ETV Bharat / state

एक सरकारी आदेश से इन स्कूलों में बंद हुआ अनुसूचित जाति छात्रों का प्रवेश, जनजाति क्षेत्रों से जुड़ा है मामला - Uttarakhand Govt Ashram School

Scheduled Caste Students Admission Ban Case, Ashram School Uttarakhand उत्तराखंड में अनुसूचित जाति के गरीब छात्रों को शिक्षा उपलब्ध कराने के मकसद से समाज कल्याण विभाग की ओर से राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय संचालित की जाती है. इन विद्यालयों में निशुल्क आवास, भोजन, यूनीफॉर्म, किताबें आदि मुहैया कराई जाती है, लेकिन एक सरकारी आदेश की वजह से अनुसूचित जाति के छात्रों के अभिभावक पशोपेश में आ गए हैं. यह आदेश इन विद्यालयों में अनुसूचित जाति के बच्चों के एडमिशन से जुड़ा है. जानिए क्या है पूरा मामला...

Ban on admission of Scheduled Caste students
अनुसूचित जाति के छात्रों के प्रवेश पर रोक! (फोटो- ईटीवी भारत ग्राफिक्स)
author img

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 14, 2024, 1:25 PM IST

Updated : May 14, 2024, 5:35 PM IST

एक सरकारी आदेश से इन स्कूलों में बंद हुआ अनुसूचित जाति छात्रों का प्रवेश (ईटीवी भारत)

देहरादून: उत्तराखंड में एक सरकारी आदेश दलित परिवारों के बच्चों के लिए परेशानी बन गया है. पर्वतीय जनजाति क्षेत्रों में चल रहे राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए यह आदेश किया गया था, जिसके कारण इन विद्यालयों में अनुसूचित जाति के परिवारों के बच्चे एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं. खास बात ये है कि इन विद्यालयों के लिए जारी किए गए इस आदेश के बाद क्षेत्र में लोगों द्वारा इसका जमकर विरोध भी किया जा रहा है.

Ban on admission of Scheduled Caste students
बीजेपी मंडल क्वांसी के उपाध्यक्ष बचना शर्मा का पत्र (फोटो- ईटीवी भारत)

सरकारी आदेश ने एसटी छात्रों के लिए खड़ी की मुश्किलें: सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रयास करती है. राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय भी ऐसा ही एक प्रयास है, जिसके कारण बच्चों को विद्यालय में मुफ्त शिक्षा मिल पा रही है. हालांकि, अब एक सरकारी आदेश ने इन विद्यालयों में अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों के लिए समस्या खड़ी कर दी है. ये आदेश सितंबर 2023 में जारी किया गया है.

Ban on admission of Scheduled Caste students
जिला समाज कल्याण अधिकारी देहरादून का आदेश (फोटो सोर्स- समाज कल्याण विभाग)

इस वजह से करीब 200 से ज्यादा स्कूलों में खाली पड़ी सीटों पर भी इन छात्रों का दाखिला नहीं हो पा रहा है. देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में राजकीय आश्रम पद्धति के छह विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें से तीन विद्यालय बालकों के लिए हैं तो वहीं दो विद्यालय बालिकाओं के लिए संचालित हो रहे हैं. बालिकाओं के लिए लाखामंडल और पोखरी में विद्यालय संचालित हो रहे हैं और बालकों के लिए विनोन, त्यूणी, और हरिपुर में स्कूल संचालित हो रहे हैं.

Ban on admission of Scheduled Caste students
भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच का पत्र (फोटो सोर्स- भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच)

जानकारी के अनुसार, इन पांच विद्यालयों में ही बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं लेकिन अनुसूचित जाति से जुड़े छात्र इन खाली सीटों पर भी एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जनजातीय क्षेत्र में इन विद्यालयों की खाली सीटों पर कभी अनुसूचित जाति से जुड़े छात्रों ने शिक्षा ग्रहण न की हो. इससे पहले हमेशा अनुसूचित जाति के छात्र भी इन विद्यालयों में खाली सीटों पर दाखिला लेकर मुफ्त में शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं. बकायदा शासन स्तर पर भी इसके लिए निर्णय हुआ था और एक आदेश जारी करते हुए इन सीटों पर दाखिला दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई थी.

