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सहारनपुर के इस मंदिर में पांडवों ने की थी महादेव की पूजा, भोलेनाथ ने दिए थे दर्शन, जानिए क्या है मान्यता - Bhuteshwar Mahadev Temple

सहारनपुर के इस मंदिर में पांडवों ने महादेव की पूजा की थी. पूजा से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने दर्शन देकर कौरवों से जीत का आशीर्वाद भी दिया था. इस मंदिर में कई लोगों को 20 फिट लंबे सफेद दाहड़ी वाले बाबा भी दिखाई दिए थे. इतना ही नहीं, हनुमान जी भी मंदिर का भ्रमण करते हुए दिखाई देते हैं.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 2, 2024, 9:55 AM IST

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सहारनपुर: हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सीमाओं से घिरा उत्तर प्रदेश का जनपद सहारनपुर धार्मिक स्थलों से अनोखी पहचान रखता है. जिले में पांच बड़े शिवालय हैं. लेकिन, अद्भुत चमत्कारों के स्मार्ट सिटी सहारनपुर स्तिथ श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तो को अपनी ओर आकर्षित करता है. यूं तो भूतेश्वर महादेव मंदिर महाभारत कालीन है. लेकिन, इसका निर्माण सैकड़ों साल पहले मराठा शासक ने कराया था.

सहारनपुर के इस मंदिर में पांडवों ने की थी महादेव पूजा (video credit- Etv Bharat)

यही वजह है, कि भूतेश्वर महादेव मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. पुराने शहर में धोबी घाट के पास 22 बीघा जमीन पर बने प्राचीन सिद्धपीठ श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास अनूठा है. यह मंदिर पौराणिक और धार्मिक महत्व अपने अंदर समेटे हुए हैं. बताया जाता है, कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस स्थान पर शिवजी की पूजा की थी. पांडवों की पूजा से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने दर्शन दिए थे.

आपको बता दें, कि स्मार्ट सिटी के नगर कोतवाली इलाके के धोबी घाट के पास 22 बीघा जमीन में बना भूतेश्वर महादेव मंदिर सिद्धपीठ मंदिरो में से एक है. महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव इस स्थान पर आकर रुके थे, जहां पांडवों ने देवो के देव महादेव भोलेनाथ की पूजा की थी. मान्यता है कि कि पांडवों की पूजा से खुश होकर भोलेनाथ ने उन्हें न सिर्फ दर्शन दिए थे, बल्कि कौरवों से जीत का आशीर्वाद भी दिया था.

17 वीं शताब्दी में इस स्थान पर स्वंमभू शिवलिंग अवतरित हुए थे. जिसके चलते उस वक्त मराठा शासक ने इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था. बताया जाता है, कि उस वक्त मंदिर के आसपास घने जंगल हुआ करते थे. मंदिर में साधु-संत धुना लगाकर तपस्या करते थे. घने जंगलों में होने के चलते कुछ ही श्रदालु मंदिर में दर्शन करते आते थे.

इसे भी पढ़े-सावन में सोमवार ही नहीं शनिवार का भी है विशेष महत्व, खास पूजन से मिलेगी शनि की महादशा से मुक्ति, जानिए क्या है उपाय? - Sawan 2024

जानकार बताते है, कि धीरे-धीरे समय बीतता गया और मंदिर की रख रखाव के लिए एक समिति बनाई गई. समिति ने मंदिर का दोबारा से निर्माण करते हुए सौंदर्यीकरण कर दिया. आबादी बढ़ती गई और अब यह मंदिर शहर के बीच में आ गया. मंदिर के पुजारी शिवनाथ पांडे बताते हैं, कि श्रावण मास में 60 वर्ष पूर्व रोजाना की तरह 10:30 बजे मंदिर के कपाट बंद हो गए थे. एक रात अचानक करीब 3:00 बजे मंदिर के कपाट अपने आप खुल गए और खुद बे खुद घंटियां बजने लगी थी.

मंदिर में मौजूद पुजारियों और साधु-संतों ने गर्भगृह में जाकर देखा, तो भगवान शंकर का श्रृंगार हुआ मिला. उनकी आरती हो चुकी थी. माना जाता है, कि देवी देवताओं ने भगवान शंकर की पूजा की थी. वही मंदिर में कई लोगों को 20 फिट लंबे सफेद दाहड़ी वाले बाबा भी दिखाई दिए थे. इतना ही नहीं, हनुमान जी भी मंदिर का भ्रमण करते हुए दिखाई देते हैं.

