शहडोल: मध्य प्रदेश का शहडोल आदिवासी बाहुल्य जिला है. यहां पर कई लोग मुर्गी पालन करते हैं. जिसमें अलग-अलग नस्ल की मुर्गियों का पालन किया जाता है. कुछ लोग देसी मुर्गियों का पालन करना पसंद करते हैं, तो कुछ लोग कड़कनाथ मुर्गियों का पालन बड़ी तेजी के साथ कर रहे हैं. वहीं, असील नस्ल के मुर्गे मुर्गियां किसी एटीएम से कम नहीं हैं. मार्केट में कड़कनाथ को कड़ी टक्कर देते हैं और मैदानी जंग में फाइटर की तरह लड़ते हैं. स्वाद में इनका कोई जवाब नहीं है.
कौन सा है ये फाइटर मुर्गा?
इस फाइटर मुर्गे को लेकर शहडोल कृषि विभाग के सहायक संचालक रमेन्द्र सिंह बताते हैं कि "असील नस्ल का ये मुर्गा होता है, जो बेसिकली लड़ाकू मुर्गा होता है. असील शब्द का मतलब ही होता है वास्तविक, अथवा शुद्ध. ये मुर्गा प्योर देसी नस्ल का होता है और इसकी अच्छी खासी डिमांड होती है. कई जगहों पर इसे फाइटिंग के लिये पाला जाता है. इसकी कमर्शियल डिमांड भी अच्छी खासी है."
कहां-कहां पाए जाते हैं?
शहडोल कृषि विभाग के सहायक संचालक रमेन्द्र सिंह ने बताया, "असील नस्ल का मुर्गा छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश सहित ओडिशा राज्य में पाया जाता है. इसका पुराने समय से लड़ाई में उपयोग होता आ रहा है. दरअसल, पुराने समय में मनोरंजन के लिए मुर्गों को आपस में लड़ाया जाता था. जिसके लिए ग्रामीण क्षेत्र में लोग असील मुर्गे को अपने घरों में पाल कर लड़ाई के लिए तैयार करते थे. मुर्गों की लड़ाई देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे."
आक्रामक प्रवृति का होता है
सहायक संचालक रमेन्द्र सिंह ने बताया, "असील नस्ल का ये मुर्गा बहुत मजबूत होता है. इसकी शारीरिक बनावट ही ऐसी होती है, जो इसे बहुत मज़बूत बनाती है. इसमें बहुत ताकत और एनर्जी होती है. जिसकी वजह से यह लड़ाई के बहुत तेज होता है. असील नस्ल के मुर्गे की शारीरिक बनावट को अगर देखा जाए तो इसकी गर्दन लंबी रहती है. मुंह गोल बेलनाकार होता है, जबकि चोंच छोटी रहती है और टांगें लंबी-लंबी रहती हैं. इसकी बनावट की वजह से इनको लड़ाई के लिए शुरू से उपयोग किया गया है. यह थोड़ी आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं."
कहां मिल सकते हैं इसके चूजे
असील नस्ल के मुर्गे मुर्गियों की दो तरह की प्रजाति धीरे-धीरे डेवलप हो गई है. एक फाइटर होता है और दूसरा कमर्शियल होता है. असील नस्ल के फाइटर मुर्गे का चूजा आंध्र में मिलेगा, लेकिन जो कमर्शियल चूजा है वो हमारे मध्य प्रदेश में ही मिल जाएगा. ये छिंदवाड़ा जिले के जुन्नारदेव में एक जगह डोंगरिया है. जहां कुछ लोग फार्म में इसके चूजे अवेलेबल करा रहे हैं और उसका पालन भी कर रहे हैं.
अंडे से लेकर मांस तक की मार्केट में डिमांड
मार्केट में असील नस्ल के मुर्गे के मांस और अंडे की बहुत ज्यादा डिमांड है. इसके मांस की उपयोगिता बताई जाए तो ये मुर्गा एक से डेढ़ वर्ष में 3 से 4 किलो का हो जाता है और मुर्गी 2 से 3 किलो की हो जाती है. इनका अंडा भूरे और क्रीम रंग का होता है. असील नस्ल की मुर्गी दूसरे नस्ल की मुर्गियों की अपेक्षा कम अंडा देती है. यह एक साल में लगभग 60 से 70 अंडे देती है, लेकिन इनका अंडा मंहगा बिकता है. बाजार में इस नस्ल की मुर्गियों के अंडों की भारी डिमांड रहती है. अंडे का वजन ही लगभग 40 ग्राम होता है.
एटीएम की तरह उगलेगा पैसा
असील नस्ल का ये मुर्गा समय समय पर आपके लिए पैसों की भी बारिश कर सकता है. अगर इसका उपयोग मांस परपज के लिए किया जाए, तो किसानों के लिए लाभदायक होगा. ये मुर्गा एक से डेढ़ वर्ष में लगभग 3 से 4 किलो वजनी हो जाता है. बाजार में इसका एक किलो मांस 400 से 500 रुपये किलो के लगभग बिकता है. ऐसे में एक मुर्गा 2000 से 2500 रुपये में जायेगा, जबकि देसी नस्ल के दूसरे मुर्गे 500 से 600 रुपये तक में बिकते हैं.
देसी मुर्गे की तरह किया जा सकता है पालन
कृषि अधिकारी रमेन्द्र सिंह बताते हैं कि "असील नस्ल के इस मुर्गे का पालन देसी नस्ल के मुर्गों की तरह ही किया जा सकता है. जिस तरह से देसी नस्ल के मुर्गों का पालन किया जाता है, उसमें कम देखरेख और कम लागत लगती है. ये बाहर से ही ज्यादातर अपने खाने की पूर्ति कर लेते हैं. इसको बहुत ज्यादा बीमारियां भी नहीं लगती हैं. इसकी वजह से इनका बड़ी आसानी से पालन किया जा सकता है."
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कड़कनाथ से कम नहीं ये मुर्गा
एक तरह से देखा जाए तो असील नस्ल का ये मुर्गा कड़कनाथ से कम नहीं है. बाजार में कड़कनाथ को कड़ी टक्कर देता है, क्योंकि इसका मांस और अंडा बहुत पौष्टिक होता है. जिस तरह से ये लड़ाकू मुर्गा है और इसकी शारीरिक बनावट जिस तरह से है, ठीक उसी तरह से पौष्टिकता में भी ये बहुत आगे है. इसलिए इसे कड़कनाथ की टक्कर का मुर्गा माना जाता है.