Ban on admission of Scheduled Caste students
अपर सचिव ओंकार सिंह का पत्र (फोटो सोर्स- देहरादून सचिवालय)

हालांकि, महालेखाकार (CAG) द्वारा किए गए ऑडिट में जनजातीय विद्यालयों को लेकर वित्तीय आपत्तियों की गईं जिसमें जनजातीय क्षेत्र के विद्यालयों में अनुसूचित जाति के छात्रों को एडमिशन दिए जाने को गलत माना गया. इसी आपत्ति के बाद आनन-फानन में समाज कल्याण विभाग द्वारा एक आदेश जारी कर दिया गया. ऐसा ही एक आदेश जनजातीय विभाग द्वारा भी जारी हुआ और विद्यालयों में खाली सीटों पर भी दलित परिवारों के बच्चों का एडमिशन बंद हो गया.

इस मामले पर जनजाति कल्याण निदेशालय के स्तर पर आदेश जारी किया गया था. हालांकि, जनजाति कल्याण के निदेशक एसएस टोलिया बताते हैं कि ऑडिट पर आपत्ति आने के बाद उनके द्वारा शासन से इस मामले में दिशा निर्देश मांगे गए थे और समाज कल्याण के स्तर पर निर्देश जारी होने के बाद ही इस मामले में आदेश जारी किया गया था. हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि पुरानी व्यवस्था को फिर से बहाल करने के लिए भी शासन से सुझाव मांगे गए हैं और जैसे भी निर्देश दिए जाएंगे उसी के लिहाज से आगे की कार्रवाई की जाएगी.

उत्तराखंड में जनजाति कल्याण के आश्रम पद्धति से जुड़े स्कूलों की स्थिति: उत्तराखंड में जनजाति कल्याण के आश्रम पद्धति से जुड़े कुल 16 विद्यालय हैं. इस आदेश के बाद इन सभी विद्यालयों में पुरानी व्यवस्था खत्म कर केवल जनजाति के छात्रों के ही प्रवेश हो रहे हैं. हालांकि, प्रदेश में केंद्रीय योजना के तहत अनुसूचित जाति के लिए भी विद्यालय मौजूद हैं. लेकिन सबसे ज्यादा समस्या जौनसार बाबर क्षेत्र में आ रही है क्योंकि यहां पर केवल जनजाति के विद्यालय ही मौजूद हैं. इसके कारण अनुसूचित जाति से जुड़े छात्रों को बड़ी परेशानियां झेलनी पड़ रही है.

निदेशालय के इस आदेश के बाद क्षेत्र के लोगों में भी आक्रोश दिखाई दे रहा है. कई लोग इस मामले को लेकर सामने भी आए हैं. स्थानीय निवासी ओमप्रकाश दलित परिवार के छात्रों को एडमिशन नहीं दिए जाने पर अपनी बात रखते हुए इसे गलत बता रहे हैं और इस पर सरकार को पुनर्विचार करने का भी सुझाव दे रहे हैं.

भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच के संयोजक दौलत कुंवर कहते हैं कि जिस तरह विद्यालयों में प्रवेश को लेकर आदेश हुआ है, वो दलित समाज के बच्चों के साथ धोखा है. इसको लेकर आचार संहिता हटने के बाद बड़ा आंदोलन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रदेश में सरकार ने इस तरह के फैसले के जरिए यह जाहिर कर दिया है कि राज्य सरकार दलित परिवारों को लेकर गंभीर नहीं है.

प्रदेश में जिस तरह जनजाति कल्याण से जुड़े आश्रम पद्धति के विद्यालयों के लिए आदेश करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों के लिए प्रवेश को रोका गया है उसने कई सवाल भी खड़े किए हैं. सवाल ये कि-

  1. ऑडिट की आपत्ति के बाद क्या समाज कल्याण विभाग के पास यही एकमात्र रास्ता था?
  2. विशेष वर्ग के हित के लिए क्या सरकार इस पर विशेष अधिकार के तहत कोई निर्णय नहीं ले सकती थी?
  3. इन विद्यालयों में छात्रों को एडमिशन न दिए जाने के इस निर्णय से पहले अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों के लिए अलग से पहले ही व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
  4. यदि यह नियमों के तहत सही नहीं है तो फिर पहले कैसे शासन के एक आदेश के बाद इस तरह अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों को इसमें एडमिशन मिल पा रहा था?

