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दिल्ली में AAP को बड़ा झटका, सीलमपुर विधायक अब्दुल रहमान कांग्रेस में हुए शामिल - ABDUL REHMAN JOINED CONGRESS

-टिकट कटने से पार्टी से नाराज चल रहे थे अब्दुल रहमान -AAP ने सीलमपुर से पूर्व कांग्रेस नेता चौधरी जुबैर अहमद को बनाया प्रत्याशी

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 10, 2024, 10:22 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट कटने से वंचित रहने वाले नेता लगातार पार्टी छोड़ रहे हैं. इसी क्रम में आम आदमी पार्टी के सीलमपुर से विधायक अब्दुल रहमान ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए. पिछले महीने आम आदमी पार्टी द्वारा सीलमपुर से कांग्रेस नेता जुबेर अहमद को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद से ही अब्दुल रहमान नाराज चल रहे थे.

जुबेर अहमद के पिता चौधरी मतीन अहमद कांग्रेस से सीलमपुर से लगातार पांच बार विधायक रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मतीन अहमद को ही हराकर अब्दुल रहमान विधायक चुने गए थे. पिछले महीने ही कांग्रेस के बाबरपुर जिलाध्यक्ष चौधरी जुबेर अहमद और उनकी पार्षद पत्नी शगुफ्ता चौधरी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. उसके कुछ दिन बाद खुद चौधरी मतीन अहमद भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. उन्हें केजरीवाल ने पार्टी की सदस्यता दिलाई थी. उस दौरान ही अब्दुल रहमान ने आम आदमी पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. तभी से अब्दुल रहमान का आम आदमी पार्टी छोड़ने तय माना जा रहा था.

मंगलवार को रहमान ने अपने एक्स हैंडल से पोस्ट करके लिखा; ''मैं अब्दुल रहमान, विधायक, सीलमपुर विधानसभा, आज भारी मन से आम आदमी पार्टी की सदस्यता और पार्टी से इस्तीफा देने का निर्णय ले रहा हूं. यह निर्णय मेरे लिए आसान नहीं था. लेकिन, पार्टी के नेतृत्व और नीतियों में जिस तरह से मुसलमानों और अन्य वंचित समुदायों की उपेक्षा की गई है. उसके बाद यह मेरा नैतिक कर्तव्य बन गया है.''

AAP पर लगाया मुसलमानों की बेरुखी का आरोप: अब्दुल रहमान ने कहा कि पार्टी की स्थापना के समय मैंने इसे एक ऐसी पार्टी माना था, जो धर्म, जाति, और समुदाय से ऊपर उठकर जनता की सेवा करेगी. लेकिन, बीते वर्षों में आम आदमी पार्टी ने बार-बार यह साबित किया है कि वह केवल वोट बैंक की राजनीति करती है और जब किसी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की बात आती है तो पार्टी चुप्पी साध लेती है.

दिल्ली दंगों के दौरान आपकी सरकार का रवैया बेहद निराशाजनक रहा. दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए न कोई ठोस कदम उठाए गए, न ही कोई सहानुभूति प्रकट की गई. दंगों में झूठे आरोपों में फंसाए गए ताहिर हुसैन को न सिर्फ पार्टी से निष्कासित किया गया. बल्कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. दिल्ली मरकज़ और मौलाना साद को कोरोना महामारी के दौरान निशाना बनाया गया. पार्टी ने इस मामले पर न तो कोई रुख अपनाया और न ही मुसलमानों के खिलाफ किए गए भ्रामक प्रचार का खंडन किया. हाल ही में, संबल दंगों जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आपने एक द्वीट तक करना जरूरी नहीं समझा. पार्टी का दावा था कि वह ईमानदार और पारदर्शी राजनीति करेगी, लेकिन आज वह भी अन्य दलों की तरह सत्ता की राजनीति में उलझ चुकी है.

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जुबेर अहमद के पिता चौधरी मतीन अहमद कांग्रेस से सीलमपुर से लगातार पांच बार विधायक रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में मतीन अहमद को ही हराकर अब्दुल रहमान विधायक चुने गए थे. पिछले महीने ही कांग्रेस के बाबरपुर जिलाध्यक्ष चौधरी जुबेर अहमद और उनकी पार्षद पत्नी शगुफ्ता चौधरी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. उसके कुछ दिन बाद खुद चौधरी मतीन अहमद भी आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे. उन्हें केजरीवाल ने पार्टी की सदस्यता दिलाई थी. उस दौरान ही अब्दुल रहमान ने आम आदमी पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. तभी से अब्दुल रहमान का आम आदमी पार्टी छोड़ने तय माना जा रहा था.

मंगलवार को रहमान ने अपने एक्स हैंडल से पोस्ट करके लिखा; ''मैं अब्दुल रहमान, विधायक, सीलमपुर विधानसभा, आज भारी मन से आम आदमी पार्टी की सदस्यता और पार्टी से इस्तीफा देने का निर्णय ले रहा हूं. यह निर्णय मेरे लिए आसान नहीं था. लेकिन, पार्टी के नेतृत्व और नीतियों में जिस तरह से मुसलमानों और अन्य वंचित समुदायों की उपेक्षा की गई है. उसके बाद यह मेरा नैतिक कर्तव्य बन गया है.''

AAP पर लगाया मुसलमानों की बेरुखी का आरोप: अब्दुल रहमान ने कहा कि पार्टी की स्थापना के समय मैंने इसे एक ऐसी पार्टी माना था, जो धर्म, जाति, और समुदाय से ऊपर उठकर जनता की सेवा करेगी. लेकिन, बीते वर्षों में आम आदमी पार्टी ने बार-बार यह साबित किया है कि वह केवल वोट बैंक की राजनीति करती है और जब किसी समुदाय के अधिकारों की रक्षा की बात आती है तो पार्टी चुप्पी साध लेती है.

दिल्ली दंगों के दौरान आपकी सरकार का रवैया बेहद निराशाजनक रहा. दंगों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए न कोई ठोस कदम उठाए गए, न ही कोई सहानुभूति प्रकट की गई. दंगों में झूठे आरोपों में फंसाए गए ताहिर हुसैन को न सिर्फ पार्टी से निष्कासित किया गया. बल्कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया. दिल्ली मरकज़ और मौलाना साद को कोरोना महामारी के दौरान निशाना बनाया गया. पार्टी ने इस मामले पर न तो कोई रुख अपनाया और न ही मुसलमानों के खिलाफ किए गए भ्रामक प्रचार का खंडन किया. हाल ही में, संबल दंगों जैसे संवेदनशील मुद्दे पर आपने एक द्वीट तक करना जरूरी नहीं समझा. पार्टी का दावा था कि वह ईमानदार और पारदर्शी राजनीति करेगी, लेकिन आज वह भी अन्य दलों की तरह सत्ता की राजनीति में उलझ चुकी है.

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