जमुई: आज भी जमुई जिले के सुदूरवर्ती जंगली इलाकों में संसाधन की कमी है. ऐसे कई दुर्गम इलाके है, जहां सरकारी विद्यालय नहीं है और न ही सरकार की विकास योजनाएं यहां तक पहुंच रही है. ग्रामीण बच्चे संसाधन की कमी की वजह से पढ़ नहीं पाते हैं. ऐसे में कुछ समाजसेवी संस्थाओं के द्वारा कई सेंटर खोले गए हैं. जो दुर्गम इलाकों के बच्चों की निशुल्क पढ़ाई के साथ उन्हें संसाधन भी मुहैया कराता है. साथ ही बच्चों की स्वास्थ सुविधा का ख्याल रखता है.
साइकल से पढ़ने जाती हैं छात्राएं: साइकल मिलने के बाद सभी छात्राएं पढ़ाई करने जाती पाती हैं. इन छात्राओं में कोई 10 किलोमीटर तो कोई 15 से 20 किलोमीटर साइकल चलाकर जंगल के कच्चे उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते को पारकर पढ़ने पहुंचती हैं. छात्राओं ने बताया कि पढ़ लिखकर छात्राएं आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं. यहां बच्चों को शिक्षित कर नजदीकी सरकारी स्कूल से जोड़ दिया जाता है.
"ये सरकारी साइकिल नहीं है बल्कि समग्र सेवा संस्था ने निशुल्क दी है. साइकल मिली तो पढ़ने लगे हैं. गांव से स्कूल दूर है, जिस वजह से पहले काफी दूर चलकर जाना पड़ता था. जिससे कई छात्राएं स्कूल जाना बंद कर देती थीं."-छात्रा
आज भी नहीं पहुंच रही विकास योजनाएं: जिले के लक्ष्मीपुर, वरहट, चकाई, खैरा, सिकंदरा, झाझा, सोनो प्रखंड अंतर्गत जंगल पहाड़ी क्षेत्र में कई गांव है. जहां आज भी विकास योजनाएं नहीं पहुंच पा रही है. जिस वजह से छात्र शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाते थे. वहीं जिले के कई इलाके नक्सल प्रभावित भी थे, जिस कारण वहां का विकास नहीं हो पाया है. हालांकि समग्र सेवा संस्था बच्चों की पढ़ाई को लेकर संसाधन उपलब्ध करा रहा है, साथ ही बच्चों के अभिभावकों को भी जागरूक कर रहा है.
20 किलोमीटर के दायरे में नहीं है सरकारी स्कूल: जंगल के दुर्गम इलाके में साइकल चला रही छात्राओं ने बताया कि गांव में पहली से पांचवीं कक्षा के लिए स्कूल है. आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें दूर जाना पड़ता था, जिस वजह से ज्यादातर छात्राएं घर बैठ जाती थी. गांव से 20 किलोमीटर के दायरे में कोई सरकारी उच्च विद्यालय नहीं है. रास्ता काफी खराब है, जिस वजह से पैदल कई धंटे चलने के बाद छात्राएं स्कूल पहुंच पाती थी. हालांकि अब समग्र सेवा संस्था से छात्राओं को काफी मदद मिली है. संस्था ने निशुल्क साइकल से लेकर पढ़ने के लिए जरूरी सामान तक छात्राओं को उपलब्ध काराया है.
सरकारी और बुनियादी सुविधा का आभाव: अति दुर्गम क्षेत्र जमुनिया, चोरमारा, गुरमाहा और मूसहरीटाड जिसका जिला मुख्यालय बरहट से 45 किलोमीटर और लक्ष्मीपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. इन गांव में सरकारी और बुनियादी सुविधा का घोर अभाव है. इनमें से सभी गांव में प्राथमिक विद्यालय है, जो आंशिक रूप से संचालित है. इन गांवों के बच्चे किसी प्रकार से पांचवी कक्षा तक ही पढ़ पाते हैं. आसपास में मध्य विद्यालय नहीं होने के कारण बच्चे पढ़ना भी चाहे तो यातायात की सुविधा उन्हें पढ़ने से रोकती नजर आती है.
4 से 5 परसेंट बच्चे ही कर पाते हैं मेट्रिक की पढ़ाई: अंतर जिला स्तरी नमांकन के दाब पेच में फंसकर बच्चे विद्यालय तक नहीं पहुंच पाते है. इन गांव में 6 से 14 वर्ष के 327 बच्चे हैं. जिनमें से अधिकांश बच्चे शिक्षा से वंचित है. भीमबांध के आसपास के गांव में भी बच्चे आठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. जिसका प्रमुख कारण है क्षेत्र के आसपास उच्च विद्यालय का नहीं होना. प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई मात्र 50 परसेंट बच्चे करते हैं. वर्ग 8 तक 15 परसेंट और मेट्रिक तक मात्र 4-5 परसेंट तक पंहुच पाते हैं.
संस्था समग्र सेवा ने जलाई शिक्षा की अलख: संस्था समग्र सेवा दुर्गम गांवो में बच्चों के प्राथमिक शिक्षा के लिए 4 सामुदायिक सांस्कृतिक शिक्षण केंद्र पिछले दो सालों से चला रही है. परिणामस्वरूप वहां के अभिभावकों में बच्चों की शिक्षा को लेकर अभिरुचि जगनी शुरू हो गई है. हालांकि वरहट प्रखंड के दुर्गम क्षेत्र गुरमहा, चोरमारा और जमुनिया के बच्चे पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई से वंचित हो जाते हैं. यहां तक कि गुरमाहा चौरमारा में आज तक बिजली नहीं पंहुच पाई है. मोबाइल नेटवर्क भी यहां काम नहीं करता है.
निशुल्क उच्च विधालय का संचालन: भीषण प्रस्थिति को देखते हुए समग्र सेवा स्थानीय चंदा दान के सहयोग से भीमबांध में वर्ग 9 और 10 के बच्चों के शिक्षा के लिए निशुल्क उच्च विधालय का संचालन 16 जून 2024 से कर रहा है. इसमे कुल 40 बच्चे हैं और सभी बच्चों को किताब, कॉपी और दूर से आने वाले 30 बच्चों को साइकल भी दी गई है. झोपड़ीनुमा सेंटर बनाकर स्कूल का संचालन किया जा रहा है. बच्चों की उम्र ज्यादा होने और काफी दिनों से पढ़ाई छोड़ देने के कारण नियमित होना बहुत कठिन कार्य है. ऐसे मैं मेट्रिक पास के लिए BBOSE से पंजीयन कराया गया है, ये सभी बच्चे जून 2025 से मेट्रिक परीक्षा में शामिल हो पाएंगे.
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