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सावन में क्यों नहीं खाना चाहिए मांस और मछली, जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक आधार - do not eat non veg in Sawan

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 23, 2024, 6:17 PM IST

सावन का महीना हिंदू कैलेंडर में सबसे पवित्र महीना माना जाता है. सावन के महीने में हिंदू धर्म के लोग मांस मछली और अंडा नहीं खाते हैं. सावन के महीने में नॉन वेज नहीं खाने का धार्मिक और वैज्ञानिक आधार भी है.

month of Sawan
धार्मिक और वैज्ञानिक आधार (ETV Bharat)

रायपुर: सावन के महीने में ज्यादातर हिंदू मांस मछली का सेवन एक महीने के लिए बंद कर देते हैं. कई लोग अक्सर ये सवाल पूछते हैं कि आखिर क्यों सावन के महीने में में मांस मछली नहीं खाना चाहिए. दरअसल सावन के महीने में मांस मछली नहीं खाने का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण है. दोनों ठोस कारण हमें सावन में मांस मछली से परहेज रखने की बत बताते हैं. सावन को लेकर धर्म की अपनी व्याख्या है. सावन के इस मास को लेकर वैज्ञानिकों की अपनी अलग राय. धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ये बताते हैं कि इस महीने मांस मछली से दूर रहना चाहिए.

सावन के महीने में इसलिए नहीं खाएं मांस और मछली: सावन का महीना बड़ा पवित्र महीना होता है. सावन के महीने में तामसी भोजन यानि की मांस, मछली और अंडा जैसे खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए. सावन मास में सात्विक भोजना करना चाहिए. सात्विक भोजन से हमारा मन शांत रहता है. तामसी भोजन से हमारा मन आवेग में रहता है. भक्ति भाव के लिए मन का शांत होना जरुरी होता है. जब हमारा मन शांत होगा तब हम धर्म कर्म में ध्यान लगाएंगे. तामसी भोजन करने से हमें गुस्सा ज्यादा आएगा. तामसी भोजन हमारे मन को स्थिर नहीं रहने देता है.

क्या कहती है धार्मिक मान्यता: धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ मां पार्वती का ये महीने सबसे प्रिय महीना होता है. पूरे श्रावण मास में मां पार्वती और शिव जी दोनों ध्यान में रहते हैं. स्कंद पुराण के मुताबिक सावन के महीने में मांस मछली खाने से शिवजी नाराज होते हैं. मांस मछली खाने वालों से शिवजी दूरी बढ़ा लेते हैं. स्कंद पुराण के मुताबिक सावन के महीना भक्त भजन का महीना होता है. भक्ति और भजन के महीने में हमें तामसी भोजन से परहेज रखना चाहिए. लहसुन और प्याज को गरिष्ठ भोजन में गिना जाता है लिहाजा इसका भी परहेज करना चाहिए.

भगवान शंकर की पूजा देव और राक्षस दोनों प्रवृत्ति के लोग करते हैं. भोले शंकर महादानी कहे जाते हैं. ऐसे में जो उनकी मन से पूजा करता है उसकी हर मनोकामना वह पूरी कर देते हैं. वर्णित वेदों में यह जानकारी मिलती है कि कई ऐसे रक्षस रहे हैं जिन्होंने भगवान भोले शंकर को प्रसन्न किया और उनसे वरदान भी लिए. सावन का महीना भगवान भोले शंकर का सबसे प्रिय महीना माना जाता है. सावन के महीने में शिवजी माता पार्वती के साथ रहते हैं. इसलिए भी किसी भी तरह की जीव हत्या से लोग बचते हैं. देवताओं की बात तो दूर दैत्य और राक्षस प्रवृत्ति के लोग भी इस महीने में मांसाहारी भोजन नहीं करते. - पंडित शास्त्री उद्यंकर त्रिपाठी, रिटायर्ड प्रोफेसर, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

मांस मछली नहीं खाने का वैज्ञानिक कारण: सावन के महीने में मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए इसके वैज्ञानिक आधार भी हैं. सावन के महीने में सूर्य की रोशनी धरती पर कम पड़ती है. धरती प सूर्य की रोशनी कम पड़ने के चलते लोगों की पाचन प्रक्रिया कमजोर होती है. इस महीने में जलवायु परिवर्तन सबसे ज्यादा होता है. लगभग 1 महीने पहले शुरू हुई बारिश के बाद सभी ताल तलैयों में पानी भर जाता है. चारों और गंदा पानी भर जाता है. मछली उस गंदे पानी में रहकर गंदगी का सेवन करती है जिससे उसके अंदर रोग और गंदगी भर जाती है.

पेट से जुड़ी बीमारियां बढ़ जाती हैं: सावन के महीने में अगर मांस मछली खाते हैं तो गंदगी हमारे पेट में भी चली जाती है. गंदगी के चलते हमारा पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है. पेचिश और पेट खराब होने की समस्या बढ़ जाती है. गंदगी के चलते कई गंभीर बीमारी पैदा करने वाले विषाणु भी हमारे शरीर में तामसी भोजन के जरिए पहुंच जाते हैं. इन तमाम कारणों के चलते सावन के महीने में मांस मछली खाने से डॉक्टर भी मना करते हैं.

एक और जरुरी कारण: सावन के महीने में हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे निचले स्तर पर होती है. इसकी वजह मौसम में होने वाला परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन दोनों होता है. गर्मी और बारिश दोनों इस मौसम में होते हैं. बारिश होने पर मौसम ठंडा होता है जबकि एक-दो दिन बारिश नहीं होने से मौसम गर्म हो जाता है. ऐसी स्थिति में हमारा इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है. ऐसे में ज्यादा गरिष्ठ भोजन पाचन प्रक्रिया को बिगाड़ देता है.

