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रिटायर्ड लेखाधिकारी सुरेश दे रहे पौधों को 'सांसे'! अब तक लगा चुके 1500 पेड़ - Tree Conservation - TREE CONSERVATION

Plantation With Pension Money, धरती पर हम सांस ले रहे हैं और प्रकृति हमें निशुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध करा रही है. ऐसे में हम भी पौधे लगाकर अपना फर्ज निभा सकते हैं. इस सोच के साथ PWD के रिटायर्ड लेखाधिकारी सुरेश काबरा पिछले कई दशकों से पौधारोपण में जुटे हुए हैं. अब तक वे लगभग 1500 पौधे लगा चुके हैं और आगे भी ये कार्य जारी रहेगा...

सेवानिवृत्त सुरेश काबरा
सेवानिवृत्त सुरेश काबरा (Etv Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 21, 2024, 3:28 PM IST

सेवानिवृत्त सुरेश दे रहे पौधों को 'सांसे'! (Etv Bharat Chittorgarh)

चित्तौड़गढ़. मानसून के आगमन के साथ ही सरकार से लेकर गैर सरकारी संगठन पौधारोपण में जुट जाते हैं. इस दौरान बड़े पैमाने पर पौधे भी लगाए जाते हैं, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात की कहावत पर अटक कर रह जाता है. रखरखाव और सुरक्षा के अभाव में 10% पौधे भी नहीं बच पाते. इसके चलते पौधारोपण औपचारिकता बनकर रह जाता है. ऐसे में सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त सुरेश काबरा ने इसी कारण को पकड़ा और पौधारोपण में जुट गए. सबसे बड़ी समस्या फंड की आई, लेकिन उन्होंने इसके लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाय अपनी पेंशन को जरिया बनाया. पेंशन का एक हिस्सा पौधों की सुरक्षा पर खर्च करते हुए अब तक वो सैंकड़ों पौधों को पेड़ों का रूप दे चुके हैं. गांधीनगर में कई पौधे वृक्षों में तब्दील होकर लोगों को न केवल छाया दे रहे हैं, बल्कि वातावरण को भी शुद्ध कर रहे हैं.

भीषण गर्मी में मुसाफिरों को छाया तक नसीब नहीं थी : सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त सुरेश काबरा ने बताया कि वो 90 के दशक में गांधीनगर में किराए के मकान में रहते थे. त्रिपोलिया हनुमान मंदिर चौराहे पर किसी प्रकार का कोई पेड़ पौधा नहीं था. गर्मी के दौरान राहगीरों को बैठने के लिए छांव तक नसीब नहीं थी. इस समय काबरा के मन में पर्यावरण के प्रति प्रेम जागा और आसपास रहने वाले अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर रोड के किनारे 10 पौधे लगाए. देखरेख के साथ उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त भी किया गया. परिणाम यह रहा कि अगले दो-तीन साल में ही पौधे ग्रोथ कर गए. इससे सुरेश काबरा के मन को एक अलग ही सुकून मिला और वे पौधारोपण के मिशन में जुट गए.

पढ़ें. पर्यावरण संरक्षण की मिसाल बना झालाना जंगल, वन विभाग की मुहिम लाई रंग, कई बड़े पेड़ों का किया गया ट्रांसप्लांट

स्मृति वन के साथ गांधीनगर में कई स्थानों पर लगाए पौधे : त्रिपोलिया हनुमान जी चौराहा के पौधों को बढ़ता देखकर उन्होंने अपने मिशन को आगे बढ़ाया और इसी मार्ग पर सड़क के एक तरफ लोगों के साथ पौधे लगाए. उन्होंने पेड़ों को पानी देने के साथ ही उनकी सुरक्षा के प्रति संकल्पित किया. इसी का परिणाम रहा कि आज हर घर के बाहर बड़े-बड़े पेड़ नजर आते हैं. काबरा के अनुसार गली-मोहल्लों और सड़कों के किनारे पौधों की सुरक्षा को सर्वाधिक खतरा रहता है. ऐसे में उन्होंने सुरक्षा को फोकस किया और अपनी पेंशन का एक हिस्सा खर्च करने का निर्णय किया. परिवार के लोगों ने भी उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और मिशन को लगातार आगे बढ़ाते रहे.

