शहडोल (अखिलेश शुक्ला) : मध्य प्रदेश का शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां अत्याधुनिक तरीके से सब्जियों की खेती होने लगी है. सब्जियों की खेती करने वालों में खासकर मल्चिंग पद्धति का क्रेज बढ़ता जा रहा है. ज्यादातर किसान खेतों में मल्चिंग तकनीक से ही सब्जियों की खेती कर रहे हैं. आखिर यह तकनीक क्या है, मल्चिंग कैसे की जाती है, कितना खर्च आ जाता है और इसके क्या फायदे हैं, सब कुछ जानने के लिए पूरा पढ़ें यह आर्टिकल.
मल्चिंग तकनीक का बढ़ रहा क्रेज
शहडोल में राम सजीवन कचेर और शीतेश जीवन पटेल जैसे किसान पिछले कुछ सालों से मल्चिंग तकनीक से सब्जियों की खेती कर रहे हैं. उनका मानना है कि "मल्चिंग तकनीक से खेती करना काफी फायदेमंद रहा है, क्योंकि इससे खेती करने में लागत कम रहती है और फसल की पैदावार भी अच्छी होती है. इस तकनीकि से खेती करने में देखा गया है कि मिट्टी की संरचना में सुधार हुआ है. साथ ही मिट्टी में पोषक तत्व भी बढ़ते हैं.
मल्चिंग तकनीक से बढ़ी पैदावार
बता दें कि जो किसान पिछले कई सालों से सब्जी की खेती से ही अपना घर चलाते आ रहे हैं. अब वे भी नए-नए प्रयोग करते हुए मल्चिंग तकनीक से खेती कर रहे हैं. जिसकी वजह से वे कम लागत में अच्छी फसल पैदाकर रहे हैं. इन किसानों को यह तकनीक काफी पसंद भी आ रही है. अब जिले के ज्यादातर किसान मल्चिंग तकनीक का उपयोग खेती करने के लिए कर रहे हैं. एक तरह से कहा जाए तो आदिवासी अंचल में सब्जी की खेती करने वाले किसानों में मल्चिंग तकनीक से खेती करने का क्रेज काफी बढ़ रहा है.
क्या है मल्चिंग तकनीक?
आखिर मल्चिंग तकनीक क्या है, इसे लेकर उद्यानिकी विस्तार अधिकारी विक्रम कलमे बताते हैं, "पहले हम देखते थे कि जो किसान सब्जी की खेती करते थे. वे धान का पैरा या घास फूस से हल्दी, अदरक की फसल को ढक देते थे. इस तकनीक को ट्रेडिशनल मल्चिंग कहा जाता था, लेकिन आजकल बदलते वक्त के साथ मल्चिंग में भी आधुनिकता आई है और अब पॉलिथीन वाली मल्चिंग चलने लगी है. पॉलिथीन वाली मल्चिंग से ज्यादा बेनिफिट भी रहते हैं."
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ऐसे लगाई जाती है मल्चिंग
विक्रम कलमे ने कहा, "मान लीजिए आपको खेत में सब्जी की फसल लगानी है, तो पहले खेतों की सफाई करके अच्छे से जुताई कर लीजिए. उसके बाद खेत में जो भी खाद, मिट्टी आदि मिलानी है सब मिला दें. इसके बाद उसके बेड़े तैयार किए जाते हैं और फिर इसमें ड्रिप सिंचाई के लिए एक पाइप लाइन बिछाई जाती है. फिर उसके ऊपर से पॉलिथीन की मल्चिंग बिछाकर के दोनों किनारों को मिट्टी से दबा दिया जाता है. फिर जहां पौधे लगाने होते हैं, वहां छेद करके पौधे लगा दिए जाते हैं. ड्रिप के माध्यम से उन पौधों की जगह पर बूंद-बूंद करके पानी दिया जाता है, इसे मल्चिंग तकनीक कहा जाता है."
मल्चिंग के फायदे
- उद्यानिकी विस्तार अधिकारी विक्रम कलमे बताते हैं कि "मल्चिंग पद्धति से खेती करने के बहुत सारे फायदे हैं. जब भी हम किसी सब्जी, फूल और फल की खेती मल्चिंग पद्धति से करते हैं, तो सबसे पहला फायदा तो ये होता है कि हमें अनावश्यक घास फूस से निजात मिल जाती है. साथ ही अनावश्यक खरपतवार भी नहीं होती हैं. खरपतवार नहीं होने पर निंराई गुड़ाई के लिए मजदूरों की जरूरत नहीं पड़ती है."
- पौधे के आसपास जब खरपतवार नहीं होते हैं, तो फसल में बीमारियां भी कम लगती हैं. कीड़े मकोड़ों का प्रकोप भी कम देखने को मिलता है और पौधे पूरी तरह से स्वस्थ होते हैं. जिससे उत्पादन भी अच्छा होता है.
- मल्चिंग बिछी रहने से जब ड्रिप के माध्यम से बूंद बूंद करके पानी जाता है, तो नमी हमेशा बनी रहती है. इसके अलावा एक गर्म वातावरण बना रहता है. जिससे जड़ों का ग्रोथ अच्छा होता है. जब जड़ का ग्रोथ अच्छा होता है तो पौधों की भी ग्रोथ अच्छी होती है.
- मल्चिंग में पानी की भी आवश्यकता कम होती है, क्योंकि नमी काफी लंबे समय तक बनी रहती है. खेत में नमी लंबे समय तक इसलिए बनी रहती है, क्योंकि ऊपर पॉलीथिन की मल्चिंग बिछी हुई होती है.
- मल्चिंग करने से मिट्टी का कटाव रुकता है और जो भी पोषक तत्व हैं वो सही मात्रा में देने में आसानी होती है. इसके अलावा तापमान भी कंट्रोल रहता है और मल्चिंग की सबसे बड़ी खूबी है कि हर मौसम में यह बहुत फायदेमंद होता है. क्योंकि इससे तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है और पौधों का विकास सही तरीके से और समय पर होता है.
कितनी लागत, पैदावार में कितना फर्क?
आखिर मल्चिंग तकनीक से जब खेती करते हैं, तो इसमें लागत कितनी लग जाती है और पैदावार में कितना फर्क आता है. इसे लेकर उद्यानिकी विस्तार अधिकारी विक्रम कलमे बताते हैं कि "जब मल्चिंग बिछाना होता है, तो मजदूर से लेकर मल्चिंग खरीदकर लाने तक हालांकि आप किस क्वालिटी का मल्चिंग ला रहे हैं, वो उस पर निर्भर करता है. एक तरह से देखा जाए तो 12000 रुपये से लेकर के 20 हजार रुपए प्रति एकड़ तक का खर्च मल्चिंग तकनीक में आ सकता है. इसके अलावा बात पैदावार की करें, तो सामान्य तरीके से जब खेती करते हैं. उसकी अपेक्षा मल्चिंग तकनीक से खेती करने से डेढ़ गुना पैदावार ज्यादा होती है."