पटनाः राष्ट्रीय जनता दल (राजद) आज अपना 28 वां स्थापना दिवस मना रहा है, लेकिन पार्टी को एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. कभी लालू काल में आरजेडी अपने दम पर बिहार में सरकार चलाती थी, केंद्र की सत्ता में भी किंग मेकर की भूमिका में रही. लेकिन आज तेजस्वी काल में राजद अपने सहयोगियों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि राजद को इसका खामियाजा भी उठाना पड़ रहा है.
"तेजस्वी यादव लालू प्रसाद यादव के वोट बैंक से आगे निकलकर प्रयोग करना चाह रहे हैं. इसलिए अधिक से अधिक सहयोगियों को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं. 2024 लोकसभा चुनाव में बहुत सफल नहीं रहे. तेजस्वी यादव का लिटमस टेस्ट 2025 विधानसभा चुनाव में होने वाला है."- प्रिय रंजन भारती, राजनीतिक विश्लेषक
राजद से अधिक सहयोगी दलों को फायदाः राजद के चुनाव परिणाम का स्ट्राइक रेट घट गया है. सहयोगियों को राजद के कारण फायदा पहुंच रहा है. 2024 लोकसभा चुनाव बिहार में एक तरफ महागठबंधन तो दूसरी तरफ एनडीए था. महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस, वीआईपी और तीनों वामपंथी दल शामिल थे .राजद 23 सीटों पर चुनाव लड़ी लेकिन केवल चार जीत पाई वहीं कांग्रेस 9 सीटों पर चुनाव लड़ी और तीन सीट जीती. सीपीआईएमएल ने केवल तीन सीट पर चुनाव लड़ा और दो पर जीत हासिल की.
राजद का खाता भी नहीं खुलाः उससे पहले 2020 विधानसभा चुनाव में भी राजद ने अपने सहयोगियों पर पूरा भरोसा जताया. आरजेडी जहां 75 विधानसभा सीट जीत पाई तो कांग्रेस 19, माले 12 सीपीएम और सीपीआई दो-दो सीट. 2015 विधानसभा चुनाव में सीपीआईएमएल अकेले चुनाव लड़ी थी तब केवल तीन सीट जीत पाई थी. 2019 लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में राजद के साथ कांग्रेस, हम, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और तीनों वामपंथी दल थे. राजद का खाता तक नहीं खुला और उसके सहयोगी कांग्रेस का खाता खुला.
"आने वाला समय तेजस्वी यादव का है. बिहार की जनता तेजस्वी यादव की ओर देख रही है. तेजस्वी यादव सबको साथ लेकर चलने की पॉलिटिक्स कर रहे हैं. 2025 में बिहार की जनता उन्हें ताज पर भी बैठाएगी."- मृत्युंजय तिवारी, राजद प्रवक्ता
राजद का प्रमुख सहयोगी रहा कांग्रेसः आरजेडी का सबसे प्रमुख सहयोगी कांग्रेस रहा है. लालू के जमाने में कांग्रेस लालू के दबाव में रही. उस समय तो कहा यह भी जाता था कि लालू प्रसाद यादव कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के अलावा किसी से बात नहीं करते हैं. राहुल गांधी को भी लगाते तक नहीं थे. प्रदेश के नेताओं को तो कोई भाव ही नहीं देते थे. लेकिन स्थितियां अब पूरी तरह से बदल गई है. लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी की दोस्ती चर्चा में है. राहुल गांधी को मटन बनाना लालू यादव सीखा रहे हैं.
1997 से 2024 तक कांग्रेस से तालमेलः 1997 में लालू प्रसाद यादव ने जनता दल का गठन किया था. कांग्रेस के साथ पहली बार गठबंधन 1998 में हुआ उस समय झारखंड भी बिहार के साथ था. 54 लोकसभा सीटों में से लालू प्रसाद यादव ने केवल 8 सीट कांग्रेस के लिए छोड़ी थी. कांग्रेस को चार सीटों पर जीत मिली तो आरजेडी को 17 सीटों पर. 1999 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 13 सीटों पर चुनाव लड़ी. आठ पर राजद से समझौता हुआ 5 पर फ्रेंडली फाइट हुआ था. कांग्रेस को दो सीट पर ही जीत मिली. राजद 7 सीटों पर जीती.
