पौड़ी गढ़वाल: वनाग्नि की रोकथाम को लेकर इस वर्ष शीतलाखेत मॉडल और ड्रोन तकनीक अपनाई जाएगी. उत्तराखंड में हर साल जंगलों में लगने वाली आग से बहुमूल्य वन संपदा जलकर खाक हो जाती है. इसके साथ ही वन्य जीव भी इससे प्रभावित होते हैं. इन सभी नुकसानों को रोकने के लिए इस बार जिला प्रशासन ने अपनी कमर कस ली है. जिलाधिकारी ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर महत्वपूर्ण निर्देश भी जारी किए हैं.
वनाग्नि की रोकथाम को लेकर आज जिलाधिकारी आशीष चौहान ने वन विभाग के अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की. जिसमें विभिन्न रणनीतियों और तकनीकों का उपयोग कर वनाग्नि की घटनाओं को नियंत्रित करने के निर्देश दिए. जिलाधिकारी ने जनसहभागिता, शीतलाखेत मॉडल और ड्रोन तकनीक के प्रयोग को प्रभावी बनाने पर जोर दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि जंगलों को आग से बचाने के लिए ग्रामीणों के साथ समन्वय बनाना अनिवार्य है. एफआईआर की इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट समय पर उपलब्ध करानी होगी.
वनाग्नि की रोकथाम के लिए, जिलाधिकारी ने तकनीकी उपकरणों को चालू रखने, मानव संसाधनों की अद्यतन सूची बनाने और अन्य देशों में अपनाई जा रही आधुनिक तकनीकों का अनुसरण करने के निर्देश दिए. शीतलाखेत मॉडल के अंतर्गत जनसहभागिता में महिला समूहों, सरपंचों और ग्राम प्रहरियों को शामिल किया जाएगा. साथ ही ड्रोन तकनीक से निगरानी की जाएगी. वन विभाग द्वारा वनाग्नि रोकथाम के लिए 31 करोड़ रुपये का पूर्वानुमान शासन को भेजा जाएगा, जो कि मानव संसाधन, तकनीक और राहत सहायता के लिए आवंटित होगी.