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एशिया के सबसे ऊंचे शिवालय जटोली में लगा भक्तों का तांता, मंदिर बनने में लगे थे 4 दशक...जानिए क्या है इतिहास - sawan first somwar 2024

Sawan somwar jatoli mahadev: आज से सोमवार के साथ भगवान भोले नाथ को समर्पित सावन माह शुरू हो चुका है. इसके चलते शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. सावन के पहले सोमवार के दिन एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर जटोली महादेव में भी भक्तों का खूब तांता लगा हुआ है.

जटोली शिव मंदिर और पूजा अर्चना करते भक्त
जटोली शिव मंदिर (ईटीवी भारत)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Jul 22, 2024, 3:46 PM IST

Updated : Jul 22, 2024, 4:35 PM IST

एशिया के सबसे बड़े शिवालय जटोली में लगा भक्तों का तांता (ईटीवी भारत)

सोलन: आज से सावन माह की शुरुआत हो चुकी है. शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. सावन माह के पहले सोमवार को एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर जटोली में भी शिव भक्तों की भारी उमड़ी. सुबह से ही मंदिर के बाहर लोगों की लाइनें लगना शुरू हो गई थीं. जहां भक्तों ने शिवलिंग का दूध, भांग बेलपत्र, चावल और अन्य चीजों से जलाभिषेक किया. हालांकि आज मौसम खराब है, लेकिन बारिश होने के बावजूद भी मंदिर भारी भीड़ उमड़ी है.

लोगों का कहना है कि सावन माह में भगवान शिव की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है. इस दौरान व्रत रखकर भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से भगवान शिव खुश होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते है. हिमाचल समेत बाहरी राज्यों से आए पर्यटक भी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए जटोली शिव मंदिर पहुंचे थे.

मंदिर में जलाभिषेक करते भक्त
मंदिर में जलाभिषेक करते भक्त (ईटीवी भारत)

111 फीट का गुंबद

हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर जटोली शिव मंदिर स्थित है. इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है. इसका निर्माण दक्षिण-द्रविड़ शैली में हुआ है और इसे बनने में करीब 39 साल का समय लगा था. मंदिर परिसर में दाईं ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है. इसके 200 मीटर की दूरी पर शिवलिंग भी है. साहित्यकार और इतिहासकार मदन हिमाचली ने कहा कि मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है. इसी कारण इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है. वहीं, इस मंदिर के ऊपर 11 फुट ऊंचे स्वर्ण कलश की स्थापना भी की गई है, जिस कारण अब इसकी ऊंचाई 122 फीट भी आंकी जाती है.

जटोली शिव मंदिर
जटोली शिव मंदिर (ईटीवी भारत)

शिवजी से जुड़ा है इतिहास

मदन हिमाचली ने बताया 'जटोली मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रुके थे. 1974 में इस मंदिर की आधारशिला स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज ने रखी थी. इसके बाद से यहां पर मंदिर का कार्य 21वीं सदी के दूसरे दशक तक चलता रहा. वर्ष 1983 में जब स्वामी जी ने समाधि ले ली तब इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी. उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा भी है. खास बात यह है कि करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर का निर्माण जनता के दिए गए पैसों से हुआ है. यहीं वजह है कि मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने में ही तीन दशक से भी अधिक का समय लग गया. मंदिर में स्फटिक शिवलिंग मौजूद है, जो दूसरे शिवलिंग से अलग है और ये दुनिया के कुछ ही मंदिरों में पाया जाता है.'

जटोली मंदिर में शिवलिंग और स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज
जटोली मंदिर में शिवलिंग और स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज (ईटीवी भारत)

पत्थरों के थपथपाने से आती है डमरू की आवाज?

मंदिर के चारों कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं. साहित्यकार मदन हिमाचली ने बताया 'सोलन के लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता था. लोगों का मानना है कि पानी की समस्या को देखते हुए स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला. तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है. लोग इस पानी को चमत्कारी मानते हैं. मान्यता है कि इस जल में किसी भी बीमारी को ठीक करने के गुण हैं.' कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर में पत्थरों को थपथपाने से एक विशेष प्रकार की आवाज आती है, जो ढोल या डमरू की आवाज की तरह सुनाई देती है, लेकिन कुछ लोग इसे सिर्फ मिथ ही मानते हैं. उनका कहना है कि डमरू की आवाज सिर्फ लोगों की तरफ से बनाई गई कहानी है.