बड़ौदा से मंगवाए 1000 ट्री गार्ड : पौधों के लिए ट्री गार्ड खरीदने थे, लेकिन यहां पर बहुत महंगे पड़ रहे थे. किसी काम से वे गुजरात गए, जहां उन्हें प्लास्टिक के ट्री गार्ड दिखे. अपने स्तर पर पता कर उन्होंने 1000 ट्री गार्ड का ऑर्डर दिया और अपनी पेंशन से उसका भुगतान कर दिया. सुरेश काबरा अपने स्तर पर लोगों के साथ गांधीनगर में पौधारोपण कर रहे थे. इसके साथ गैर सरकारी संस्थाओं को जरूरत के हिसाब से ट्री गार्ड उपलब्ध करवाए गए. कन्नौज, पंचदेवला और भील घत्ती आदि ग्रामीण क्षेत्र की स्कूलों में भी ट्री गार्ड भेजे गए. आज वह पौधे बड़े-बड़े पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं. काबरा आज शहर में जहां पर भी पौधारोपण का कोई कार्यक्रम हो, अपनी ओर से ट्री गार्ड उपलब्ध करवाने से नहीं चूकते.

पढ़ें. पृथ्वी को हरा-भरा करने के उद्देश्य से पौधरोपण कर दिया खास संदेश, नाहरगढ़ में श्रमदान कर 2 घंटे में उठाया 20 टन कचरा

समृति वन में 100 से अधिक नीम : गांधीनगर में समृति वन एक प्रकार से दुर्ग की तलहटी का वन क्षेत्र है. यहां पौधारोपण की बजाय उन्होंने सीड प्रोग्रामिंग पर फोकस किया और मिट्टी के गोले बनाकर नीम के बीज बिखेरे. चूंकि समृति वन एक कवर्ड एरिया है, ऐसे में नीम के पौधे तेजी से बढ़े और आज अच्छे खासे पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं. सुरेश का कहना है कि धरती पर हम सांस ले रहे हैं और प्रकृति हमें निशुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध करा रही है. हम भी पौधे लगाकर अपना फर्ज निभा सकते हैं. अब तक उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ लगभग 1500 पौधे लगा दिए, जिनमें से 90% से अधिक आज पेड़ बनकर लोगों को न केवल छाया प्रदान कर रहे हैं, बल्कि ऑक्सीजन भी प्रदान कर रहे हैं.

सेवानिवृत्त सुरेश दे रहे पौधों को 'सांसे'! (Etv Bharat Chittorgarh)

चित्तौड़गढ़. मानसून के आगमन के साथ ही सरकार से लेकर गैर सरकारी संगठन पौधारोपण में जुट जाते हैं. इस दौरान बड़े पैमाने पर पौधे भी लगाए जाते हैं, लेकिन परिणाम ढाक के तीन पात की कहावत पर अटक कर रह जाता है. रखरखाव और सुरक्षा के अभाव में 10% पौधे भी नहीं बच पाते. इसके चलते पौधारोपण औपचारिकता बनकर रह जाता है. ऐसे में सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त सुरेश काबरा ने इसी कारण को पकड़ा और पौधारोपण में जुट गए. सबसे बड़ी समस्या फंड की आई, लेकिन उन्होंने इसके लिए किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाय अपनी पेंशन को जरिया बनाया. पेंशन का एक हिस्सा पौधों की सुरक्षा पर खर्च करते हुए अब तक वो सैंकड़ों पौधों को पेड़ों का रूप दे चुके हैं. गांधीनगर में कई पौधे वृक्षों में तब्दील होकर लोगों को न केवल छाया दे रहे हैं, बल्कि वातावरण को भी शुद्ध कर रहे हैं.