मान्यता है, कि 40 दिन अगर कोई व्यक्ति श्रद्धाभाव से शिवलिंग पर जल चढ़ाता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं 40 दिन से पहले ही पूरी होती है. यही वजह है, कि भूतेश्वर महादेव मंदिर में आसपास के जनपदों और राज्यों से हर सोमवार हजारों की संख्या में शिव भक्त दर्शन करने आते हैं. सावन के महीने में हर दिन यहां मेले जैसा माहौल रहता है. लाखों शिव भक्त हरिद्वार से कावड़ लाकर भूतेश्वर महादेव का जलाभिषेक कर धर्मलाभ उठाते हैं.

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सहारनपुर के इस मंदिर में पांडवों ने की थी महादेव पूजा (video credit- Etv Bharat)

यही वजह है, कि भूतेश्वर महादेव मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है. पुराने शहर में धोबी घाट के पास 22 बीघा जमीन पर बने प्राचीन सिद्धपीठ श्री भूतेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास अनूठा है. यह मंदिर पौराणिक और धार्मिक महत्व अपने अंदर समेटे हुए हैं. बताया जाता है, कि द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने इस स्थान पर शिवजी की पूजा की थी. पांडवों की पूजा से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने दर्शन दिए थे.

आपको बता दें, कि स्मार्ट सिटी के नगर कोतवाली इलाके के धोबी घाट के पास 22 बीघा जमीन में बना भूतेश्वर महादेव मंदिर सिद्धपीठ मंदिरो में से एक है. महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडव इस स्थान पर आकर रुके थे, जहां पांडवों ने देवो के देव महादेव भोलेनाथ की पूजा की थी. मान्यता है कि कि पांडवों की पूजा से खुश होकर भोलेनाथ ने उन्हें न सिर्फ दर्शन दिए थे, बल्कि कौरवों से जीत का आशीर्वाद भी दिया था.

17 वीं शताब्दी में इस स्थान पर स्वंमभू शिवलिंग अवतरित हुए थे. जिसके चलते उस वक्त मराठा शासक ने इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था. बताया जाता है, कि उस वक्त मंदिर के आसपास घने जंगल हुआ करते थे. मंदिर में साधु-संत धुना लगाकर तपस्या करते थे. घने जंगलों में होने के चलते कुछ ही श्रदालु मंदिर में दर्शन करते आते थे.

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जानकार बताते है, कि धीरे-धीरे समय बीतता गया और मंदिर की रख रखाव के लिए एक समिति बनाई गई. समिति ने मंदिर का दोबारा से निर्माण करते हुए सौंदर्यीकरण कर दिया. आबादी बढ़ती गई और अब यह मंदिर शहर के बीच में आ गया. मंदिर के पुजारी शिवनाथ पांडे बताते हैं, कि श्रावण मास में 60 वर्ष पूर्व रोजाना की तरह 10:30 बजे मंदिर के कपाट बंद हो गए थे. एक रात अचानक करीब 3:00 बजे मंदिर के कपाट अपने आप खुल गए और खुद बे खुद घंटियां बजने लगी थी.

मंदिर में मौजूद पुजारियों और साधु-संतों ने गर्भगृह में जाकर देखा, तो भगवान शंकर का श्रृंगार हुआ मिला. उनकी आरती हो चुकी थी. माना जाता है, कि देवी देवताओं ने भगवान शंकर की पूजा की थी. वही मंदिर में कई लोगों को 20 फिट लंबे सफेद दाहड़ी वाले बाबा भी दिखाई दिए थे. इतना ही नहीं, हनुमान जी भी मंदिर का भ्रमण करते हुए दिखाई देते हैं.

मान्यता है, कि 40 दिन अगर कोई व्यक्ति श्रद्धाभाव से शिवलिंग पर जल चढ़ाता है तो उसकी सभी मनोकामनाएं 40 दिन से पहले ही पूरी होती है. यही वजह है, कि भूतेश्वर महादेव मंदिर में आसपास के जनपदों और राज्यों से हर सोमवार हजारों की संख्या में शिव भक्त दर्शन करने आते हैं. सावन के महीने में हर दिन यहां मेले जैसा माहौल रहता है. लाखों शिव भक्त हरिद्वार से कावड़ लाकर भूतेश्वर महादेव का जलाभिषेक कर धर्मलाभ उठाते हैं.

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