयंती समारोह की अनुमति मिली है. इस बार किला में जहांगीर महल के सामने भव्य कार्यक्रम होने जा रहा है. इसमें महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडनवीस, डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे, अभिनेता विकी कौशल के साथ ही अन्य ​अतिथि मौजूद रहेंगे.

आगरा किला में गूंजेगी शिवाजी की शौर्यगाथा (Video Credit; ETV Bharat)


19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग हुआ था जन्म: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग (महाराष्ट्र) में हुआ था. शिवाजी के पिता शहाजीराजे भोंसले एक सामंत और मां जीजाबाई थीं. शिवाजी महाराज ने भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी, जो एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ थे. उन्होंने नौसेना भी तैयार की. सन 1676 में शिवाजी महाराज को उन्हें छत्रपति की उपाधि से नवाजा गया था.

बेटा शम्भाजी संग आगरा आए थे शिवाजी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि औरंगजेब ने दक्षिण भारत जीतने की ठानी. मगर, उसे लगातार छत्रपति शिवाजी महाराज से चुनौती मिल रही थी. इससे औरंगजेब बेहद परेशान था. औरंगजेब ने तब कूटनीति के तहत जयपुर के राजा जयसिंह को दक्षिण भारत में एक भारी भरकम फौज के साथ भेजा. जयसिंह ने दक्षिण में खूब खून बहाया. शिवाजी के कई विश्वासपात्र अपनी ओर कर लिए. इतना ही नहीं, जयसिंह और छत्रपति शिवाजी महाराज के मध्य पुरंदर की संधि हुई.


औरंगजेब के कहने पर राजा जयसिंह ने छत्रपति शिवाजी महाराज को आगरा किला में औरंगजेब मिलने की सलाह दी. कहा कि उन्हें पूरा सम्मान और सुरक्षित वापस भेजा जाएगा. हालांकि, छत्रपति शिवाजी महाराज को औरंगजेब पर भरोसा नहीं था. मगर, सलाहकारों की बात मानकर छत्रपति शिवाजी महाराज अपने पांच वर्षीय बेटा सम्भाजी और विश्वासपात्र सैनिकों के साथ देवगढ़ से आगरा के लिए 05 मार्च 1666 को रवाना हुए. 11 मई 1666 को आगरा आ गए.


दीवान-ए-खास में हुई थी औरंगजेब से मुलाकात: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' ने बताया कि औरंगजेब और छत्रपति शिवाजी महाराज की मुलाकात 12 मई 1666 को हुई. आगरा किला के दीवान-ए-खास में औरंगजेब और शिवाजी महाराज की मुलाकात हुई थी. शिवाजी ने औरंगजेब को पांच हजार रुपये न्योछावर में दिए. इसके साथ ही एक हजार मोहरे भेंट की. मगर, मुलाकात में छत्रपति शिवाजी को औरंगजेब ने उचित सम्मान नहीं दिया.

उन्हें छोटे मंसबदारों के पास खड़ा कर दिया. सभी को पान दिए गए. मगर, छत्रवति शिवाजी को पान नहीं दिया गया. औरंगजेब का दरवार ऐसे चलने लगा कि वहां पर शिवाजी हैं ही नहीं. जिस पर छत्रपति शिवाजी महाराज ने नाराजगी जताई और दीवान-ए-खास से बाहर निकल आए. इस पर औरंगजेब ने छत्रपति शिवाजी महाराज को दोबारा मिलने के लिए बुलाया. मगर, वे नहीं गए. इससे गुस्साए औरंगजेब ने शिवाजी महाराज और उनके बेटे संभाजी को नजरबंद करके मुगल फौज बैठा दी. फिर, राजा जयसिंह के सुपुर्द करके कैद में रखने हुक्म दिया. जिसका जिक्र मशहूर इतिहासकार जदुनाथ सरकार की किताब 'औरंगजेब' और मेरी पुस्तक तवारीख-ए-आगरा में है.


99 दिन रहे औरंगजेब की कैद में शिवाजी: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि औरंगजेब के आदेश पर छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके बेटा शम्भाजी को राजा जयसिंह ने फिदाई खां की हवेली (कोठी मीना बाजार) के क्षेत्र में रखा था. जहां अपनी सूझबूझ और चतुराई से शिवाजी महाराज और शम्भाजी दोनों कैद से निकल गए, जो आगरा से निकल कर पहले मथुरा पहुंचे. मथुरा में शिवाजी महाराज ने अपने विश्वासपात्र के पास ही बेटा शम्भाजी को सौंपा. मथुरा से साधु के वेश में प्रयागराज निकल गए. प्रयागराज से फिर शिवाजी महाराज 25 दिन में अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे. औरंगजेब की कैद में शिवाजी महाराज और उनके बेटा शम्भाजी 99 दिन रहे.


शिवाजी ने यूं दिया था चकमा: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि बात 16 मई, 1666 की है. छत्रपति शिवाजी महाराज ने औरंगजेब की कैद से निकलने के लिए बीमारी का बहाना बनाया. अपनी सेहत के लिए गरीबों को फल बांटना शुरू किए. 19 अगस्त 1666 को शिवाजी अपने पुत्र संभाजी के साथ यहीं से फलाें व मिठाइयों की टोकरी में बैठकर निकल गए. औरंगजेब को 20 अगस्त 1666 को औरंगजेब को शिवाजी के आगरा से चले जाने की जानकारी हुई थी. शिवाजी 12 सितंबर, 1666 को राजगढ़ पहुंचे. आगरा में छत्रपति शिवाजी का प्रवास 101 दिन का रहा. जिसमें 99 दिन नजरबंदी में बिताए.

इतिहास की तिथियों में है अंतर: छत्रपति शिवाजी महाराज का आगरा में प्रवास 101 दिन का है, जो 11 मई 1666 से 19 अगस्त 1666 तक ही आगरा में रहे. कुछ इतिहासकारों ने शिवाजी के औरंगजेब की कैद से बचकर निकलने की तिथि 13 या 16 अगस्त लिखी हैं. इस बारे में इतिहासकार राजकिशोर राजे बताते हैं कि पुरानी व नई तिथियों की गणना में कुछ दिनों का अंतर होता है. यही वजह है कि इतिहासकारों ने अलग-अलग तिथियां लिखी हैं.



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