सागर. एक जमाना था, जब गांव की महिलाएं पत्थर की चक्की से हाथ से गेहूं पीसा करती थीं, जिसे बुंदेलखंड में 'जांते' के नाम से जानते हैं. जांते की पिसाई में वक्त और मेहनत जरूर लगती थी लेकिन गेहूं के पोषक तत्व खत्म नहीं होते थे. जमाना बदलने के साथ मशीनी युग में बिजली से चलने वाली चक्कियां आ गईं. कुछ ही समय में गेहूं, दाल और मसाला पीसने वाली चक्की समय की बचत और कम मेहनत कराती हैं लेकिन अनाज, दाल या मसाले के पोषक तत्व खत्म कर देती हैं. ऐसे में कोई भी अनाज खाने पर भी उसके गुणों का फायदा शरीर को नहीं मिलता है.
बिजली से चलती है पर है देसी
अनाज के पोषक तत्वों को ध्यान रखकर सागर के प्रगतिशील किसान आकाश चौरसिया ने जुगाड़ से एक ऐसी आटा चक्की बनाई है, जो चलती तो बिजली से है लेकिन हाथ की चक्की का काम करती है. हाथ की चक्की की तरह धीमी गति से चलने वाली इस चक्की में अनाज, दाल और मसाले के पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं और खाने वाले की सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता हैं.
बिजली वाली आटा चक्की खत्म कर देती है पोषक तत्व
युवा और प्रगतिशील किसान आकाश चौरसिया बताते हैं, '' एक दौर था कि हमारी माताएं-बहनें परंपरागत तरीके से सुबह उठकर जातें से आटा और दलिया जैसी चीजें बनाती थीं. जांते से जो आटा, दलिया या मसाला निकलता था, वह ठंडा निकलता था. जिसमें अनाज या मसाले के पोषक तत्व खत्म नहीं होते थे. आज के दौर में बिजली से चलने वाली चक्कियां लगभग 1400 आरपीएम पर घूमती हैं और इनसे निकलने वाला आटा, दलिया या मसाले गरम होते हैं, जिससे उनके पोषक तत्व खासकर फाइबर पूरी तरह से खत्म हो जाते हैं.''
जादुई आटा चक्की में बने रहते हैं पोषक तत्व
किसान आकाश चौरसिया आगे कहते हैं, '' पोषक तत्व खत्म होने से ये अनाज हमारे शरीर के लिए किसी तरह का फायदा नहीं देते. इसी बात को ध्यान रखकर मेरे मन में विचार आया की क्यों ना परंपरागत चक्की को बिजली से चलाया जाए. लेकिन उसकी पिसाई हाथ की चक्की की तरह हो. इसी बात को ध्यान रखकर मैंने कई महीनो में अलग-अलग जगह से अलग-अलग सामान इकट्ठा किया. करीब 60 से 70 हजार की लागत से ये पत्थर वाली चक्की बनाई है, जो चलती तो बिजली से है लेकिन पत्थर की चक्की की तरह अनाज के गुणों को सुरक्षित रखती है''
कैसे काम करती है जुगाड़ वाली आटा चक्की?
आकाश चौरसिया बताते हैं, '' इस आटा चक्की को तैयार करने के लिए मैंने काफी मेहनत की. पत्थर मैंने कोल्हापुर से मंगवाए थे. इस चक्की में 22-22 किलो के काले पत्थर लगाए गए हैं. जिस तरह पत्थर की चक्की को हाथ से चलाते थे उसी तरह इस चक्की को चलाने के लिए मशीन में गियर बॉक्स लगाकर आरपीएम सेट किया जाता है. इस मशीन को जब 48 आरपीएम पर चलाते हैं, तो ये 1 मिनट में 10 से 12 राउंड लेती है. जबकि हाथ की चक्की यानी जातें को हाथ से चलने पर 1 मिनट में 6 से 8 राउंड लगते हैं. खास बात ये है कि इससे निकलने वाला आटा,दाल या मसाला गरम नहीं होता है. इसलिए उसके पोषक तत्व खत्म नहीं होते हैं.''
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हर तरह की पिसाई में सक्षम
आकाश आगे कहते हैं, '' इस एक मशीन से हर तरह की पिसाई की जा सकती है. इससे गेहूं, मोटे अनाज, दालें और मसाले भी पीस सकते हैं. जो भी चीज हम पीसना चाहते हैं, उसे कितनी स्पीड से पीसना है उस हिसाब से मशीन को सेट किया जा सकता है. जिन चक्कियों से आज गेहूं पीसा जाता है उनमें फाइबर पूरी तरह से नष्ट हो जाता है और हमारे शरीर में पाचन क्रिया बिगड़ जाती है लेकिन ये चक्की धीमी गति से पिसाई करती है, जिससे पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं और शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं.''