इन्हीं सभी सवालों के जवाब के लिए ईटीवी भारत ने समाज कल्याण विभाग के सचिव बृजेश कुमार संत से बात की तो उन्होंने इस मामले में पुरानी व्यवस्था को बहाल किए जाने का आदेश दोबारा किए जाने की बात कह दी. हालांकि, यदि पुराना निर्णय लिए जाने में सरकार को पहले ही कोई परेशानी नहीं थी तो फिर ऐसा आदेश क्यों किया इस पर उन्होंने अपनी कोई बात नहीं रखी.

ये भी पढ़ें-

एक सरकारी आदेश से इन स्कूलों में बंद हुआ अनुसूचित जाति छात्रों का प्रवेश (ईटीवी भारत)

देहरादून: उत्तराखंड में एक सरकारी आदेश दलित परिवारों के बच्चों के लिए परेशानी बन गया है. पर्वतीय जनजाति क्षेत्रों में चल रहे राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों के लिए यह आदेश किया गया था, जिसके कारण इन विद्यालयों में अनुसूचित जाति के परिवारों के बच्चे एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं. खास बात ये है कि इन विद्यालयों के लिए जारी किए गए इस आदेश के बाद क्षेत्र में लोगों द्वारा इसका जमकर विरोध भी किया जा रहा है.

Ban on admission of Scheduled Caste students
बीजेपी मंडल क्वांसी के उपाध्यक्ष बचना शर्मा का पत्र (फोटो- ईटीवी भारत)

सरकारी आदेश ने एसटी छात्रों के लिए खड़ी की मुश्किलें: सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए गरीब परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का प्रयास करती है. राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालय भी ऐसा ही एक प्रयास है, जिसके कारण बच्चों को विद्यालय में मुफ्त शिक्षा मिल पा रही है. हालांकि, अब एक सरकारी आदेश ने इन विद्यालयों में अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों के लिए समस्या खड़ी कर दी है. ये आदेश सितंबर 2023 में जारी किया गया है.

Ban on admission of Scheduled Caste students
जिला समाज कल्याण अधिकारी देहरादून का आदेश (फोटो सोर्स- समाज कल्याण विभाग)

इस वजह से करीब 200 से ज्यादा स्कूलों में खाली पड़ी सीटों पर भी इन छात्रों का दाखिला नहीं हो पा रहा है. देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में राजकीय आश्रम पद्धति के छह विद्यालय संचालित किए जा रहे हैं, जिसमें से तीन विद्यालय बालकों के लिए हैं तो वहीं दो विद्यालय बालिकाओं के लिए संचालित हो रहे हैं. बालिकाओं के लिए लाखामंडल और पोखरी में विद्यालय संचालित हो रहे हैं और बालकों के लिए विनोन, त्यूणी, और हरिपुर में स्कूल संचालित हो रहे हैं.

Ban on admission of Scheduled Caste students
भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच का पत्र (फोटो सोर्स- भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच)

जानकारी के अनुसार, इन पांच विद्यालयों में ही बड़ी संख्या में सीटें खाली हैं लेकिन अनुसूचित जाति से जुड़े छात्र इन खाली सीटों पर भी एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जनजातीय क्षेत्र में इन विद्यालयों की खाली सीटों पर कभी अनुसूचित जाति से जुड़े छात्रों ने शिक्षा ग्रहण न की हो. इससे पहले हमेशा अनुसूचित जाति के छात्र भी इन विद्यालयों में खाली सीटों पर दाखिला लेकर मुफ्त में शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं. बकायदा शासन स्तर पर भी इसके लिए निर्णय हुआ था और एक आदेश जारी करते हुए इन सीटों पर दाखिला दिए जाने की व्यवस्था बनाई गई थी.

Ban on admission of Scheduled Caste students
अपर सचिव ओंकार सिंह का पत्र (फोटो सोर्स- देहरादून सचिवालय)

हालांकि, महालेखाकार (CAG) द्वारा किए गए ऑडिट में जनजातीय विद्यालयों को लेकर वित्तीय आपत्तियों की गईं जिसमें जनजातीय क्षेत्र के विद्यालयों में अनुसूचित जाति के छात्रों को एडमिशन दिए जाने को गलत माना गया. इसी आपत्ति के बाद आनन-फानन में समाज कल्याण विभाग द्वारा एक आदेश जारी कर दिया गया. ऐसा ही एक आदेश जनजातीय विभाग द्वारा भी जारी हुआ और विद्यालयों में खाली सीटों पर भी दलित परिवारों के बच्चों का एडमिशन बंद हो गया.

