रीवा: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगामी 20 अक्टूबर को देश के 7 नए एयरपोर्ट का लोकार्पण करने वाले हैं. पीएम मोदी बनारस में अयोजित कार्यक्रम से वर्चुअली सभी एयरपोर्ट का लोकार्पण करते हुए हरी झंडी दिखाएंगे. इन सभी एयरपोर्ट में से रीवा का नवनिर्मित एयर पोर्ट भी शामिल है. संभावना है की रीवा हवाई अड्डे के लोकार्पण साथ ही यहां से 19 सीटर या उससे अधिक सीटों वाला हवाई जहाज भी रीवा से राजधानी भोपाल के लिए उड़ान भरेगा, लेकिन क्या आपको पता है की इससे पहले भी रीवा में हवाई पट्टी की सुविधा हुआ करती थी. वह सेवा वर्ष 1962 में यानी की लगभग 62 साल पहले शुरू हुई थी. मगर रीवा का हवाई सफर इससे भी पुराना है, तो आइए जानते है रीवा में हवाई सफर का 110 साल पुराना इतिहास.
नवनिर्मित एयरपोर्ट का पीएम मोदी वर्चुली करेंगे लोकार्पण
रीवा के चोरहटा में स्थित नव निर्मित एयरपोर्ट से 20 अक्टूबर को हवाई यात्रा शुरु होने वाली है. इससे पहले यहां पर लगभग 62 वर्षों से हवाई यात्रा हो रही है. मगर तब इस जगह में सिर्फ हवाई पट्टी थी. समय बीतता गया, इसके बाद तकरीबन 6 साल पहले यहां से 7 से 8 सीट वाली पैसेंजर प्लेन "वायु दूत" भोपाल के लिए उड़ान भरती थी. यह सेवा कुछ सालों तक चली. इसके बाद इसका संचालन बंद हुआ. बाद में इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल शासन और उद्योगपतियों के आवागमन के लिए किया गया. कुछ वर्ष पहले इस हवाई पट्टी में एक निजी कंपनी ने ट्रेनी एयरक्राफ्ट की सुविधा शूरू की.
सिंधिया ने 2023 में किया था भूमि पूजन
बीते वर्ष इस हवाई पट्टी के भाग्य खुल गए और इसके जगह हवाई अड्डा बनाने का फैसला लिया गया. 15 फरवरी 2023 को तत्कालीन केन्द्रीय उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान सहित मंत्री राजेन्द्र शुक्ल ने भूमी पूजन करके विंध्य के रीवा को एयरपोर्ट की सौगात दी थी. लोकार्पण के तकरीबन 19 माह बाद अब यहां पर भव्य एयरपोर्ट बनकर पूरी तरह से तैयार है. जिसका आगामी 20 अक्टूबर को पीएम मोदी बनारस से वर्चुअली लोकार्पण करेंगे.
रीवा से हवाई यात्रा का 110 साल पुराना इतिहास
ETV भारत आपको रीवा के हवाई यात्रा से जुड़े एक रोचक किस्से के बारे में बताने जा रहा है. जिसका इतिहास तकरीबन 110 साल पुराना है. इतिहासकार असद खान के 'मुताबिक उस जमाने में रीवा का SAF मैदान हवाई पट्टी हुआ करता था. जिसका संचालन रीवा रियासत के राजा महाराजा किया करते थे. सैकड़ों वर्ष पूर्व रीवा रियासत में तीन बड़े हमले हुए. जिसमें दो युद्ध में हार मिली. जबकि तीसरे युद्ध में विजय हासिल हुई. वर्ष 1650 में ओरछा के महराजा पहाड़ सिंह बुंदेला ने रीवा राज्य में हमला किया था. उस दौरान रीवा रियासत के महाराजा अनूप सिंह हुआ करते थे. दूसरा हमला 1726 में पन्ना के महराजा छत्रसाल के बेटे ह्रदयशाह बुंदेला ने किया था. दोनों युद्ध में रीवा रियासत को शिकस्त मिली थी.
रीवा रियासत में हुए तीन हमले एक में मिली जीत
रीवा राज्य में तीसरा हमला वर्ष 1796 में मराठा योद्धा बाजीराव मस्तानी के पोते अली बहादुर ने किया. उस दौरान रीवा राज्य के महाराजा अजीत सिंह जू देव हुआ करते थे. इस युद्ध में रीवा राज्य की विजय हुई. इसके बाद कई दशकों तक अन्य राजाओं ने रीवा राज्य में अपना राज पाठ संभाला. 1880 में महाराजा रघुराज सिंह जू देव के स्वर्गवास होने के बाद उनके पुत्र व्यंकट रमण सिंह जू देव ने रीवा रियासत को संभाला. रीवा के तत्कालीन महाराजा व्यंकटरमण सिंह जू देव को पूर्व में हुए रीवा राज्य पर हमले की जानकारी उन्हें बचपन से ही थी. दो युद्ध में हार की बात उन्हें परेशान करती थी. उन्होने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए कई बड़े निर्णय लिए.
