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खेत में पैदा होंगे मोती, किसान बनेंगे करोड़पति, मध्य प्रदेश में महिलाओं ने शुरू की इसकी खेती - CHHINDWARA PEARL FARMING

छिंदवाड़ा के पालाचौरई गांव में शुरू की गई मोती की खेती, मोती की खेती कर देगी मालामाल

CHHINDWARA MOTI KI KHETI
छिंदवाड़ा के पालाचौरई गांव में शुरू की गई मोती की खेती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 18, 2024, 7:47 AM IST

Updated : Oct 18, 2024, 8:48 AM IST

छिंदवाड़ा: पारंपरिक तरीके से की जा रही खेती में लागत ज्यादा और आमदनी कम हो रही है. इसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. छिंदवाड़ा जिले में महिलाओं ने पहली बार ऐसी खेती की है, जो सालभर में किसानों को मालामाल कर देगी, जिससे किस्मत मोतियों से चमक जाएगी. इस खेती का शुभारंभ कलेक्टर ने किया है.

ताजे पानी में मोतियों की हो रही खेती

छिंदवाड़ा के पालाचौरई गांव में ताजे पानी में मोतियों की खेती महिला स्व सहायता समूह के द्वारा शुरू की गई है. शुभारंभ करते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने बताया, ''यह पहल मध्य प्रदेश में अपने आप में पहली है. इसका संचालन श्री स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा किया जाएगा. इस वजह से न केवल महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण मिलेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा मिलेगी. यह काम राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रयासों से हो रहा है. मध्य प्रदेश में पहली बार किसी जिले में ताजे पानी में मोती की खेती हो रही है. यह क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और ग्राम वासियों और एनआरएलएम को इस पहल के लिए हार्दिक बधाई देता हूं. अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाएं."

जानकारी देते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह (ETV Bharat)

मोती की खेती कर देगी मालामाल

मोती की खेती करने के लिए किसानों को खेतों में तालाब की जरूरत होती है. तालाब का आकार 50 फीट चौड़ा, 80 फीट लंबा और 12 फीट गहरा होना चाहिए. तालाब में मोतियों के बीज डाले जाते हैं. फिर 15 से 18 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया कि ''मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इकठ्ठा करना पड़ेगा या फिर इसे बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद हर सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर 4 से 6 मिलीमीटर डायमीटर वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प की आकृति डाली जाती है. फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे लटका दिया जाता है. तालाब में 1 मीटर की गहराई पर फिर से छोड़ा जाता है. प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जा सकता है.

CHHINDWARA PEARL FARMING
शुभारंभ करते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह (ETV Bharat)

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विदेशों में भी है मोतियों की मांग

मोतियों की मांग सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत है. इसलिए भारत के प्रमुख शहर हैदराबाद और दक्षिण भारत के शहरों के अलावा विदेशों में भी मोतियों की खासी डिमांड है. किसानों द्वारा उपजाई गई मोती की ग्रेड के अनुसार बाजार में कीमत मिलती है. बाजार में 300 सौ रुपए से लेकर 1500 तक का एक मोती बिकता है. अधिकतर मोती के व्यापारी किसानों से एग्रीमेंट भी करते हैं और बीज देने के साथ ही मोती तैयार होने के बाद खरीद भी लेते हैं. मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है.

छिंदवाड़ा: पारंपरिक तरीके से की जा रही खेती में लागत ज्यादा और आमदनी कम हो रही है. इसकी वजह से किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. छिंदवाड़ा जिले में महिलाओं ने पहली बार ऐसी खेती की है, जो सालभर में किसानों को मालामाल कर देगी, जिससे किस्मत मोतियों से चमक जाएगी. इस खेती का शुभारंभ कलेक्टर ने किया है.

ताजे पानी में मोतियों की हो रही खेती

छिंदवाड़ा के पालाचौरई गांव में ताजे पानी में मोतियों की खेती महिला स्व सहायता समूह के द्वारा शुरू की गई है. शुभारंभ करते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह ने बताया, ''यह पहल मध्य प्रदेश में अपने आप में पहली है. इसका संचालन श्री स्व सहायता समूह की महिलाओं द्वारा किया जाएगा. इस वजह से न केवल महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण मिलेगा, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा मिलेगी. यह काम राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रयासों से हो रहा है. मध्य प्रदेश में पहली बार किसी जिले में ताजे पानी में मोती की खेती हो रही है. यह क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है और ग्राम वासियों और एनआरएलएम को इस पहल के लिए हार्दिक बधाई देता हूं. अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाएं."

जानकारी देते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह (ETV Bharat)

मोती की खेती कर देगी मालामाल

मोती की खेती करने के लिए किसानों को खेतों में तालाब की जरूरत होती है. तालाब का आकार 50 फीट चौड़ा, 80 फीट लंबा और 12 फीट गहरा होना चाहिए. तालाब में मोतियों के बीज डाले जाते हैं. फिर 15 से 18 महीने में मोती बनकर तैयार हो जाते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र की प्रोग्राम असिस्टेंट चंचल भार्गव ने बताया कि ''मोती की खेती के लिए सीप को नदियों से इकठ्ठा करना पड़ेगा या फिर इसे बाजार से खरीद सकते हैं. इसके बाद हर सीप में एक छोटी सी शल्य क्रिया के बाद उसके भीतर 4 से 6 मिलीमीटर डायमीटर वाले साधारण गोल या डिजाइनर वीड जैसे गणेश, बुद्ध, पुष्प की आकृति डाली जाती है. फिर सीप को बंद किया जाता है. इन सीपों को नायलॉन बैग में रखकर बांस के सहारे लटका दिया जाता है. तालाब में 1 मीटर की गहराई पर फिर से छोड़ा जाता है. प्रति हेक्टेयर 20 हजार से 30 हजार सीपों में मोती का पालन किया जा सकता है.

CHHINDWARA PEARL FARMING
शुभारंभ करते हुए कलेक्टर शीलेंद्र सिंह (ETV Bharat)

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विदेशों में भी है मोतियों की मांग

मोतियों की मांग सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी बहुत है. इसलिए भारत के प्रमुख शहर हैदराबाद और दक्षिण भारत के शहरों के अलावा विदेशों में भी मोतियों की खासी डिमांड है. किसानों द्वारा उपजाई गई मोती की ग्रेड के अनुसार बाजार में कीमत मिलती है. बाजार में 300 सौ रुपए से लेकर 1500 तक का एक मोती बिकता है. अधिकतर मोती के व्यापारी किसानों से एग्रीमेंट भी करते हैं और बीज देने के साथ ही मोती तैयार होने के बाद खरीद भी लेते हैं. मोती की खेती के लिए सबसे अनुकूल शरद ऋतु यानी अक्टूबर से दिसंबर तक का समय माना जाता है.

Last Updated : Oct 18, 2024, 8:48 AM IST
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