इस मामले पर जनजाति कल्याण निदेशालय के स्तर पर आदेश जारी किया गया था. हालांकि, जनजाति कल्याण के निदेशक एसएस टोलिया बताते हैं कि ऑडिट पर आपत्ति आने के बाद उनके द्वारा शासन से इस मामले में दिशा निर्देश मांगे गए थे और समाज कल्याण के स्तर पर निर्देश जारी होने के बाद ही इस मामले में आदेश जारी किया गया था. हालांकि, वो ये भी कहते हैं कि पुरानी व्यवस्था को फिर से बहाल करने के लिए भी शासन से सुझाव मांगे गए हैं और जैसे भी निर्देश दिए जाएंगे उसी के लिहाज से आगे की कार्रवाई की जाएगी.

उत्तराखंड में जनजाति कल्याण के आश्रम पद्धति से जुड़े स्कूलों की स्थिति: उत्तराखंड में जनजाति कल्याण के आश्रम पद्धति से जुड़े कुल 16 विद्यालय हैं. इस आदेश के बाद इन सभी विद्यालयों में पुरानी व्यवस्था खत्म कर केवल जनजाति के छात्रों के ही प्रवेश हो रहे हैं. हालांकि, प्रदेश में केंद्रीय योजना के तहत अनुसूचित जाति के लिए भी विद्यालय मौजूद हैं. लेकिन सबसे ज्यादा समस्या जौनसार बाबर क्षेत्र में आ रही है क्योंकि यहां पर केवल जनजाति के विद्यालय ही मौजूद हैं. इसके कारण अनुसूचित जाति से जुड़े छात्रों को बड़ी परेशानियां झेलनी पड़ रही है.

निदेशालय के इस आदेश के बाद क्षेत्र के लोगों में भी आक्रोश दिखाई दे रहा है. कई लोग इस मामले को लेकर सामने भी आए हैं. स्थानीय निवासी ओमप्रकाश दलित परिवार के छात्रों को एडमिशन नहीं दिए जाने पर अपनी बात रखते हुए इसे गलत बता रहे हैं और इस पर सरकार को पुनर्विचार करने का भी सुझाव दे रहे हैं.

भारत संवैधानिक अधिकार संरक्षण मंच के संयोजक दौलत कुंवर कहते हैं कि जिस तरह विद्यालयों में प्रवेश को लेकर आदेश हुआ है, वो दलित समाज के बच्चों के साथ धोखा है. इसको लेकर आचार संहिता हटने के बाद बड़ा आंदोलन किया जाएगा. उन्होंने कहा कि प्रदेश में सरकार ने इस तरह के फैसले के जरिए यह जाहिर कर दिया है कि राज्य सरकार दलित परिवारों को लेकर गंभीर नहीं है.

प्रदेश में जिस तरह जनजाति कल्याण से जुड़े आश्रम पद्धति के विद्यालयों के लिए आदेश करते हुए अनुसूचित जाति वर्ग के छात्रों के लिए प्रवेश को रोका गया है उसने कई सवाल भी खड़े किए हैं. सवाल ये कि-

  1. ऑडिट की आपत्ति के बाद क्या समाज कल्याण विभाग के पास यही एकमात्र रास्ता था?
  2. विशेष वर्ग के हित के लिए क्या सरकार इस पर विशेष अधिकार के तहत कोई निर्णय नहीं ले सकती थी?
  3. इन विद्यालयों में छात्रों को एडमिशन न दिए जाने के इस निर्णय से पहले अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों के लिए अलग से पहले ही व्यवस्था क्यों नहीं की गई?
  4. यदि यह नियमों के तहत सही नहीं है तो फिर पहले कैसे शासन के एक आदेश के बाद इस तरह अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों को इसमें एडमिशन मिल पा रहा था?

इन्हीं सभी सवालों के जवाब के लिए ईटीवी भारत ने समाज कल्याण विभाग के सचिव बृजेश कुमार संत से बात की तो उन्होंने इस मामले में पुरानी व्यवस्था को बहाल किए जाने का आदेश दोबारा किए जाने की बात कह दी. हालांकि, यदि पुराना निर्णय लिए जाने में सरकार को पहले ही कोई परेशानी नहीं थी तो फिर ऐसा आदेश क्यों किया इस पर उन्होंने अपनी कोई बात नहीं रखी.

ये भी पढ़ें-

Last Updated : May 14, 2024, 5:35 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.