बगहाः अगर आपने वाल्मिकी रामायण पढ़ा है तो याद होगा कि रामायण की प्रथम कविता का श्रेय सारस पक्षी को दिया जाता है. रामायण की शुरुआत सारस-युगल के वर्णन से होता है. माना जाता है कि एक बार प्रातः बेला में महर्षि वाल्मीकि ने देखा कि एक शिकारी ने प्रेम लीला में व्यस्त एक सारस जोड़े में नर पक्षी की हत्या कर दी. इसके बाद मादा पक्षी अपने साथी के वियोग में प्राण त्याग देता है.
सारस की मौत से महर्षि वाल्मिकी हुए थे द्रवितः महर्षि वाल्मीकि इस घटना के काफी द्रवित होते हैं. इस कारण उनके मुख से श्लोक निकलता है. 'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥' अर्थात : 'हे दुष्ट, तुमने प्रेम में मग्न क्रौंच (संस्कृत नाम)पक्षी को मारा है. जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पाएगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा.' इसके बाद वाल्मीकि ने रामायण की रचना की. इसमें उन्होंने श्रीराम और माता सीता के विरह वियोग की चर्चा की है.
उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी है सारसः इससे यह तात्पर्य है कि सारस पक्षी को प्रेम का प्रतीक माना जाता है जो जीवन भर एक ही साथी के साथ रहता है. अगर दोनों में से एक साथी की किसी कारण वश मृत्यु हो जाती है तो दूसरा साथी भी अपना जीवन त्याग देता है लेकिन किसी और के साथ रहना पसंद नहीं करता है.
बगहा में दिखा सारस का सुंदर दृश्यः दरअसल, बिहार के बगहा में सारस जोड़े का एक सुंदर दृश्य देखने को मिला है. बिहार का इकलौता वाल्मीकि टाइगर रिजर्व कई पशु पक्षियों के लिए बेहतर अधिवास साबित हो रहा है. जिले के इंडो नेपाल सीमा अंतर्गत वाल्मीकीनगर से सटे एक धान की खेत में सारस पक्षी ने अंडा दिया है और घोंसला की निगरानी कर रहा है. नर और मादा दोनों अंडे को सेता दिख रहे हैं. इस नजारा को देखकर रामायण की वही कहानी याद आती है.
पृथ्वी पर सारस के अलग-अलग प्रजातिः सारस का इतिहास रामायण काल से पहले का माना जाता है. इसलिए इसका संस्कृत नाम क्रौंच है. इसका वैज्ञानिक नाम ग्रुइडाए और अंग्रेजी में इसे सारस क्रेन (Sarus crane) कहते हैं. इसके कुल तीन वंश 'ऐंटिगोनी, बैलेरिका और ग्रुस' हैं. 8 प्रजातियां हैं जो अंटार्कटिका और दक्षिण अमेरिका को छोड़ लगभग सभी महाद्वीप में पाया जाता है. भारत में भी यह काफी संख्या में माना जाता है. यहां चार प्रजाति पायी जाता है. खासकर मानसून में इसे धान की खेत और पानी वाले जगहों पर देखा जा सकता है. उत्तर प्रदेश का राजकीय पक्षी भी है. यही कारण है कि यह बिहार में भी देखने को मिलता है.
सबसे ऊंचा उड़ने वाला पंछी: भारत में इस पक्षी की संख्या 15000 से 20000 के करीब है. वन्य जीव जंतुओं के जानकार वीडी संजू बताते हैं कि सारस को दुनिया का सबसे लंबा उड़ने वाला पक्षी माना जाता है. इसकी लंबाई 152-156 सेमी होती है. इसके पंखों का फैलाव 240 सेमी होता है. इसका पंख मुख्य रूप से भूरे रंग का होता है जबकि इसके सिर और गर्दन का ऊपरी हिस्सा लाल होता है. इसका वजन तकरीबन 6.8-7.8 किलोग्राम का होता है.
गंगा के मैदानों में रहना पसंदः वीडी संजू बताते हैं कि "यह एक भावुक प्राणी है. ज्यादातर जोड़े अथवा तीन या चार के समूहों में देखा जाता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह एक ही साथी के साथ पूरा जीवन बिताता है और उसी के साथ संभोग करता है. करने के लिए जाना जाता है. इसका प्रजनन मानसून में भारी वर्षा के समय होता है. लिहाजा ये अपना घोंसला प्राकृतिक आर्द्रभूमि या बाढ़ वाले धान की खेतों में या फिर गंगा के मैदानी इलाकों में बनाती है."
एक बार में 2 से 4 अंडा देती है मादाः आमतौर पर यह एक बार में केवल दो या चार अंडे देता है. सोचने वाली बात है कि नर-मादा दोनों मिलकर एक माता-पिता की तरह अंडा को सेता है. पूरे एक माह अपने अंडा का ख्याल रखता है. वीडी संजू बताते हैं कि भारत में इस पक्षी को दांपत्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है. क्योंकि एक साथी के विरह में दूसरा भी जान दे देता है.
सारस की संख्या में आ रही कमीः बता दें कि सारस में कमी देखने को मिल रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है पर्यावरण का असंतुलन होना. बिजली की उच्च धारा वाले तारों से भी खतरा है. यह शहर और औद्योगिक क्षेत्र से दूर ज्यादा रहना पसंद करता है. उड़ीसा, मध्य प्रदेश, बिहार और गुजरात की कुछ जनजातियां इनका शिकार भी कर लेती है इसलिए यह विलुप्त होने के कगार पर है. साइबेरियन क्रेन भारत से पहले ही विलुप्त हो चुका है.
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