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गुप्त नवरात्र का दूसरा दिन : मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से मिलती इंद्रियों पर विजय - गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्र में विशेष प्रयोजन, मंत्र सिद्धि और तंत्र पूजा के लिए देवी की आराधना करने वाले लोगों को विशेष फल मिलता है. देवी के अलग-अलग 9 स्वरूपों में दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. ऐसा विश्वास है कि पूजा सफल होने पर साधक को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है.

Second day of Gupt Navratri
गुप्त नवरात्र का दूसरा दिन
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Feb 11, 2024, 8:16 AM IST

बीकानेर. गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. मान्यता है कि पूजा के सफल होने पर साधक को संयम और इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा उपासना के लिए साधक को कठोर तपस्या करनी पड़ती है. इस कठोर तपस्या से माता को प्रसन्न करते हुए साधक एक तपस्वी बन जाता है और तपस्वी में होने वाले सभी गुण के अनुरूप बल, सदाचार, संयम, संकल्प, त्याग और धैर्य की वृद्धि होती है. पूजा आराधना से मंत्र सिद्धि करते हुए साधक खुद पर विजय पाने में सफल होता है और लोभ, क्रोध, वासना, अहंकार पर नियंत्रण करने में सक्षम हो जाता है.

मालपुआ और पायस का भोग : वैसे तो 9 दिन की पूजा आराधना पूरे विधि विधान से की जाती है. इस दौरान साधक माता की आराधना करते हुए जाप करता है. पूजा आराधना में लगने वाले भोग में गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को सभी प्रकार के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं, लेकिन कहा गया है कि माता ब्रह्मचारिणी को पायस यानी खीर और मालपुआ का भोग लगाने से माता ब्रह्मचारिणी जल्दी प्रसन्न होती है. पुष्प में कनेरी के पुष्प अर्पित करने चाहिए.

इसे भी पढ़ें : Gupt Navratri 2024 : आज प्रथम दिन मां शैलपुत्री की पूजा, जागृत करें मूलाधार चक्र

दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान 'चक्र में शिथिल होता है. इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. नवरात्रि में 'या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम' मंत्र का जाप करना चाहिए.

बीकानेर. गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. मान्यता है कि पूजा के सफल होने पर साधक को संयम और इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा उपासना के लिए साधक को कठोर तपस्या करनी पड़ती है. इस कठोर तपस्या से माता को प्रसन्न करते हुए साधक एक तपस्वी बन जाता है और तपस्वी में होने वाले सभी गुण के अनुरूप बल, सदाचार, संयम, संकल्प, त्याग और धैर्य की वृद्धि होती है. पूजा आराधना से मंत्र सिद्धि करते हुए साधक खुद पर विजय पाने में सफल होता है और लोभ, क्रोध, वासना, अहंकार पर नियंत्रण करने में सक्षम हो जाता है.

मालपुआ और पायस का भोग : वैसे तो 9 दिन की पूजा आराधना पूरे विधि विधान से की जाती है. इस दौरान साधक माता की आराधना करते हुए जाप करता है. पूजा आराधना में लगने वाले भोग में गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को सभी प्रकार के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं, लेकिन कहा गया है कि माता ब्रह्मचारिणी को पायस यानी खीर और मालपुआ का भोग लगाने से माता ब्रह्मचारिणी जल्दी प्रसन्न होती है. पुष्प में कनेरी के पुष्प अर्पित करने चाहिए.

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दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान 'चक्र में शिथिल होता है. इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. नवरात्रि में 'या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम' मंत्र का जाप करना चाहिए.

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