सिवनी। नर्मदापुरम राज्य मार्ग पर भमेड़ीदेव में सोमवार को भीलटदेव मेला का आयोजन किया गया जो वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी तक चलेगा. इस दौरान भीलटदेव बाबा कई तरह की भविष्यवाणी करते हैं. मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु मनोकामना लेकर आते हैं. लोग संतान के लिए भी यहां अपनी झोली फैलाते हैं और मनोकामना पूरी होने पर संतान का मुंडन और तुलादान भी इसी स्थान पर किया जाता है.
कई बीमारियों का होगा प्रकोप
ऐसा माना जाता है कि भीलट देव बाबा पुजारियों के शरीर में आकर भविष्यवाणी करते हैं. मंदिर के पुजारी गोविंद दास ने बताया कि " सोमवार शाम मंदिर के पड़िहार दर्वेश्वर गवली के शरीर में भीलटदेव बाबा आए. उन्होंने आगामी छह माह के लिए भविष्यवाणी की. बाबा ने भविष्यवाणी में बताया कि पुरुषों के ऊपर कई तरह की बीमारियों का प्रकोप रहेगा. खंड-खंड में कही अधिक तो कहीं कम बारिश होगी. धर्म और पुण्य कार्य करने पर बाबा सबकी मदद करेंगे."
साल में दो बार होती है भविष्यवाणी
भीलटदेव के मंदिर में पड़िहार बाबा साल में दो बार भविष्यवाणी करते हैं. कई लोग भीलटदेव को नाग अवतार तो कई योगी संत का अवतार मानते है. कहा जाता है कि पूरे भारत में रहने वाले हरिजन, आदिवासी, गोंड, कोरकू आदि समुदाय के लोग सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक भीलटदेव को मानते हैं. मेले के पहले दिन चैत्र सुदी चौदस को भीलटदेव पड़िहार के शरीर पर आकर नीर लेते हैं और आगामी छह माह की भष्यिवाणी करते हैं. इनकी भविष्यवाणी में हवा, पानी, व्यापार, फसल रोग आदि के बारे में बताया जाता है.
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ऐसे बने 'बाबा भीलटदेव'
कहा जाता है कि भीलटदेव आदिवासी परिवार में जन्म लिए. उनके माता का नाम मेंदाबाई और पिता का नाम रेवजी गोली था. वे शंकर और पार्वती की पूजा में लीन रहते थे. उन्होंने 10 साल की उम्र में घर त्याग दिया और बंगाल पहुंच गए. वहां उन्होंने घोर तपस्या की और धर्म प्रचार करने लगे. बाबा की बढ़ती ख्याति से चिढ़ कर एक तांत्रिक ने जादू टोना कर मारना चाहा, लेकिन वह परास्त हो गया. जिसके बाद वहां के राजा ने अपनी कन्या राजलमती से भीलटदेव का विवाह करा दिया. कुछ दिन बाद वे पचमढ़ी स्थित बड़ा महादेव की शरण में आ गए. वहां उन्होंने जिस स्थान पर रात को विश्राम किया उस स्थान पर ही मेला का आयोजन किया जाता है.