सराज: हिमाचल को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है. यहां पर जगह-जगह पर अटूट देव आस्था के प्रमाण मिलते हैं. बड़ी से बड़ी चुनौती भी लोगों की देवताओं के प्रति आस्था को डोल नहीं पाती है. यहां चाहे बारिश हो या बर्फबारी, लेकिन लोगों में अपने देवी-देवताओं को अपने घर मेहमान नवाजी के लिए बुलाने का उत्साह कम नहीं होता है.
गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश में ऊंचाई वाले इलाकों में जमकर बर्फबारी हुई है. ऐसे में बर्फबारी के चलते लोगों की मुश्किलें बढ़ती हुई नजर आ रही हैं. भारी बर्फबारी के चलते लोगों को बर्फ में कई मीलों का पैदल सफर तय करना पड़ रहा है, लेकिन बावजूद इसके इन इलाके के लोगों में देव आस्था कम नहीं हुई है. लोग इन दुर्गम परिस्थितियों में भी देवी-देवताओं के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं.
तय किया 40 KM का सफर: इसका ताजा उदाहरण सराज घाटी के डाहर इलाके में देखने को मिला. जहां घाटी में गिरी भारी बर्फ के बीच से होकर सराज घाटी के आराध्य देव शैट्टी को करीब 40 किलोमीटर चलकर डाहर से चेत पहुंचाया गया. देवता की मूल कोठी बाहर के बूगं गांव में है. जहां से 25 देवलुओं ने देवता को बूंग के घने जंगल, खोड़ थाच, शरणधार व शैटाधार और बर्फ से लदे पहाड़ के रास्ते से होकर देव शैट्टी के साथ चेत बहड़ के करीब 25 देवलु चेत पंचायत के गाड़ा गांव पहुंचे. जहां भारी बर्फबारी के बीच देवता और देवलुओं का स्थानीय लोगों ने गांव में भव्य स्वागत किया.
शादी के निमंत्रण पर पहुंचे देवता: देवता शैटी को बूंग गांव से चेत लाया गया. पूरा रास्ता 40 किलोमीटर का है, लेकिन बर्फबारी के चलते देवलू एक देवता को एक दिन में लेकर नहीं पहुंच सकते थे. इसलिए पहले दिन वीरवार को देवता को चेत के गाड़ा गांव तक लाया गया. यहां अंधेरा होने पर देव शैटी देवता के भंडारी उदय सिंह के घर में रुके. उसके बाद देवता जरोल समीप हलीण में गए, जहां एक श्रद्धालु के घर से देवता को शादी का निमंत्रण मिला था. इसलिए देवता शादी में वर-वधू को आशीर्वाद देने के लिए शामिल हुए.
देवता के चेत हार के गूर नागणू ने बताया कि यहां पर चाहे कितनी भी बारिश या बर्फबारी हो, देवता को मेहमान नवाजी के लिए जाना ही पड़ता है. एक बार अगर देवात की पर्ची कट गई तो देवता को हर हाल में उस जगह पर जाना होता है. देवता को बूंग से चेत तक लाने वाले 25 देवलुओं में से सेन ठाकुर, नरेंद्र ठाकुर टिक्कम ठाकुर, चेतराम ठाकुर व नोक सिंह ठाकुर ने बताया कि करीब 10 हजार की ऊंची पहाड़ी होने पर शैटाधार के आसपास बर्फ करीब साढ़े चार फीट से ज्यादा थी. रथ को उठाए देवलुओं के पैर बर्फ में धंस न जाएं. उसके लिए आगे के देवलूओं ने लाठी का सहारा लेकर रथ को निकाला और वह इसी तरह आगे बढ़ते रहे.