ये भी पढ़ें: शादी में अड़चन-कुंडली में मांगलिक दोष दूर करने, संतान प्राप्ति के लिए सावन माह में करें ये व्रत

एशिया के सबसे बड़े शिवालय जटोली में लगा भक्तों का तांता (ईटीवी भारत)

सोलन: आज से सावन माह की शुरुआत हो चुकी है. शिव मंदिरों में भक्तों का तांता लगा हुआ है. सावन माह के पहले सोमवार को एशिया के सबसे ऊंचे शिव मंदिर जटोली में भी शिव भक्तों की भारी उमड़ी. सुबह से ही मंदिर के बाहर लोगों की लाइनें लगना शुरू हो गई थीं. जहां भक्तों ने शिवलिंग का दूध, भांग बेलपत्र, चावल और अन्य चीजों से जलाभिषेक किया. हालांकि आज मौसम खराब है, लेकिन बारिश होने के बावजूद भी मंदिर भारी भीड़ उमड़ी है.

लोगों का कहना है कि सावन माह में भगवान शिव की कृपा अपने भक्तों पर बनी रहती है. इस दौरान व्रत रखकर भगवान शिव की विधि विधान के साथ पूजा अर्चना करने से भगवान शिव खुश होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना को पूरा करते है. हिमाचल समेत बाहरी राज्यों से आए पर्यटक भी भगवान शिव के दर्शन करने के लिए जटोली शिव मंदिर पहुंचे थे.

मंदिर में जलाभिषेक करते भक्त
मंदिर में जलाभिषेक करते भक्त (ईटीवी भारत)

111 फीट का गुंबद

हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन से करीब सात किलोमीटर की दूरी पर जटोली शिव मंदिर स्थित है. इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है. इसका निर्माण दक्षिण-द्रविड़ शैली में हुआ है और इसे बनने में करीब 39 साल का समय लगा था. मंदिर परिसर में दाईं ओर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है. इसके 200 मीटर की दूरी पर शिवलिंग भी है. साहित्यकार और इतिहासकार मदन हिमाचली ने कहा कि मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है. इसी कारण इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर माना जाता है. वहीं, इस मंदिर के ऊपर 11 फुट ऊंचे स्वर्ण कलश की स्थापना भी की गई है, जिस कारण अब इसकी ऊंचाई 122 फीट भी आंकी जाती है.

जटोली शिव मंदिर
जटोली शिव मंदिर (ईटीवी भारत)

शिवजी से जुड़ा है इतिहास

मदन हिमाचली ने बताया 'जटोली मंदिर के पीछे मान्यता है कि पौराणिक समय में भगवान शिव यहां आए और कुछ समय यहां रुके थे. 1974 में इस मंदिर की आधारशिला स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज ने रखी थी. इसके बाद से यहां पर मंदिर का कार्य 21वीं सदी के दूसरे दशक तक चलता रहा. वर्ष 1983 में जब स्वामी जी ने समाधि ले ली तब इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी. उनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. मंदिर के कोने में स्वामी कृष्णानंद की गुफा भी है. खास बात यह है कि करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर का निर्माण जनता के दिए गए पैसों से हुआ है. यहीं वजह है कि मंदिर का निर्माण कार्य पूरा होने में ही तीन दशक से भी अधिक का समय लग गया. मंदिर में स्फटिक शिवलिंग मौजूद है, जो दूसरे शिवलिंग से अलग है और ये दुनिया के कुछ ही मंदिरों में पाया जाता है.'

जटोली मंदिर में शिवलिंग और स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज
जटोली मंदिर में शिवलिंग और स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी महाराज (ईटीवी भारत)

पत्थरों के थपथपाने से आती है डमरू की आवाज?

मंदिर के चारों कई देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई हैं. साहित्यकार मदन हिमाचली ने बताया 'सोलन के लोगों को पानी की समस्या से जूझना पड़ता था. लोगों का मानना है कि पानी की समस्या को देखते हुए स्वामी कृष्णानंद परमहंस जी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन से पानी निकाला. तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है. लोग इस पानी को चमत्कारी मानते हैं. मान्यता है कि इस जल में किसी भी बीमारी को ठीक करने के गुण हैं.' कुछ लोगों का मानना है कि मंदिर में पत्थरों को थपथपाने से एक विशेष प्रकार की आवाज आती है, जो ढोल या डमरू की आवाज की तरह सुनाई देती है, लेकिन कुछ लोग इसे सिर्फ मिथ ही मानते हैं. उनका कहना है कि डमरू की आवाज सिर्फ लोगों की तरफ से बनाई गई कहानी है.

ये भी पढ़ें: शादी में अड़चन-कुंडली में मांगलिक दोष दूर करने, संतान प्राप्ति के लिए सावन माह में करें ये व्रत

Last Updated : Jul 22, 2024, 4:35 PM IST
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