जयपुर : सफाई कर्मचारियों के 24 हजार 797 पदों पर होने वाली भर्ती मस्टरोल पर कराने की मांग को लेकर वाल्मीकि समाज से जुड़े सफाई कर्मचारी हड़ताल पर हैं. हड़ताल के पहले दिन राजधानी में न तो सड़कों पर झाड़ू लगी, न डोर टू डोर कचरा संग्रहण हुआ और न ही ओपन कचरा डिपो से कचरा उठाया गया. इसके चलते शहर में सफाई व्यवस्था चरमराती हुई नजर आई. हालांकि, 2018 में भर्ती हुए गैर वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मचारियों ने मोर्चा जरूर संभाला.
अधिकारियों ने लॉलीपॉप देकर आंदोलन खत्म करवाया : सफाई कर्मचारियों के हड़ताल के चलते राजधानी में जगह-जगह ओपन कचरा डिपो पर कचरे का अंबार लग गया. अधिकतर वार्ड में हूपर नहीं पहुंचे. हालांकि सफाई कर्मचारियों ने इसका जिम्मेदार सरकार और प्रशासन को ठहराया. संयुक्त वाल्मीकि एवं सफाई श्रमिक संघ के अध्यक्ष नंदकिशोर डंडोरिया ने बताया कि सरकार से बार-बार गुहार लगा रहे हैं कि उनके साथ जो पांच बार समझौता किया गया, उनका क्रियान्वयन करें. पांच बार हड़ताल की गई और उन्हें हर बार सरकारी अधिकारियों ने लॉलीपॉप देकर आंदोलन खत्म करवा दिया, लेकिन भर्ती की जब भी बात आती है तो उसमें वाल्मीकि समाज के लोगों को दरकिनार कर दिया जाता है.
ये है विरोध की वजह : उन्होंने स्पष्ट किया कि सफाई कर्मचारी का पद ग्रुप डी में नहीं आता है, इसलिए इस पद को आरक्षण से मुक्त रखा गया है. इस नियम को अधिकारी न मानते हुए सफाई कर्मचारियों के पदों पर भी आरक्षण दे रहे हैं. वाल्मीकि समाज आरक्षण का विरोध नहीं करता. विरोध इस बात का है कि जिस तरह 2018 में सफाई कर्मचारियों की भर्ती हुई, लेकिन गैर वाल्मीकि समाज के कर्मचारी सफाई का काम नहीं कर रहे. ऐसे में जब सफाई का काम वाल्मीकि समाज के लोग ही कर रहे हैं, तो भर्ती भी उन्हीं की होनी चाहिए, इसलिए मस्टरोल की मांग की है, जो कर्मचारी एक-डेढ़ साल में सफाई का कार्य करेगा, वही स्थाई नियुक्ति पाएगा. उन्होंने मांग की है कि जिन लोगों के 2012 और 2018 की भर्ती में उन अभ्यर्थियों का कोर्ट केस न्यायालय में विचाराधीन है या न्यायालय की ओर से फैसला दिया जा चुका है, उन अभ्यार्थियों की नियुक्ति आदेश जारी किए जाएं.
वहीं, गैर वाल्मीकि समाज से आने वाले सफाई कर्मचारियों के नेता राकेश मीणा ने बताया कि संयुक्त वाल्मीकि एवं सफाई श्रमिक संघ की ओर से की जा रही हड़ताल में गैर वाल्मीकि समाज के कर्मचारी शामिल नहीं हैं और वो निरंतर रूप से अपना काम कर रहे हैं. वाल्मीकि समाज की ओर से जो मांग की जा रही है, वो संवैधानिक रूप से गलत है. बार-बार होने वाली हड़ताल से न सिर्फ आम जनता परेशान होती है, बल्कि निगम की छवि भी धूमिल होती है. ऐसे में प्रशासन से भी यही निवेदन है कि इस तरह की वैकल्पिक व्यवस्था की जाए ताकि इस हड़ताल का कोई असर न पड़े. हालांकि, इस पर डंडोरिया ने कहा कि वो भी यही चाहते हैं कि 2018 में भर्ती हुए सफाई कर्मचारी सफाई का काम करें. प्रशासन से यही निवेदन है कि वाल्मीकि समाज के लोग हड़ताल पर बैठे हैं, तो गैर वाल्मीकि समाज के कर्मचारियों को दफ्तरों में से निकलवा कर सफाई का काम कराएं.