इंदौर। आज मंगलवार से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. सलकनपुर के बिजासन देवी मंदिर में भक्तों के आने का सिलसिला शरू हो गया है. माता बिजासन को वरदान की देवी भी कहा जाता है. देश विदेश से भक्त अपनी मुरादें लेकर आते हैं. इस मंदिर का निर्माण होलकर साम्राज्य के महाराजा शिवाजीराव होलकर ने करवाया था. यहां पर महिलाएं संतान प्राप्ती का वरदान मांगने आती हैं और कहा जाता है यहां मांगी हुई मुरादें कभी खाली नहीं जाती.
सलकनपुर में स्थित है मंदिर
आज 9 अप्रैल से हिन्दू नववर्ष और चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. इसको लेकर आज से अगले नौ दिनों तक देश भर के तमाम मंदिरों में माता रानी के जयकारे गूंजेंगे. इंदौर में भी एक ऐसा मंदिर है जहां भक्तों की भीड़ रहती है. सलकनपुर में बिजासन माता का मंदिर स्थित है, जो हजारों वर्ष पुराना है. इसे वरदान की देवी का मंदिर भी कहा जाता है. यहां महिलाएं संतान प्राप्ति का वरदान मांगने आती हैं. कहां जाता है यहां जो अपनी मुरादें लेकर आता है खाली हाथ नहीं जाता. माता उसकी मुरादें जरुर पूरी करती हैं.
बार-बार गिर जाती थी दीवार
मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां पहले कोई आता-जाता नहीं था. लेकिन होलकर साम्राज्य के राजा शिवाजीराव होलकर अक्सर यहां शिकार के लिए आया करते थे. एक दिन शिकार करते हुए राजा कि नजर माता की प्राचीन मुर्ती पर पड़ी. शिवाजीराव के मन में माता के लिए मंदिर निर्माण कराने का विचार आया. राजा ने मंदिर निर्माण शुरु करवाया, लेकिन दिन में जिन दिवारों का निर्माण होता था वो रात में गिर जाती थी. ऐसा कई बार हुआ, मंदिर का निर्माण जितनी बार कराया जाता हर बार ध्वस्त हो जाता था. राजा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है.
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राजा को मांगनी पड़ी मन्नत
कहा जाता है कि बार-बार मंदिर ध्वस्त हो जाने के बाद राजा परेशान हो गया था. फिर एक दिन राजा के सपने में देवी आई. उन्होंने राजा से कहां पहले कोई वरदान मांगों फिर मंदिर का निर्माण करो. राजा ने माता से पुत्ररत्न का वरदान मांगा. कुछ दिनों बाद राजा को संतान की प्राप्ती हुई. इसके बाद राजा ने मंदिर निर्माण का कार्य शुरु किया और सफलतापूर्वक मंदिर निर्माण का कार्य संपन्न हुआ. तभी से यहां माता की पूजा कि परंपरा चली आ रही है.
देश विदेश से आते हैं मुरादें मांगने
बिजासन माता मंदिर में देश-प्रदेश ही नहीं विदेश तक के लोग अपनी मुरादें लेकर आते हैं. एकमात्र यही ऐसा मंदिर है जहां पर माता रानी नौ रूपों में साक्षात विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां महिलाएं सूनी कोख में संतान प्राप्ति की आस लेकर आती हैं. वह मंदिर पर उल्टा स्वास्तिक बनती हैं, उसके बाद जब उनकी मन्नत पूरी हो जाती है तो वह अपने बच्चों को लेकर यहां पर दर्शन करने के लिए आती हैं. यहां 9 दिन अलग-अलग तरह से माता रानी का श्रृंगार किया जाता है, और चैत्र की नवरात्रि बड़ी नवरात्रि मानी जाती है. जिसमें नौवें दिन हवन पूजन का आयोजन कर आहुति अर्पण की जाती है.