"राजद के लिए भी सहयोगी दल मजबूरी हो गए हैं. यदि ऐसा नहीं होता तो पाटलिपुत्र सीट मीसा भारती कभी जीत नहीं पाती. राजद के इसी मजबूरी का सहयोगी दल भी फायदा उठा रहे हैं. कांग्रेस और वामपंथी दल राजद के वोट बैंक के सहारे ही अपने उम्मीदवार को जिताने में सफल हो रहे हैं."- आसित नाथ तिवारी, कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता
लोकसभा चुनाव 2024 में क्या रहा रिजल्टः 2004 में कांग्रेस राजद के साथ चुनाव लड़ी और केवल तीन लोकसभा का सीट जीत पाई थी. जबकि आरजेडी को 22 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2005 विधानसभा चुनाव में भी राजद और कांग्रेस साथ ही चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस को केवल 9 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि आरजेडी को 54 विधानसभा सीटों पर जीत मिली. 2014 लोकसभा में कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली तो आरजेडी को चार सीटों पर.
2015 से तेजस्वी यादव का दखल बढ़ाः 2015 में जदयू, राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल सभी एक साथ थे. राजद 80 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस को भी फायदा हुआ. 27 सीटों पर जीत मिली. जदयू को 77 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. 2019 और 2020 लोकसभा और विधानसभा का चुनाव और अभी 2024 में लोकसभा का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा गया. इसका फायदा सहयोगी दलों को खूब हुआ. 2019 में राजद का लोकसभा में खाता नहीं खुला, लेकिन कांग्रेस को एक सीट पर जीत हासिल हुई. 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को तीन सीटों पर तो वामपंथी दलों को दो सीटों पर जीत हासिल हुई. जबकि राजद को चार सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी.
सहयोगी दलों की जीत का स्ट्राइक रेट राजद से बेहतरः 2015 से पहले लालू प्रसाद यादव का कांग्रेस पर इतना दबदबा था कि उसमें यह कहा जाता था कि बिहार में कांग्रेस को लालू यादव ही चला रहे हैं. लालू यादव के दबदबा के कारण ही वामपंथी दल आरजेडी से कई बार दूरी बनाकर चलते रहे. 2015 विधानसभा चुनाव में जब वामपंथी दल चुनाव लड़े थे तो केवल तीन सीट जीत पाए थे और उसके बाद ही 2020 से राजद से गठबंधन कर लिया है तीनों वामपंथी दल 16 सीटों पर जीत हासिल की. अभी जो लोकसभा का चुनाव हुआ है उसमें भी वामपंथी दल को फायदा हुआ है. तेजस्वी के आने के बाद से कांग्रेस और वामपंथी दल सबसे अधिक लाभ में रहे हैं. उन्हें अधिक सीट भी मिली है.
गठबंधन से अलग होने पर घाटे में रही थी कांग्रेसः बिहार में सहयोगी दलों के रूप में कांग्रेस सबसे प्रमुख साझेदार रही. लेकिन 2000 विधानसभा चुनाव, फरवरी 2005 विधानसभा चुनाव, 2009 लोकसभा चुनाव और 2010 विधानसभा चुनाव दबाव के कारण कांग्रेस, आरजेडी से अलग चुनाव लड़ी. हालांकि कांग्रेस को बहुत ज्यादा लाभ नहीं मिला. यही कारण रहा कि कांग्रेस भी राजद के साथ गठबंधन के लिए मजबूर होती रही. राजद का लोजपा के साथ ही एक बार गठबंधन हुआ. लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार के साथ 2015 में जब गठबंधन किया तब पहली बार गठबंधन की उनकी सरकार बन पाई. जदयू के साथ केवल 2015 में ही गठबंधन हुआ, किसी लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं हो पाया.