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रायपुर: सावन के महीने में ज्यादातर हिंदू मांस मछली का सेवन एक महीने के लिए बंद कर देते हैं. कई लोग अक्सर ये सवाल पूछते हैं कि आखिर क्यों सावन के महीने में में मांस मछली नहीं खाना चाहिए. दरअसल सावन के महीने में मांस मछली नहीं खाने का धार्मिक और वैज्ञानिक कारण है. दोनों ठोस कारण हमें सावन में मांस मछली से परहेज रखने की बत बताते हैं. सावन को लेकर धर्म की अपनी व्याख्या है. सावन के इस मास को लेकर वैज्ञानिकों की अपनी अलग राय. धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ये बताते हैं कि इस महीने मांस मछली से दूर रहना चाहिए.

सावन के महीने में इसलिए नहीं खाएं मांस और मछली: सावन का महीना बड़ा पवित्र महीना होता है. सावन के महीने में तामसी भोजन यानि की मांस, मछली और अंडा जैसे खाद्य पदार्थों से दूर रहना चाहिए. सावन मास में सात्विक भोजना करना चाहिए. सात्विक भोजन से हमारा मन शांत रहता है. तामसी भोजन से हमारा मन आवेग में रहता है. भक्ति भाव के लिए मन का शांत होना जरुरी होता है. जब हमारा मन शांत होगा तब हम धर्म कर्म में ध्यान लगाएंगे. तामसी भोजन करने से हमें गुस्सा ज्यादा आएगा. तामसी भोजन हमारे मन को स्थिर नहीं रहने देता है.

क्या कहती है धार्मिक मान्यता: धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान भोलेनाथ मां पार्वती का ये महीने सबसे प्रिय महीना होता है. पूरे श्रावण मास में मां पार्वती और शिव जी दोनों ध्यान में रहते हैं. स्कंद पुराण के मुताबिक सावन के महीने में मांस मछली खाने से शिवजी नाराज होते हैं. मांस मछली खाने वालों से शिवजी दूरी बढ़ा लेते हैं. स्कंद पुराण के मुताबिक सावन के महीना भक्त भजन का महीना होता है. भक्ति और भजन के महीने में हमें तामसी भोजन से परहेज रखना चाहिए. लहसुन और प्याज को गरिष्ठ भोजन में गिना जाता है लिहाजा इसका भी परहेज करना चाहिए.

भगवान शंकर की पूजा देव और राक्षस दोनों प्रवृत्ति के लोग करते हैं. भोले शंकर महादानी कहे जाते हैं. ऐसे में जो उनकी मन से पूजा करता है उसकी हर मनोकामना वह पूरी कर देते हैं. वर्णित वेदों में यह जानकारी मिलती है कि कई ऐसे रक्षस रहे हैं जिन्होंने भगवान भोले शंकर को प्रसन्न किया और उनसे वरदान भी लिए. सावन का महीना भगवान भोले शंकर का सबसे प्रिय महीना माना जाता है. सावन के महीने में शिवजी माता पार्वती के साथ रहते हैं. इसलिए भी किसी भी तरह की जीव हत्या से लोग बचते हैं. देवताओं की बात तो दूर दैत्य और राक्षस प्रवृत्ति के लोग भी इस महीने में मांसाहारी भोजन नहीं करते. - पंडित शास्त्री उद्यंकर त्रिपाठी, रिटायर्ड प्रोफेसर, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय

मांस मछली नहीं खाने का वैज्ञानिक कारण: सावन के महीने में मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए इसके वैज्ञानिक आधार भी हैं. सावन के महीने में सूर्य की रोशनी धरती पर कम पड़ती है. धरती प सूर्य की रोशनी कम पड़ने के चलते लोगों की पाचन प्रक्रिया कमजोर होती है. इस महीने में जलवायु परिवर्तन सबसे ज्यादा होता है. लगभग 1 महीने पहले शुरू हुई बारिश के बाद सभी ताल तलैयों में पानी भर जाता है. चारों और गंदा पानी भर जाता है. मछली उस गंदे पानी में रहकर गंदगी का सेवन करती है जिससे उसके अंदर रोग और गंदगी भर जाती है.

पेट से जुड़ी बीमारियां बढ़ जाती हैं: सावन के महीने में अगर मांस मछली खाते हैं तो गंदगी हमारे पेट में भी चली जाती है. गंदगी के चलते हमारा पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है. पेचिश और पेट खराब होने की समस्या बढ़ जाती है. गंदगी के चलते कई गंभीर बीमारी पैदा करने वाले विषाणु भी हमारे शरीर में तामसी भोजन के जरिए पहुंच जाते हैं. इन तमाम कारणों के चलते सावन के महीने में मांस मछली खाने से डॉक्टर भी मना करते हैं.

एक और जरुरी कारण: सावन के महीने में हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता सबसे निचले स्तर पर होती है. इसकी वजह मौसम में होने वाला परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन दोनों होता है. गर्मी और बारिश दोनों इस मौसम में होते हैं. बारिश होने पर मौसम ठंडा होता है जबकि एक-दो दिन बारिश नहीं होने से मौसम गर्म हो जाता है. ऐसी स्थिति में हमारा इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर होता है. ऐसे में ज्यादा गरिष्ठ भोजन पाचन प्रक्रिया को बिगाड़ देता है.

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