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सावन की अनोखी परंपरा; पहले सोमवार को काशी में निकली जल यात्रा, ताकि देश में ना पड़े सूखा - Sawan First Monday 2024 - SAWAN FIRST MONDAY 2024

सावन के पहले सोमवार को 1932 से शुरू हुई इस परंपरा का निर्वहन काशी में आज भी किया जा रहा है. जिसमें हजारों की संख्या में लोग हाथों में पानी का जल पात्र लेकर हर-हर महादेव के जय घोष के साथ यादव बंधु भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं. यह अद्भुत दृश्य आज वाराणसी की सड़कों पर दिखाई दिया. जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध था.

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काशी में निभाई जाने वाली सावन के पहले सोमवार की अनोखी परंपरा. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jul 22, 2024, 2:45 PM IST

वाराणसी: सावन 2024 के पहले सोमवार को काशी नगरी में सैकड़ो साल पुरानी उस परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसने पूरे देश में भीषण सूखे और काल को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. वाराणसी की यह परंपरा यादव बंधुओं के द्वारा निभाई जाती है.

सावन के पहले सोमवार को 1932 से शुरू हुई इस परंपरा का निर्वहन काशी में आज भी किया जा रहा है. जिसमें हजारों की संख्या में लोग हाथों में पानी का जल पात्र लेकर हर-हर महादेव के जय घोष के साथ यादव बंधु भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं. यह अद्भुत दृश्य आज वाराणसी की सड़कों पर दिखाई दिया. जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध था.

सावन के पहले सोमवार को काशी में आज जबरदस्त भीड़ देखने को मिल रही है. इन सबके बीच चंद्रवंशी गो-सेवा समिति की तरफ से अति प्राचीन ऐतिहासिक जलाभिषेक कलश यात्रा का आयोजन वाराणसी में किया गया.

काशी में निभाई जाने वाली सावन के पहले सोमवार की अनोखी परंपरा पर संवाददाता गोपाल मिश्र की रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

इसमें हजारों की संख्या में यादव समुदाय के लोगों ने गौरी केदारेश्वर से कलश में जल भरकर अपने परंपरागत मार्गों से होते हुए रास्ते में पड़ने वाले तिलभांडेश्वर, शीतला माता समेत अन्य अलग-अलग मंदिरों में जलाभिषेक करने के बाद बाबा विश्वनाथ का भी जलाभिषेक किया. वहीं इस बार सिर्फ 21 लोगों को ही अभिषेक की अनुमति दी गई. जिस पर गोदौलिया चौराहे पर कुछ यादव बंधुओ ने इसका विरोध भी किया.

इस बारे में चंद्रवंशी गो-सेवा समिति के अध्यक्ष लालजी यादव ने बताया कि 1932 में पूरे देश में जबरदस्त सूखा और अकाल पड़ा था. उस वक्त एक साधु के द्वारा यह बताया गया कि काशी में बाबा विश्वनाथ और अन्य शिवालयों में यादव समुदाय की तरफ से जलाभिषेक किया जाए तो इस सूखे से निजात मिल सकती है.

इसके बाद पूरे काशी समेत आसपास के यादव बंधुओं ने इकट्ठा होकर सावन के प्रथम सोमवार पर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था, अकाल से मुक्ति मिली थी. तभी से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल सावन के पावन मौके पर प्रथम सोमवार के दिन सारे यादव बंधु एकजुट होकर हाथों में बड़े-बड़े कलश लेकर भोलेनाथ के जलाभिषेक करने के लिए निकलते हैं.

ये भी पढ़ेंः सावन 2024 है बेहद खास; इस बार होंगे पांच सोमवार, बरसेगी भोलेनाथ की कृपा, जानिए पूजन का तरीका

वाराणसी: सावन 2024 के पहले सोमवार को काशी नगरी में सैकड़ो साल पुरानी उस परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसने पूरे देश में भीषण सूखे और काल को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. वाराणसी की यह परंपरा यादव बंधुओं के द्वारा निभाई जाती है.

सावन के पहले सोमवार को 1932 से शुरू हुई इस परंपरा का निर्वहन काशी में आज भी किया जा रहा है. जिसमें हजारों की संख्या में लोग हाथों में पानी का जल पात्र लेकर हर-हर महादेव के जय घोष के साथ यादव बंधु भोलेनाथ का जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं. यह अद्भुत दृश्य आज वाराणसी की सड़कों पर दिखाई दिया. जिसे देखकर हर कोई मंत्रमुग्ध था.

सावन के पहले सोमवार को काशी में आज जबरदस्त भीड़ देखने को मिल रही है. इन सबके बीच चंद्रवंशी गो-सेवा समिति की तरफ से अति प्राचीन ऐतिहासिक जलाभिषेक कलश यात्रा का आयोजन वाराणसी में किया गया.

काशी में निभाई जाने वाली सावन के पहले सोमवार की अनोखी परंपरा पर संवाददाता गोपाल मिश्र की रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

इसमें हजारों की संख्या में यादव समुदाय के लोगों ने गौरी केदारेश्वर से कलश में जल भरकर अपने परंपरागत मार्गों से होते हुए रास्ते में पड़ने वाले तिलभांडेश्वर, शीतला माता समेत अन्य अलग-अलग मंदिरों में जलाभिषेक करने के बाद बाबा विश्वनाथ का भी जलाभिषेक किया. वहीं इस बार सिर्फ 21 लोगों को ही अभिषेक की अनुमति दी गई. जिस पर गोदौलिया चौराहे पर कुछ यादव बंधुओ ने इसका विरोध भी किया.

इस बारे में चंद्रवंशी गो-सेवा समिति के अध्यक्ष लालजी यादव ने बताया कि 1932 में पूरे देश में जबरदस्त सूखा और अकाल पड़ा था. उस वक्त एक साधु के द्वारा यह बताया गया कि काशी में बाबा विश्वनाथ और अन्य शिवालयों में यादव समुदाय की तरफ से जलाभिषेक किया जाए तो इस सूखे से निजात मिल सकती है.

इसके बाद पूरे काशी समेत आसपास के यादव बंधुओं ने इकट्ठा होकर सावन के प्रथम सोमवार पर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था, अकाल से मुक्ति मिली थी. तभी से यह परंपरा चली आ रही है और हर साल सावन के पावन मौके पर प्रथम सोमवार के दिन सारे यादव बंधु एकजुट होकर हाथों में बड़े-बड़े कलश लेकर भोलेनाथ के जलाभिषेक करने के लिए निकलते हैं.

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