1914 में प्रथम विश्वयुद्ध में शामिल हुआ रीवा का लड़ाकू विमान
साल 1914 में महाराजा व्यंकट रमण सिंह जू देव ने 18 हजार रुपए का एक लडाकू विमान खरीदा. उस विमान का नाम रखा "रीवा" इसके बाद उसी दौरान विश्वयुद्ध भी शुरू था. ब्रिटिश हुकमत के अफसरों के कहने पर महराजा द्वारा युद्धक विमान को प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए "वर्मा रंगून" भेजा गया. वहां से लौटते वक्त विमान दुर्घटना ग्रस्त हो गया. जिसके बाद महराजा ने उसका 3000 हजार रुपए से मरम्मत भी कराया. इतिहास कार बताते हैं की यह युद्धक विमान बमबारी करने में सक्षम था.
दो और जहाज रीवा रियासत के बेड़े में हुए शामिल
इसके बाद वर्ष 1915 के दौरान 22 हजार 500 में एक और लड़ाकू विमान मंगाया गया. जिसका नाम बांधवगढ़ के नाम से "बांधव रखा" गया. इसके बाद तीसरा विमान भी रीवा राज्य में शामिल हुआ और उसका नाम रीवा रियासत के बघेल राजवंश के नाम पर "बघेल" रखा गया. इन विमानों को उड़ाने के लिए विदेश से किसी पायलेट को नहीं बुलाया गया. इसके लिए भारत से ही तीनों पायलेट को चुना गया था. तीनो पायलट लखनऊ और प्रयागराज के थे. जिन्हें ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड भेजा गया था.
महराजा ने विमानों का नाम रखा "रीवा, बांधव, बघेल,"
महाराजा व्यंकट रमण सिंह ने अपनी सेना को मजबूत करने के लिए कई बड़े निर्णय लिए, उस दौरान रीवा रियासत की अपनी अपनी सेना हुआ करती थी. जिसमें 27 बेड़े हुआ करते थे, जबकि 28वां बेड़ा सोलंकी स्कवाडन वायू सेना का था. महाराजा व्यंकट रमण सिंह ने तीनों युद्धक विमान "रीवा, बांधव, बघेल," को अपने बेड़े में शामिल करना सही समझा, ताकि वह अपने राज्य की सुरक्षा कर सके और पड़ोसी राज्यों के हमले का मुंहतोड़ जवाब दे सकें. बताया गया की प्रथम विश्व युद्ध के बाद इन जहाजों को रीवा के SAF मैदान में स्थित व्यंकट बटालियन रखा गया. इसी स्थान से वह उड़ान भरते थे और वापस लौटकर लैंड हुआ करते थे. इसके आलावा SAF मैदान पर ही रियासत की फौज रहा करती थी. इसी के चलते भारत वर्ष में रीवा रियासत के सेना को सबसे मजबूत सेना माना जाता था.
अंग्रेजी हुकूमत के वायसराय को बेचा हवाई जहाज
महाराजा व्यंकट रमण सिंह जू देव का कार्यकाल 1880 से 1918 तक रहा. 30 अक्टूबर 1918 में महराजा का स्वर्गवास हो गया. इसके बाद व्यंकट रमण सिंह के पुत्र महराजा गुलाब सिंह ने अपना राजपाठ संभाला. जिन्हें आधुनिक भारत का चाणक्य भी कहा जाता था. उनका कार्यकाल 1980 से 1946 तक रहा. समय बीता और किसी भी राज्य से युद्ध के स्थिति भी समाप्त होती गई. जिसके बाद महराजा ने निर्णय लिया और अपनी सेना के सभी विंग को स्थागित कर दिया. बाद में तीनों लडाकू विमान "रीवा, बांधव, बघेल," को अंग्रेजी हुकूमत के वायसराय को बेच दिया.
डिप्टी सीएम के प्रयासों से मिला नवीन एयरपोर्ट
इस तरह रीवा में हवाई सफर का इतिहास 110 साल का रहा. अब एक बार फिर रीवा में हवाई पट्टी की जगह भव्य एयरपोर्ट का निर्माण कराया गया है. 20 अक्टूबर को पीएम मोदी बनारस से वर्चुली एयरपोर्ट का लोकार्पण करेंगे. जबकि रीवा में आयोजित कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव व उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल शामिल होंगे. बता दें की रीवा एयरपोर्ट की सौगात मिलना उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल के प्रयासों से संभव हुआ है. हवाई यात्रा शुरु होने के बाद विंध्य का विकास नई उड़ान भरेगा.