अलीगढ़ : जिले में सरकारी अस्पताल में कराई गई नसबंदी फेल हो रही है. पिछले 4 वर्षों में 81 महिलाओं की नसबंदी फेल हो चुकी है. वहीं, एक महिला की मौत हो गई. दरअसल, नसबंदी करने के बाद भी महिलाएं गर्भधारण कर रही हैं. जिससे सरकारी सिस्टम पर प्रश्न चिन्ह उठ रहे हैं. यह खुलासा परिवार नियोजन की इन्डेमिनिटी योजना के तहत जारी की गई रिपोर्ट से हुआ है.
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए कई माध्यम हैं तो वहीं, स्वास्थ्य विभाग नसबंदी अभियान चलाता है. स्वास्थ्य विभाग के पास कई च्वाइस है, जो सुविधा अनुसार अपना सकते हैं. वहीं, नसबंदी स्थाई विधि मानी जाती है. पुरुष और महिला नसबंदी दोनों ही होती है. हालांकि, पुरुष नसबंदी की तरफ लोगों का रुझान नहीं है. वहीं, अलीगढ़ में अब तक 6000 महिलाओं की नसबंदी की जा चुकी है. नसबंदी के बाद प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है. सीएमओ डॉ नीरज त्यागी ने बताया कि नसबंदी का कार्यक्रम गुणवत्तापरक तरीके से किया जाता है. उन्होंने बताया कि हालांकि पुरुष और महिला नसबंदी कराए जाने के बाद सरकार की ओर से अलग-अलग धनराशि दिए जाने का प्रावधान है. वहीं, नसबंदी के बाद अगर कोई महिला गर्भवती होती है तो उसे 60 हजार रुपये मिलते हैं. जिसमें 30 हजार रुपए राज्य व 30 हजार रुपये केंद्र सरकार की ओर से दिया जाता है.
उन्होंने बताया कि वहीं, 7 दिन के अंदर नसबंदी करने वाले महिला की अगर मौत होती है तो उसे चार लाख रुपये दिये जाते हैं. जिसके लिए परिवार नियोजन इन्डेमिनिटी योजना के तहत क्लेम किया जाता है, हालांकि बीते वर्षों में जो नसबंदी हुई, उसमें गर्भवती होने और मृत्यु होने के केश को लेकर स्वास्थ्य विभाग की ओर से सूची तैयार की गई है. जिसमें बीते 4 साल में कुल 82 दावे स्वास्थ्य विभाग पर पहुंचे हैं, हालांकि मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ नीरज त्यागी ने बताया कि अब तक 147 दावे मिले हैं. जिसमें महिलाओं की नसबंदी की गई और निर्धारित समय में महिला गर्भवती हो गईं. उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग की ओर से पुरुष व महिला नसबंदी के कैंप का आयोजन किया जाता है. बीते सालों में भी महिला नसबंदी के मामले बढ़े हैं, जबकि पुरुष नसबंदी के मामले बहुत कम हैं.
स्वास्थ्य विभाग में परिवार नियोजन की काउंसलर नाहिदा ने बताया कि नसबंदी करने से कोई प्रॉब्लम नहीं होती है. बिल्कुल सुरक्षित रहता है. वह नसबंदी फेल होने के बारे में भी कहती हैं कि इसके कई कारण हो सकते हैं. आशाकर्मी मनजीत कौर ने बताया कि नसबंदी के लिए महिलाओं को बहुत समझाना पड़ता है, इसमें कोई परेशानी वाली बात नहीं है. वहीं, 2021-22 में 4800 नसबंदी, 2022-23 में 5240 और 2023-24 में 6084 नसबंदी अलीगढ़ में की गई है. सीएमओ डॉक्टर नीरज त्यागी ने बताया कि नसबंदी फेल होने के 147 मामले सामने आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि नसबंदी कराने के बाद महिलाओं में किसी भी तरह माहवारी अनियमित होती है तो उन्हें नजदीकी सरकारी अस्पताल में जांच करानी चाहिए.
नसबंदी फेल होने के बारे में सीएमओ डॉक्टर नीरज त्यागी बताते हैं कि इसमें कई कारण मेडिकल जनित हैं. कुछ महिलाओं में यौन स्वास्थ्य अच्छा देखने को नहीं मिलता है. जिसके कारण नलियों में सूजन रहती है. फैलोपियन ट्यूब पर रिंग डाली जाती है, जिस समय रिंग डाली जाती है, ट्यूब के आकार में सूजन होती है. लेकिन जब सूजन कम होती है तो वहां से स्लिप हो जाता है. उन्होंने बताया कि कुछ महिलाओं में दो की बजाय तीन फैलोपियन ट्यूब पाई जाती है. कुछ महिलाओं में पेढू़ की सूजन की वजह से फैलोपियन ट्यूब को पहचानना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि जब नसबंदी करते हैं. इसमें 80% नसबंदी दूरबीन विधि के द्वारा करते हैं. बाकी 20% नसबंदी योनि के रास्ते से करते हैं या पेट में चीरा लगाकर करते हैं. इसमें सीधा रिंग डालते हैं. जिससे नसबंदी फेल होने की संभावना कम रहती है, लेकिन दूरबीन विधि से की गई नसबंदी में फेल्योर देखा गया है, लेकिन इसमें घबराने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि जरूरी नहीं है कि स्थाई विधि को ही अपनाए. परिवार नियोजन के अन्य भी बहुत से साधन हैं
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