शहडोल: खरीफ सीजन में शहडोल जिले में धान की खेती बड़े रकबे में प्रमुखता के साथ की जाती है. धान की फसल अपनी आखिरी पोजीशन पर है कहीं पकने की कगार पर है, तो कहीं उस स्टेज पर पहुंच रही है. ऐसे में शहडोल जिले में कई जगहों पर धान की फसल में भूरा फुदका कीट का भी प्रकोप देखने को मिल रहा है. जिसका अगर समय से प्रबंधन नहीं किया गया तो ये फसल को नुकसान पहुंचा सकता है.
भूरा फुदका कीट के बारे में जानें
कृषि वैज्ञानिक डॉ बीके प्रजापति बताते हैं कि "पिछले कुछ दिन से लगातार किसानों के माध्यम से और खेतों के भ्रमण के दौरान भी धान में मुख्य रूप से ब्राउन प्लांट हूपर जिसे भूरा फुदका कीट बोला जाता है देखने को मिल रहा है. ये ऐसा कीट होता है कि अगर इस कीट के लगने के बाद समय से उसका इलाज नहीं किया गया, तो ये धान की फसल को लगभग 70 परसेंट तक नुकसान पहुंचा सकता है."
धान के इस हिस्से पर करते हैं अटैक
कृषि वैज्ञानिक डॉ बी के प्रजापति बताते हैं कि "शहडोल जिले में अत्यधिक मात्रा में शंकर धान का उत्पादन किया जाता है और इसकी बहुत घनी बुवाई की जाती है. जिसके कारण भूमि में बहुत ज्यादा आर्द्रता हो जाती है और जिसके चलते इस कीट का प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है. इस कीट की तीन अवस्था होती हैं. शिशु, निम्फ और वयस्क. धान का तना जहां जमीन से जुड़ा होता है या पानी में टच होता है, वहां पर ये कीट चिपके हुए होते हैं."
भूरा फुदका प्रकोप के लक्षण
भूरा फुदका कीट एक रस चूसक कीट होता है और इसके जो निम्फ और शिशु कीट होते हैं वो पौधे का पूरा रस चूस लेते हैं. जिसके कारण पौधा पूरी तरह से मुरझा जाता है और इसके जो लक्षण खेत में देखने को मिलेंगे. उसमें आपके धान की खेत में गोल पीले रंग के पैचेस आपको दिखने लगते हैं. जैसे कि धान के पौधे में आग लगा दी गई हो और धान का पौधा मुरझा गया हो. फसल में गोल पैचेस इसकी मुख्य रूप से सबसे बड़ी पहचान होती है.
समय पर कीट नियंत्रण जरूरी
कृषि वैज्ञानिक डॉ बी के प्रजापति कहते हैं कि "धान की फसल में भूरा फुदका कीट अगर लगा हुआ है तो इसका सही समय पर नियंत्रण करना जरूरी होता है. अगर समय पर इसका इलाज नहीं किया तो ये लगभग 70% तक धान की उत्पादकता को प्रभावित कर सकता है.
इसके नियंत्रण के लिए बहुत जरूरी है कि जब भी धान की खेती करें, वहां पौधे से पौधे की दूरी बराबर मेंटेन करके रखें. उसके अलावा कोशिश करें की शंकर धान की जगह पर विश्वविद्यालय से विकसित धान की वैरायटी जैसे JR 206, JR 81, JR 767 जैसी धान की किस्मों को लगाएं. इन धान की किस्मों पर भूरा फुदका कीट कम लगते हैं.
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बचाव का जैविक और रासायनिक तरीका
कृषि वैज्ञानिक डॉ बी के प्रजापति बताते हैं कि "जब भी हम जैविक कीटनाशक की बात करें तो नीम तेल 1500 पीपीएम का जो होता है उसको 5 एमएल प्रति लीटर की दर से छिड़काव करना होता है. शुरुआती अवस्था में रोकथाम के लिए इसमें थोड़ा सा हींग मिला दें तो ये और भी ज्यादा कारगर हो जाता है. इसके अलावा इस कीट के नियंत्रण के लिए कई रासायनिक दवा भी आती हैं. जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए आप अपने क्षेत्र के कृषि विज्ञान केंद्र में कृषि वैज्ञानिकों से भी सलाह ले सकते हैं और उचित दवा पूछकर सही मात्रा में उसका छिड़काव कर सकते हैं.