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सहरसा के बनगांव की घुमौर होली, ब्रज की लठमार होली की तरह है फेमस, हिन्दू-मुस्लिम मिलकर मनाते त्योहार - Holi 2024

Holi 2024 सहरसा जिला मुख्यालय से आठ किलोमीटर पश्चिम कहरा प्रखंड के बनगांव में मनाई जाने वाली घुमोर होली की अपनी अलग पहचान है. ब्रज और बरसाने से कम नहीं है यहां की सामूहिक होली. एक दिन पहले मनाई जाती है. कई गांव के हिन्दू-मुस्लिम इकट्ठा होकर उन्नीसवीं शताब्दी से यह होली मना रहे हैं. बच्चे, बूढ़े और महिलायें भी जमकर उठाती हैं होली का मजा. ऐतिहासिक और भाई चारे की मिसाल होली पर खास रिपोर्ट. पढ़ें, विस्तार से.

सहरसा के बनगांव में घुमौर होली.
सहरसा के बनगांव में घुमौर होली.
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 25, 2024, 6:00 AM IST

सहरसा के बनगांव में घुमौर होली.

सहरसा: आपने ब्रज और बरसाने की यादगार होली के बारे में आपने जरूर पढ़ा होगा. लेकिन, यहां हम आपको सहरसा जिले के बनगांव में उन्नीसवीं शताब्दी से मनाई जाने वाली सामूहिक हुडदंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा के बारे में बताने जा रहे हैं. हजारों की तादाद में कई गांवों के लोग एक जगह जमा होकर रंगों में डुबकियां लगाते हैं. हिन्दू-मुस्लिम और विभिन्य जातियों के लोगों का हुजूम किसी किवंदती की तरह एक जगह जमा होकर भाईचारे के साथ होली मनाते हैं.

क्या है खासियतः इस होली की एक ख़ास बात यह है की यह होली,से एक दिन पूर्व ही मनाई जाती है. मिथिला पंचांग के अनुसार रविवार को फागुन का आखिरी दिन है. इसलिए बनगांव की इस होली को फगुआ कहा जाता है. जबकि और जगहों पर सोमवार और मंगलवार को होने वाली होली जो चैत मास में होगी इसलिए उसे चैतावर होली कहा जाता है. बरसाने और नन्द गांव जहां लठमार होली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है वहीं बनगांव की घुमौर होली की परम्परा आज भी कायम है.

समरसता का अदभुत नजाराः इस विशिष्ट होली में लोग एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर, लिपट-चिपट और उठा-पटक कर के रंग खेलते और होली मनाते हैं. बनगांव के विभिन्न टोलों से होली खेलने वालों की टोली सुबह नौ बजे तक माँ भगवती के मंदिर में जमा होने लगती है. फिर यहां पर होली का हुड़दंग शुरू होती है जो शाम करीब चार बजे तक चलती है. बनगांव में तीन पंचायत है. हिंदु धर्म की विभिन्न जातियों के अलावे मुस्लिमों की भी अच्छी संख्या है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के कई गांवों के लोग भी यहां आते हैं और होली का आनंद उठाते हैं.

प्रेम और भाईचारे का सन्देशः गांव के लोगों का कहना है कि संत लक्ष्मीनाथ गोंसाईं ने होली की परम्परा की शुरुआत की थी, जिसे आजतक लोग बाखूबी निभा रहे हैं. इस होली में सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति के अलावा आम लोग भी शामिल होते हैं. इस हुड़दंग में खुद को बचाना मुश्किल हो जाता है. रंगों का यह ऐसा त्योहार है कि इसमें मना करने की कोई गुंजाईश नहीं है. यहां की होली पूरे देश को प्रेम और भाईचारे का सन्देश देता है.

इसे भी पढ़ेंः सिर्फ हैप्पी होली नहीं, थोड़ी-सी सावधानी से मनाएं 'हैप्पी एंड सेफ होली' - Holi Celebration Tips

इसे भी पढ़ेंः पूर्णिया में खेली गई वृंदावन जैसी फूलों की होली, बुजुर्गों पर भी चढ़ा फगुहा का खुमार - Flowers Holi In Purnea

इसे भी पढ़ेंः महाराष्ट्र: हिंदू-मुस्लिम मिलकर कर तैयार रहे होली, गुड़ी पड़वा के लिए कंगन - Holi In Jalgaon

सहरसा के बनगांव में घुमौर होली.

सहरसा: आपने ब्रज और बरसाने की यादगार होली के बारे में आपने जरूर पढ़ा होगा. लेकिन, यहां हम आपको सहरसा जिले के बनगांव में उन्नीसवीं शताब्दी से मनाई जाने वाली सामूहिक हुडदंगी घुमौर होली का अदभुत नजारा के बारे में बताने जा रहे हैं. हजारों की तादाद में कई गांवों के लोग एक जगह जमा होकर रंगों में डुबकियां लगाते हैं. हिन्दू-मुस्लिम और विभिन्य जातियों के लोगों का हुजूम किसी किवंदती की तरह एक जगह जमा होकर भाईचारे के साथ होली मनाते हैं.

क्या है खासियतः इस होली की एक ख़ास बात यह है की यह होली,से एक दिन पूर्व ही मनाई जाती है. मिथिला पंचांग के अनुसार रविवार को फागुन का आखिरी दिन है. इसलिए बनगांव की इस होली को फगुआ कहा जाता है. जबकि और जगहों पर सोमवार और मंगलवार को होने वाली होली जो चैत मास में होगी इसलिए उसे चैतावर होली कहा जाता है. बरसाने और नन्द गांव जहां लठमार होली संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है वहीं बनगांव की घुमौर होली की परम्परा आज भी कायम है.

समरसता का अदभुत नजाराः इस विशिष्ट होली में लोग एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर, लिपट-चिपट और उठा-पटक कर के रंग खेलते और होली मनाते हैं. बनगांव के विभिन्न टोलों से होली खेलने वालों की टोली सुबह नौ बजे तक माँ भगवती के मंदिर में जमा होने लगती है. फिर यहां पर होली का हुड़दंग शुरू होती है जो शाम करीब चार बजे तक चलती है. बनगांव में तीन पंचायत है. हिंदु धर्म की विभिन्न जातियों के अलावे मुस्लिमों की भी अच्छी संख्या है. गांव के लोगों के अतिरिक्त आसपास के कई गांवों के लोग भी यहां आते हैं और होली का आनंद उठाते हैं.

प्रेम और भाईचारे का सन्देशः गांव के लोगों का कहना है कि संत लक्ष्मीनाथ गोंसाईं ने होली की परम्परा की शुरुआत की थी, जिसे आजतक लोग बाखूबी निभा रहे हैं. इस होली में सांसद, विधायक, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर, उद्योगपति के अलावा आम लोग भी शामिल होते हैं. इस हुड़दंग में खुद को बचाना मुश्किल हो जाता है. रंगों का यह ऐसा त्योहार है कि इसमें मना करने की कोई गुंजाईश नहीं है. यहां की होली पूरे देश को प्रेम और भाईचारे का सन्देश देता है.

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