वाराणसी : प्रयागराज में लगे महाकुंभ के लगभग सभी शाही स्नान पूरे हो चुके हैं. अमृत स्नान पूर्ण होने के बाद अब वहां से अखाड़े और बड़े साधु संत भी अपने-अपने आश्रम और काशी के लिए प्रस्थान कर रहे हैं. ऐसे में वाराणसी में पिछले दिनों जूना अखाड़े की पेशवाई और नगर प्रवेश का भव्य शोभा यात्रा निकालते हुए आयोजन किया गया था. अब धीरे-धीरे सारे अखाड़े वाराणसी पहुंचने लगे हैं. मंगलवार को आवाहन अखाड़े के साधु संन्यासियों और नागा साधुओं ने काशी पहुंचकर पेशवाई निकालते हुए अपने पड़ाव पर रुकने के बाद अपने मुख्य अखाड़ा कार्यालय में प्रवेश किया है. जिसके लिए पेशवाई निकालकर साधु संन्यासी और नागा साधुओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र का प्रदर्शन करते हुए भव्य शोभा यात्रा निकाली.
आवाहन अखाड़े के संत विनोद गिरी के मुताबिक, हर अखाड़े की परंपरा होती है. इस परंपरा के अनुरूप जब भी प्रयागराज में कुंभ का आयोजन होता है, उस वक्त सभी अखाड़े काशी स्थित कार्यालय और अपने अखाड़ा मुख्यालय से अपने देवता को लेकर प्रयागराज रवाना होते हैं. प्रयागराज महाकुंभ के अमृत स्नान संपन्न होने के बाद अखाड़े वापस काशी आते हैं. इसी परंपरा के अनुरूप मंगलवार को आवाहन अखाड़े के साधु संन्यासी, महामंडलेश्वर, आचार्य महामंडलेश्वर और नागा साधुओं ने बड़ी संख्या में एकत्रित होकर कबीर चौरा से नगर प्रवेश करते हुए पेशवाई निकाली. पेशवाई के दौरान जितने भी अखाड़े से जुड़े बड़े संन्यासी और महामंडलेश्वर व अन्य महंत, श्री महंत थे उन्होंने रथ और घोड़े पर बैठकर पेशवाई का नेतृत्व किया, जबकि बाकी साधु संत पैदल ही चलते दिखाई दिए.
इस दौरान नागा साधुओं ने बैंडबाजे की धुन पर हाथों पर भाला, त्रिशूल और तलवार लेकर अपने करतब दिखाए और सनातन की अद्भुत शक्ति का भी एहसास लोगों को करवाया. संन्यासियों का कहना था कि यह हमारी पुरानी परंपरा है. पहले हम कुंभ के लिए प्रयागराज पहुंचते हैं और कुंभ में शामिल होने के बाद पुनः काशी आते हैं. काशी में अपने देवताओं को पुनः स्थापित करते हैं और अब महाशिवरात्रि के दिन बाबा विश्वनाथ का दर्शन पूजन करने के बाद हम सभी यहां से वापस अपने-अपने मठों और आश्रमों के लिए प्रस्थान करते हैं. काशी से ही नागा संन्यासी अपने-अपने गंतव्य को रवाना होते हैं और फिर अगले कुंभ में लोगों को दर्शन देने के लिए पहुंचते हैं.