भीषण गर्मी में मुसाफिरों को छाया तक नसीब नहीं थी : सार्वजनिक निर्माण विभाग से सेवानिवृत्त सुरेश काबरा ने बताया कि वो 90 के दशक में गांधीनगर में किराए के मकान में रहते थे. त्रिपोलिया हनुमान मंदिर चौराहे पर किसी प्रकार का कोई पेड़ पौधा नहीं था. गर्मी के दौरान राहगीरों को बैठने के लिए छांव तक नसीब नहीं थी. इस समय काबरा के मन में पर्यावरण के प्रति प्रेम जागा और आसपास रहने वाले अपने कुछ मित्रों को साथ लेकर रोड के किनारे 10 पौधे लगाए. देखरेख के साथ उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त भी किया गया. परिणाम यह रहा कि अगले दो-तीन साल में ही पौधे ग्रोथ कर गए. इससे सुरेश काबरा के मन को एक अलग ही सुकून मिला और वे पौधारोपण के मिशन में जुट गए.

पढ़ें. पर्यावरण संरक्षण की मिसाल बना झालाना जंगल, वन विभाग की मुहिम लाई रंग, कई बड़े पेड़ों का किया गया ट्रांसप्लांट

स्मृति वन के साथ गांधीनगर में कई स्थानों पर लगाए पौधे : त्रिपोलिया हनुमान जी चौराहा के पौधों को बढ़ता देखकर उन्होंने अपने मिशन को आगे बढ़ाया और इसी मार्ग पर सड़क के एक तरफ लोगों के साथ पौधे लगाए. उन्होंने पेड़ों को पानी देने के साथ ही उनकी सुरक्षा के प्रति संकल्पित किया. इसी का परिणाम रहा कि आज हर घर के बाहर बड़े-बड़े पेड़ नजर आते हैं. काबरा के अनुसार गली-मोहल्लों और सड़कों के किनारे पौधों की सुरक्षा को सर्वाधिक खतरा रहता है. ऐसे में उन्होंने सुरक्षा को फोकस किया और अपनी पेंशन का एक हिस्सा खर्च करने का निर्णय किया. परिवार के लोगों ने भी उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया. इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और मिशन को लगातार आगे बढ़ाते रहे.

बड़ौदा से मंगवाए 1000 ट्री गार्ड : पौधों के लिए ट्री गार्ड खरीदने थे, लेकिन यहां पर बहुत महंगे पड़ रहे थे. किसी काम से वे गुजरात गए, जहां उन्हें प्लास्टिक के ट्री गार्ड दिखे. अपने स्तर पर पता कर उन्होंने 1000 ट्री गार्ड का ऑर्डर दिया और अपनी पेंशन से उसका भुगतान कर दिया. सुरेश काबरा अपने स्तर पर लोगों के साथ गांधीनगर में पौधारोपण कर रहे थे. इसके साथ गैर सरकारी संस्थाओं को जरूरत के हिसाब से ट्री गार्ड उपलब्ध करवाए गए. कन्नौज, पंचदेवला और भील घत्ती आदि ग्रामीण क्षेत्र की स्कूलों में भी ट्री गार्ड भेजे गए. आज वह पौधे बड़े-बड़े पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं. काबरा आज शहर में जहां पर भी पौधारोपण का कोई कार्यक्रम हो, अपनी ओर से ट्री गार्ड उपलब्ध करवाने से नहीं चूकते.

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समृति वन में 100 से अधिक नीम : गांधीनगर में समृति वन एक प्रकार से दुर्ग की तलहटी का वन क्षेत्र है. यहां पौधारोपण की बजाय उन्होंने सीड प्रोग्रामिंग पर फोकस किया और मिट्टी के गोले बनाकर नीम के बीज बिखेरे. चूंकि समृति वन एक कवर्ड एरिया है, ऐसे में नीम के पौधे तेजी से बढ़े और आज अच्छे खासे पेड़ों में तब्दील हो चुके हैं. सुरेश का कहना है कि धरती पर हम सांस ले रहे हैं और प्रकृति हमें निशुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध करा रही है. हम भी पौधे लगाकर अपना फर्ज निभा सकते हैं. अब तक उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ लगभग 1500 पौधे लगा दिए, जिनमें से 90% से अधिक आज पेड़ बनकर लोगों को न केवल छाया प्रदान कर रहे हैं, बल्कि ऑक्सीजन भी प्रदान कर रहे हैं.

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